आम लोगों की भाषा में ‘सरकारी काम’ का मतलब लेट-लतीफी समझा जाता है. सरकार की एक ताजी रिपोर्ट लोगों की इस अवधारणा पर मुहर लगाती है. रिपोर्ट के अनुसार, विभिन्न विभागों की सैकड़ों सरकारी परियोजनाएं अपने तय समय से देर हो चुकी हैं और इस कारण उनकी लागत में हजारों करोड़ रुपये का इजाफा हो चुका है.


इस डिपार्टमेंट ने जारी की रिपोर्ट


रिपोर्ट के अनुसार, सबसे ज्यादा 402 परियोजनाएं सड़क परिवहन एवं राजमार्ग क्षेत्र की हैं, जिनका काम धीमा चल रहा है. इसके बाद रेलवे की 115 और पेट्रोलियम क्षेत्र की 86 परियोजनाएं देरी से चल रही हैं. यह रिपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर एंड प्रोजेक्ट्स मॉनिटरिंग डिपार्टमेंट ने जारी की है. यह डिपार्टमेंट सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय के अंतर्गत आता है. इसका काम 150 करोड़ रुपये से अधिक की लागत वाली केंद्रीय क्षेत्र की परियोजनाओं की निगरानी करना है.


करीब 1,500 प्रोजेक्ट का हिसाब


इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़ी परियोजनाओं की स्थिति पर मार्च की जारी रिपोर्ट के अनुसार, सड़क परिवहन एवं राजमार्ग क्षेत्र में 749 में से 402 परियोजनाओं में देरी हो रही है. वहीं रेलवे की 173 में से 115 परियोजनाएं अपने समय से पीछे चल रही हैं. पेट्रोलियम क्षेत्र की 145 में से 86 परियोजनाएं अपने निर्धारित समय से पीछे चल रही हैं. मार्च महीने की रिपोर्ट में 150 करोड़ रुपये से अधिक लागत वाली 1,449 परियोजनाओं का हिसाब-किताब है.


सबसे ज्यादा धीमा यह प्रोजेक्ट


रिपोर्ट से पता चलता है कि मुनीराबाद-महबूबनगर रेल परियोजना सबसे अधिक देरी वाली परियोजना है. यह अपने निर्धारित समय से 276 महीने पीछे है.    दूसरी सबसे देरी वाली परियोजना उधमपुर-श्रीनगर-बारापूला रेल परियोजना है. इसमें 247 माह का विलंब हो चुका है. इसके अलावा बेलापुर-सीवुड शहरी विद्युतीकरण दोहरी लाइन परियोजना अपने निर्धारित समय से 228 महीने पीछे है.


रिपोर्ट के अनुसार, 821 परियोजनाएं अपने मूल समय से पीछे हैं, जबकि 354 परियोजनाएं ऐसी हैं जिनकी लागत बढ़ चुकी है. 247 परियोजनाएं देरी से भी चल रही हैं और इनकी लागत भी बढ़ी है. 165 परियोजनाएं ऐसी हैं, जिनमें पिछले एक महीने के दौरान और देरी हुई है. इन 165 परियोजनाओं में से 52 परियोजनाएं बड़ी हैं. 1,000 करोड़ रुपये से अधिक की लागत वाली परियोजनाओं को इस श्रेणी में रखा जाता है.


इतनी बढ़ी है देरी से लागत


सड़क परिवहन एवं राजमार्ग क्षेत्र के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि 749 परियोजनाओं के क्रियान्वयन की मूल लागत 4,32,893.85 करोड़ रुपये थी, जो अब बढ़कर 4,51,168.46 करोड़ रुपये पर पहुंच सकती है. इस तरह इन परियोजनाओं की लागत 4.2 फीसदी बढ़ी है. रकम के हिसाब से बात करें तो सड़क परिवहन एवं राजमार्ग क्षेत्र की परियोजनाओं की देरी से सरकारी खजाने के ऊपर 20 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का बोझ बढ़ा है.


इसी तरह रेलवे क्षेत्र में 173 परियोजनाओं के क्रियान्वयन की मूल लागत 3,72,761.45 करोड़ रुपये थी, जिसे बाद में संशोधित कर 6,27,160.59 करोड़ रुपये कर दिया गया. इस तरह इनकी लागत में 68.2 फीसदी की वृद्धि हुई है. पेट्रोलियम क्षेत्र की 145 परियोजनाओं के क्रियान्वयन की मूल लागत 3,63,608.84  करोड़ रुपये थी, लेकिन बाद में इसे बढ़ाकर 3,84,082.25 करोड़ रुपये कर दिया गया है.


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