Rice Exporting Countries : खाद और उर्वरक की बढ़ती कीमतों का असर चावल की फसल पर पड़ने वाला है. इस बार गेहूं के बाद चावल के कम उत्पादन होने की उम्मीद है. आपको बता दे कि ग्लोबल सप्लाई चेन में खाद समय से नहीं मिल पा रही है, जिससे पूरे एशिया में चावल का उत्पादन कम होने का अनुमान लगाया जा रहा है. अभी तक भारत में गेहूं को निर्यात करना पड़ रहा था, लेकिन अब चावल को भी निर्यात करने की संभावना है.
फसलो को नुकसान
दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा चावल निर्यातक थाईलैंड है, इस बार यहां चावल की फसल की पैदावार में गिरावट दर्ज की गई है. आपको बता दे कि इसका प्रमुख कारण खाद और दूसरे फसल पोषक तत्वों की कीमतों में बढ़ोत्तरी है. वहीं, चावल का दूसरा सबसे आयात करने वाला देश फिलीपींस है, जहां इस बार बुआई कम हुई है, इसलिए यहां चावल की खरीदी बढ़ेगी. वही कीटों से चीन में चावल की फसल को भारी नुकसान हुआ है.
चावल का बड़ा निर्यातक है भारत
द राइस ट्रेडर के उपाध्यक्ष, वी.सुब्रमण्यन का कहना है कि भारत में चावल की फसल पर बहुत कुछ निर्भर करता है, जो दुनिया के निर्यात का लगभग 40% है. अभी के लिए हमारे पास अभी भी बड़े पैमाने पर भारतीय उपलब्धता है जो कीमतों पर लगाम लगा रही है. देश में मानसून की वजह से चावल की फसल प्रभावित हुई है.
भारत में बढ़ी डिमांड
भारत में केंद्र एवं राज्य सरकारें राशन की दुकानों पर गेहूं और चावल को फ्री वितरण कर रही है. वही कुछ जगह गेहूं में कटौती करके चावल ज्यादा दिया जा रहा है. इसलिए चावल की डिमांड और बढ़ने वाली है. अब ऐसी स्थिति में वैश्विक और घरेलू परिस्थितयां चावल के निर्यात को इस साल प्रभावित कर सकती हैं.
सबसे ज्यादा एशिया में चावल की खपत
दुनिया का अधिकांश चावल एशिया में ही उगाया और खाया जाता है. रूस के यूक्रेन पर आक्रमण के बाद गेहूं और मकई की कीमतों में उछाल के विपरीत, चावल का रेट काफी कम हुआ है. इसकी कोई गारंटी नहीं है कि यह ऐसा ही रहेगा. ऐसे ही हालात में 2008 की शुरुआत में आपूर्ति को लेकर घबराहट के बीच कीमतें 1,000 डॉलर प्रति टन से ऊपर पहुंच गई थीं, जो अब के स्तर से दोगुने से अधिक हैं.