State Bank Of India: डिपाॅर्टमेंट ऑफ फाइनेंशियल सर्विस (DFC) ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को 8,800 करोड़ रुपये बिना मांगे ही दिए थे. संसद में CAG की रिपोर्ट में कहा गया है कि बैंक की ओर से वित्त वर्ष 2018 में इसकी मांग नहीं की गई थी. ये पूंजी कैपिटलाइजेशन एक्सरसाइज के रूप में दी है.
सरकार के इस विभाग यानी DFC की ओर से वित्त वर्ष 2017-18 में एसबीआई में क्रेडिट ग्रोथ (Credit Groth) के लिए 8,800 करोड़ रुपये का निवेश किया था. कैपिटलाइजेशन से पहले कोई समीक्षा भी नहीं की गई थी और बैंक की ओर से कोई मांग भी नहीं हुई थी. भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की 2023 की अनुपालन लेखा परीक्षा रिपोर्ट संख्या 1 का भी पालन नहीं किया गया था.
बैंकों को जारी किया गया 7,785.81 करोड़ रुपये का फंड
पीटीआई के मुताबिक, कैग की रिपोर्ट कहती है कि पीएसबी का कैपिटेलाइजेशन करते समय डिपाॅर्टमेंट ऑफ फाइनेंशियल सर्विस ने आरबीआई के नियमों और मापदंड पर विचार किया है. रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि आरबीआई (RBI) ने पहले ही भारत में बैंकों पर अतिरिक्त 1 प्रतिशत की बढ़ी हुई पूंजी आवश्यकता निर्धारित की थी. इसके मद्देनजर 7,785.81 करोड़ रुपये का एक्स्ट्रा फंड जारी हुआ है.
बैंक ऑफ महाराष्ट्र को दिए 831 करोड़ रुपये
रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2019-20 में बैंक ऑफ महाराष्ट्र में 831 करोड़ रुपये डाले, जबकि बैंक ने 798 करोड़ रुपये की मांग की थी, ताकि 33 करोड़ रुपये के सरेंडर से बचा जा सके. बता दें कि बैंकों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए सरकार की ओर से फंड जारी किया जाता है. सरकार आरबीआई के नियमों और मापदंड के मुताबिक पब्लिक सेक्टर के बैंकों के क्रेडिट ग्रोथ समेत कई चीजों को लेकर माॅनिटर करता है और मूल्यांकन के आधार पर फंड जारी करता है.
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