Rupee Fall Impact: डॉलर के मुकाबले रुपया हर दिन गिरावट का नया रिकॉर्ड बना रहा है. मंगलवार 11 अक्टूबर, 2022 को एक डॉलर के मुकाबले 82.42 के स्तर पर रुपया जा लुढ़का. पर भारत की मुश्किलें यही खत्म नहीं होने वाली. क्योंकि माना जा रहा है कि रुपया 84 से 85 के लेवल तक गिर सकता है. एलारा ग्लोबल रिसर्च ( Elara Global Reserach) के रिपोर्ट के मुताबिक कच्चे तेल के दामों में उछाल, बढ़ता व्यापार घाटा, विदेशी मुद्रा भंडार में कमी के चलते रुपये में और कमी आ सकती है. 


सोमवार को पहली बार रुपया 82.68 तक जा गिरा था जिसके बाद एलारा ग्लोबल रिसर्च ने ये रिपोर्ट जारी किया.  एलारा की इकोनॉमिस्ट गरिमा कपूर ने कहा कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व की सख्त मॉनिटरी पॉलिसी और ब्याज दरों में बढ़ोतरी का खामियाजा रुपये को उठाना पड़ा है. उन्होंने कहा कि व्यापार घाटे में बढ़ोतरी और कच्चे तेल के दामों में उछाल मुश्किलें बढ़ा रहा है. साथ ही उन्होंने आशंका जाहिर किया कि दिसंबर के आखिर तक रुपया एक अमेरिकी डॉलर के मुकाबले गिरकर 83.50 रुपये और मार्च 2023 तक 83 से 85 के लेवल तक आ सकता है. अमेरिका के जॉब डाटा के सामने आने के बाद रुपया एक डॉलर के मुकाबले अपने सबसे निचले स्तर 82.68 के स्तर तक जा गिरा था.  


अब सवाल उठता है कि गिरते रुपये का देश के विदेशी मुद्रा भंडार, व्यापार घाटा, चालू खाते का घाटा, तेल के इंपोर्ट बिल पर क्या असर पड़ेगा. 


विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट -  देश के विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार गिरावट देखी जा रही है. भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा जारी आंकड़े के मुताबिक भारत का विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves) 532.66 अरब डॉलर पर आ गया है. जो पिछले 2 सालों में सबसे कम है. दरअसल रुपये में गिरावट को थामने के लिए आरबीआई को बार बार डॉलर बेचना पड़ रहा है जिसके चलते विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आई है. 


Current Account Deficit - वैश्विक कारणों के चलते कमोडिटी प्राइसेज में उछाल और डॉलर के मुकाबले रुपये में कमजोरी के चलते इंपोर्ट महंगा हो चला है जिसका असर चालू खाते का घाटा (Current Account Deficit) के आंकड़े पर पड़ा है. मौजूदा वित्त वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही अप्रैल से जून में चालू खाते का घाटा बढ़कर 23.9 अरब डॉलर पर जा पहुंचा है जो कि जीडीपी का 2.8 फीसदी है.  जबकि जनवरी से मार्च तिमाही के दौरान चालू खाते का घाटा 13.4 अरब डॉलर था जो कि जीडीपी का 1.5 फीसदी है. जबकि पिछले वित्त वर्ष की इसी तिमाही में करंट अकाउंट डेफिसिट सरप्लस में 6.6 अरब डॉलर रहा था. 


आरबीआई का मानना है कि 2022-23 में करंट अकाउंट डेफिसिट जीडीपी का 3 फीसदी रहने का अनुमान है जो इसके पहले वित्त वर्ष में जीडीपी का 1.2 फीसदी रहा था. सरकार के सामने बड़ी चुनौती है कि करंट अकाउंट डेफिसिट किसी भी हाल में 3 फीसदी के ऊपर ना जाए.   


महंगे कच्चे तेल से बढ़ी मुश्किलें - रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद से ही कच्चा तेल के दामों में उबाल है. कच्चा तेल 129 डॉलर प्रति बैरल तक जा पहुंचा जो फिलहाल 97 डॉलर प्रति बैरल के करीब कारोबार कर रहा है. कच्चे तेल के दामों में उछाल और साथ में रुपये की कमजोरी और डॉलर की मजबूती के चलते भारत की तेल कंपनियों के इंपोर्ट करने के लिए ज्यादा कीमत का भुगतान करना पड़ रहा है. भारत अपने खपत का 80 फीसदी कच्चा तेल आयात करता है. कच्चे तेल के दामों में उबाल से चालू खाते का घाटा बढ़ सकता है. इससे ना केवल महंगाई बढ़ेगी बल्कि ज्यादा कीमत चुकाने के चलते विदेशी मुद्रा भंडार घटेगा.  


आपको बता दें इस साल के शुरुआत में भारत के पास 640 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार था. जिसमें 100 अरब डॉलर से ज्यादा की कमी आ गई है. और अब 532 अरब डॉलर रह गया है. कई जानकारों का मानना है कि भारत का विदेशी मुद्रा भंडार घटकर 500 अरब डॉलर तक आ सकता है. 


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