नई दिल्लीः भारतीय स्टेट बैंक (SBI) के अध्यक्ष दिनेश कुमार खारा ने सीआईआई पार्टनरशिप समिट 2020 को संबोधित किया. इस दौरान उन्होंने कहा कि भारत के लिए देश की पूंजी की जरूरतों को पूरा करने के लिए अधिक विदेशी भागीदारी को प्रोत्साहित करना आवश्यक है. उनका कहना है कि अर्थव्यवस्था को लगभग 100 करोड़ रुपये की जरूरत के हिसाब से इंफ्रास्ट्रक्चर के प्रवाह के लिए जिस तरह की आवश्यकता है, वह तभी संभव होगा, जब हम अधिक से अधिक विदेशी भागीदारी को प्रोत्साहित करेंगे.


खारा ने भारत के विकास को बढ़ावा देने के लिए विदेशी धन प्राप्त करने को जरूरी बताते हुए कहा कि सरकार एक विकास वित्त संस्थान (डीएफआई) स्थापित करने पर सक्रिय रूप से विचार कर रही है. इसके जरिए आधारभूत ढांचा क्षेत्र की वित्तपोषण जरूरतों को पूरा करने में मदद मिलेगी. उनका कहना है कि अगर ऐसे किसी DFI को बनाया जाता है तो उससे धन का स्रोत पहले की तुलना में अब अंतरराष्ट्रीय बाजार से ज्यादा होना चाहिए.


दिनेश कुमार खारा का मानना ​​था कि बाजार को देखते हुए घरेलू बचत अर्थव्यवस्था में पूंजी का प्राथमिक स्रोत है. ऐसे में देश जिस विकास लक्ष्य को प्राप्त करना चाहता है उसे प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है.


वहीं केकेआर इंडिया के सीईओ संजय नायर का कहना है कि विदेशी धन आएगा और जाएगा, लेकिन देश की वृद्धि को निधि देने के लिए लंबे समय तक चलने वाला और प्रभावी तरीका है स्थानीय पूंजी बाजार का विकास करना. नायर ने कहा कि "हमें स्थानीय कॉर्पोरेट लोन बाजार के लिए बहुत कुछ करने की आवश्यकता है. हमें व्यापक स्तर पर स्थानीय बचत को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है."


सीआईआई पार्टनरशिप समिट 2020 के दौरान जे एम फाइनेंशियल लिमिटेड के प्रबंध निदेशक श्री विशाल कम्पानी ने कहा कि भारत के लिए $ 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था के अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए, कई और बैंकों का होना आवश्यक था. उनका कहना है कि "अगर हमें $ 5 ट्रिलियन के टारगेट तक पहुंचना है, तो हमें 10-15 अच्छी तरह से पूंजीकृत बैंकों की आवश्यकता है, जो कि वित्तीय बचत को उत्पादों की ओर ले जाने में सक्षम हों, जो हमारी दीर्घकालिक विकास आवश्यकताओं को निधि दे सकते हैं."


सिंगापुर के सुमितोमो मित्सुई बैंकिंग कॉर्पोरेशन, एशिया पैसिफिक डिवीजन के उप-प्रमुख, श्री राजीव कन्नन, प्रबंध कार्यकारी अधिकारी, ने उल्लेख किया कि बुनियादी ढांचा वित्तपोषण क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र है जहां देश भविष्य में बेहतर विकास की संभावना के लिए निवेश कर सकता है.


बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के चेयरमेन डॉ. जनमेजय सिन्हा ने इस बात पर जोर दिया कि हमारे देश में परियोजना वित्त अर्थव्यवस्थाएं और कार्यशील पूंजी अर्थव्यवस्थाएं हैं, और सभी विकसित अर्थव्यवस्थाएं पूंजीगत अर्थव्यवस्थाएं काम कर रही हैं. भारत जैसे देश ज्यादातर परियोजना-वित्त अर्थव्यवस्थाएं हैं, और इस तरह हमारी जैसी अर्थव्यवस्थाओं को रिस्क लेने की आवश्यकता है.


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