Richest Businessman of World Ever: पुरातन समय से भी भारत व्‍यापार के लिए एक हब रहा है और आज भी यह दुनिया में बिजनेस के लिए फेमस है. अंग्रेजों के समय से लेकर आधुनिक समय तक बड़ी-बड़ी कंपन‍ियां भारत में कारोबार करना चाहती हैं. भारत ने बिजनेस के जरिए दुनिया को मसाले, कपास जैसी कई चीजों से परिचित कराया है. इसके अलावा भारतीय सरजमीं से कई दिग्‍गज बिजनेसमैन भी पैदा हुए हैं. इन्‍हीं में से एक आजादी के पहले के कारोबारी थे, जिन्‍होंने ईस्‍ट इंडिया कंपनी को भी लोन दिया था. 


हम बात कर रहे हैं भारतीय बिजनेसमैन वीरजी वोरा के बारे में, जिन्हें दुनिया का सबसे अमीर बिजनेसमैन कहा जाता है. यह दुनिया में उस दौरान एक माना जाना चेहरा थे. मुगल शासन के दौरान भी इनकी पॉपुलर्टी कम नहीं थी.  वह 1617 से 1670 के बीच ईस्ट इंडिया कंपनी के एक बड़े फाइनेंसर भी थे. इन्‍होंने उस समय ईस्ट इंडिया कंपनी को 2,00,000 रुपये का उधार दिया था. 


वीरजी वोरा की कुल कितनी थी संपत्ति 


गुजराती कारोबारी वीरजी वोरा का जन्म 1590 में हुआ था और उनकी मौत 1670 में हो गई थी. कुछ रिपोट्स की माने तो वीरजी वोरा एक थोक व्यापारी थे और उनकी निजी संपत्ति उस दौरान करीब 8 मिलियन रुपये थी. ऐसे में अगर हम मौजूदा समय की महंगाई से उनकी संपत्ति को कैलकुलेट करें तो वर्तमान समय में वीरजी वोरा की संपत्ति, एशिया के सबसे अमीर आदमी मुकेश अंबानी से कहीं ज्‍यादा होगी. डीएनए की रिपोर्ट के मुताबिक, वीरजी वोरा उस समय दुनिया के सबसे अमीर आदमी बन गए थे. 


किस चीज का करते थे कारोबार 


वीरजी वोरा कई उत्पादों का कारोबार करते थे, जिनमें काली मिर्च, सोना, इलायची और अन्य चीजें शामिल थीं. इन चीजों का कारोबार दुनिया के कई देशों के साथ किया जाता था. वीरजी वोरा 1629 से 1668 के बीच अंग्रेजों के साथ काफी व्यापारिक लेन-देन करते थे और इससे उन्हें अपना व्यापारिक साम्राज्य खड़ा करने में मदद मिली थी. ये अक्‍सर किसी उत्‍पाद का पूरा स्‍टॉक खरीद लेते थे और उसे मुनाफे पर बेच देते थे. 


औरंगजेब ने भी लिया था उधार 


वीरजी वोरा एक साहूकार भी थे और अंग्रेज भी उनसे पैसा उधार लेते थे. कुछ इतिहासकारों का दावा है कि जब मुगल बादशाह औरंगजेब भारत के दक्कन क्षेत्र को जीतने के लिए अपने युद्ध के दौरान वित्तीय संकट का सामना कर रहा था, तो उसने धन की मांग करते हुए अपने दूत को वीरजी वोरा के पास भेजा था. वीरजी वोरा का कारोबार पूरे भारत के साथ-साथ फारस की खाड़ी, लाल सागर और दक्षिण-पूर्व एशिया के बंदरगाह शहरों में फैला हुआ था. 


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