क्यों डॉलर के आगे गिरता जा रहा रुपया, क्या डोनाल्ड ट्रंप का है इससे नाता?
Rupee Vs Dollar: साल 2024 में रुपया 85.61 प्रति डॉलर के रिकॉर्ड निचले स्तर पर बंद हुआ. यह लगातार सातवां साल है, जब रुपये में गिरावट जारी है.
Rupee vs Dollar: अमेरिकी डॉलर की मजबूती से रुपये में गिरावट जारी है. बुधवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया लगातार सातवें सत्र में सबसे निचले स्तर पर बंद हुआ. इस गिरावट से दुनिया के कई हिस्सों में मंदी और महंगाई दर की आशंकाओं की पुष्टि हुई. बुधवार को डॉलर के मुकाबले रुपया रिकॉर्ड निचले स्तर 85.6450 पर बंद हुआ, जो पिछले सत्र में 85.6150 पर बंद हुआ था.
दबाव में रहेगा रुपया
हालांकि साल के पहले दिन दुनिया के तमाम हिस्सों में न्यू ईयर सेलिब्रेशन के कारण कारोबार रोज के मुकाबले सुस्त रहा. लेकिन कारोबारियों का ऐसा मानना है कि डॉलर की लगातार मजबूती के मुकाबले धीमी विकास दर और बढ़ते व्यापारिक व्यापार घाटे के कारण रुपया घरेलू बाजार में दबाव में रहेगा. FX एडवाइजरी फर्म CR Forex के एमडी अमित पबारी ने द मिंट से बात करते हुए कहा, ''अस्थायी रूप ये रुपये पर दबाव बने रहने की उम्मीद है और यह 85.20 से 85.80 के बीच कारोबार कर सकता है.''
लगातार रुपये में गिरावट बनी चुनौती
इससे पहले रुपया 27 दिसंबर को ट्रेडिंग के दौरान अब तक के सबसे निचले स्तर 85.80 प्रति डॉलर पर पहुंचा था, जो पिछले दो साल में अब तक की सबसे बड़ी साप्ताहिक गिरावट को दर्शाता है. साल 2024 में भारतीय रुपये में लगातार सातवें साल गिरावट दर्ज की गई है.
इसके पीछे कई पिछली तिमाही में लिए गए कई बड़े फैसले हैं जैसे कि डोनाल्ड ट्रंप का एक बार फिर से अमेरिका का राष्ट्रपति बनना, जिससे डॉलर में तेजी आई है. इसके विपरीत भारत में आर्थिक विकास की दर धीमी बनी हुई है और व्यापार में हो रहे घाटे में इजाफा होना है. इसके अलावा, पूंजी प्रवाह का कमजोर होना भी रुपये के लिए एक समस्या है.
2024 में बॉन्ड पर जमकर हुआ निवेश
2023 के मजबूत निवेश के बाद 2024 में भारतीय शेयर बाजार में विदेशी निवेशकों ने अपने निवेश को कम कर दिया है. 2024 में विदेशी निवेशकों ने भारतीय इक्विटी में केवल 124 मिलियन डॉलर की शुद्ध खरीद की जो 2023 में 20.7 बिलियन डॉलर से कम है. हालांकि इस दौरान बॉन्ड में जमकर निवेश किया गया, जिसमें 2025 में गिरावट होने का अनुमान निवेशकों ने लगाया है. इसके लिए भारत और अमेरिका के केंद्रीय बैंकों के इंटरेस्ट रेट और रुपये की रफ्तार ऐसे दो कारक हैं जिन पर ध्यान देने की जरूरत है.
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