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रूस-यूक्रेन संकट का भारतीय अर्थव्यवस्था पर कोई सीधा असर नहीं, इस रिपोर्ट में किया गया है दावा

भारत की अर्थव्यस्था पर रूस-यूक्रेन युद्ध का कैसा असर होगा, इसको लेकर अलग-अलग रिपोर्ट आ रही हैं. अब एक ऐसी रिपोर्ट आई है जिसमें कहा गया है कि इस लड़ाई का डायरेक्ट असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर नहीं आएगा.

Indian Economy: रूस-यूक्रेन संकट से द्विपक्षीय कारोबार के मामले में भारत पर कोई प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं पड़ेगा लेकिन तेल के दाम में तेजी आने से अर्थव्यवस्था के समक्ष जोखिम पैदा हो सकता है. शुक्रवार को जारी बैंक ऑफ बड़ौदा (बीओबी) अर्थशास्त्रीय शोध रिपोर्ट में यह आशंका जताई गई. इसमें कहा गया है, ‘‘अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल के दाम 100 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर पहुंच गये हैं. इससे बाह्य स्तर पर स्थिरता और रुपये की गतिविधियों को लेकर जोखिम है.’’

रूस के यूक्रेन पर धावा बोलने से समस्याएं
रूस ने यूक्रेन पर सैन्य धावा बोला है. इससे जनजीवन प्रभावित होने के साथ क्षेत्र में विभिन्न समस्याएं बढ़ेंगी. पश्चिमी देश रूस के कदम के विरोध में उस पर वित्तीय पाबंदियां लगा रहे हैं. दुनिया के अन्य भागों में आर्थिक प्रभाव जिंसों के ऊंचे दाम, मुद्रास्फीति में तेजी और वृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव यानी गतिहीन मुद्रास्फीति (स्टैगफ्लेशन) के रूप में देखने को मिल सकता है.

ऊर्जा सप्लाई में बाधा हुई तो होगी दिक्कत
इनवेस्को ने एक रिपोर्ट में कहा, ‘‘अगर यह संकट बढ़ता है और ईरान की तरह रूस को पश्चिमी भुगतान और त्वरित संदेश प्रणाली (स्विफ्ट) से बेदखल किया जाता है तो ऊर्जा आपूर्ति में बाधा से गंभीर गतिहीन मुद्रास्फीति की स्थिति उत्पन्न हो सकती है.’’ रूस, यूरोप को 40 फीसदी गैस की आपूर्ति करता है जबकि कोयला समेत ठोस ईंधन की आपूर्ति में उसकी हिस्सेदारी आधी है. साथ ही एक तिहाई तेल की भी आपूर्ति करता है.

भारत पर प्रत्यक्ष असर नहीं
अब तक अमेरिका ने रूस को वैश्विक भुगतान प्रणाली के उपयोग से प्रतिबंधित नहीं किया है. बीओबी आर्थिक शोध रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘रूस-यूक्रेन संकट से द्विपक्षीय कारोबार को लेकर भारत पर कोई प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं पड़ेगा लेकिन तेल के दाम में तेजी से अर्थव्यवस्था के लिये बड़ा जोखिम है.’’

बजट में 75 डॉलर प्रति बैरल रखा गया था कच्चे तेल के दाम का लक्ष्य
वित्त वर्ष 2022-23 के केंद्रीय बजट और आरबीआई की द्विमासिक मौद्रिक नीति दोनों इस संकट से पहले पेश की गयी और उसमें कच्चे तेल की ऊंची कीमत के प्रभाव को शामिल नहीं किया गया है. रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘बजट और आरबीआई की मौद्रिक नीति में कच्चे तेल की कीमत 75 डॉलर प्रति बैरल रहने का अनुमान रखा गया है. हालांकि यह कीमत स्तर आने वाले समय में चुनौतीपूर्ण हो सकता है.’’

भारत का आयात ज्यादा
भारत अपनी तेल जरूरतों का 80 फीसदी आयात करता है. वित्त वर्ष 2020-21 में भारत ने 82.7 अरब डॉलर का तेल आयात किया था. जबकि चालू वित्त वर्ष में अप्रैल-जनवरी के दौरान 125.5 अरब डॉलर का तेल आयात किया गया है. हालांकि अब तेल की कीमत 8 साल के उच्च स्तर पर है, ऐसे में तेल आयात बिल ऊंचा रह सकता है.

चालू खाते का घाटा बढ़ने का अनुमान
रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘वित्त वर्ष 2021-22 में तेल आयात 155.5 अरब डॉलर रह सकता है. आर्थिक गतिविधियों में सुधार के साथ अगले वित्त वर्ष में भी तेल आयात में सुधार की उम्मीद है. तेल मांग में 5 फीसदी वृद्धि की उम्मीद है.’’ इसमें कहा गया है, ‘‘हमारा अनुमान है कि तेल के दाम में स्थायी तौर पर 10 फीसदी की वृद्धि से तेल आयात में 15 अरब डॉलर या जीडीपी का 0.4 फीसदी का इजाफा हो सकता है. इससे चालू खाते का घाटा बढ़ेगा.’’

व्यापार घाटा भी बढ़ सकता है
तेल के दाम में तेजी से रुपये पर भी असर पड़ा है. इससे व्यापार घाटा बढ़ेगा और अंतत: अंतरराष्ट्रीय व्यापार के मोर्चे पर स्थिरता प्रभावित होगी. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कच्चे तेल के दाम में 10 फीसदी की तेजी से उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति में प्रत्यक्ष और परोक्ष 0.15 फीसदी प्रभाव पड़ेगा. जबकि थोक मुद्रास्फीति का कच्चा तेल संबंधित उत्पादों में भारांश 7.3 फीसदी है. ऐसे में 10 फीसदी की वृद्धि से प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से थोक महंगाई दर में करीब एक फीसदी की वृद्धि हो सकती है.

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