Rupee-Dollar: डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट जारी है. गुरुवार 7 सितंबर, 2023 को करेंसी मार्केट में एक डॉलर के मुकाबले रुपया अब तक अपने निचले लेवल 83.22 रुपये पर गिरकर क्लोज हुआ है. इस हफ्ते लगातार चौथे दिन डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट देखने को मिली है. अमेरिकी करेंसी डॉलर में मजबूती के अलावा कच्चे तेल के दामों में उछाल के कारण रुपये में ये ऐतिहासिक गिरावट देखने को मिली है.
और कमजोर हो सकता है रुपया
गुरुवार को एक डॉलर के मुकाबले रुपया 83.12 के लेवल पर खुला और 10 पैसे की गिरावट के साथ 83.22 रुपये पर क्लोज हुआ है. पहली बार रुपये इस लेवल पर क्लोज हुआ है हालांकि बीते साल अक्टूबर 2022 में रुपया 83.29 के लेवल तक जा गिरा था. करेंसी मार्केट की जानकारों की मानें तो शेयर बाजार में तेजी ने रुपये में बड़ी गिरावट आने से रोक लिया. वर्ना रुपये में बड़ी गिरावट आ सकती थी. हालांकि बुधवार को विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार में 3245.86 करोड़ रुपये के शेयरों की बिकवाली की है. जानकारों का मानना है कि मजबूत डॉलर और कच्चे तेल के दामों में उछाल के चलते रुपये में गिरावट का सिलसिला जारी रह सकता है.
कच्चे तेल में तेजी से रुपया कमजोर
रुपये में कमजोरी वजह कच्चे तेल के दामों में फिर से लौटी उबाल है. सऊदी अरब और रूस ने इस साल दिसंबर महीने तक कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती का फैसला किया है जिसके कच्चे तेल के दामों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेजी देखने को मिली है. ब्रेंट क्रूड ऑयल प्राइस 91 डॉलर प्रति बैरल के लेवल को पार कर गया. फिलहाल फिलहाल ये 90.19 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार कर रहा है.
तेल कंपनियों के मुनाफे में आएगी कमी
डॉलर के मुकाबले रुपये में कमजोरी और कच्चे तेल की कीमतों में उछाल का बड़ा झटका सरकारी ऑयल मार्केटिंग कंपनियों को लगने वाला है जिन्होंने कच्चे तेल के दामों में कमी के चलते 2023-24 की पहली तिमाही में मोटा मुनाफा बनाया था. मजबूत डॉलर और कच्चे तेल की कीमतों के 90 डॉलर प्रति बैरल के पार जाने के बाद इन कंपनियों के मुनाफे में कमी आ सकती है क्योंकि चुनावों के मद्देनजर लागत बढ़ने के बावजूद सरकार इन कंपनियों को पेट्रोल डीजल की कीमतें बढ़ाने की इजाजत नहीं देगी.
सस्ते पेट्रोल-डीजल संभव नहीं!
केंद्र की मोदी सरकार के लिए परेशानी का सबब ये है कि घरेलू एलपीजी सिलेंडर के दामों में कटौती के बाद पेट्रोल डीजल के दामों में कमी की संभावना जताई जा रही थी. लेकिन कच्चे तेल की कीमतों में तेजी के बाद सरकार के लिए ये फैसला लेना आसान नहीं होगा क्योंकि सरकारी तेल कंपनियों को पहले जितना दोनों ईंधन बेचने पर मुनाफा नहीं हो रहा है.
ये भी पढ़ें