नई दिल्लीः भारतीय स्टेट बैंक समूह को मौजूदा वित्त वर्ष की दिसंबर ​तिमाही में 1886.57 करोड़ रुपये का शुद्ध घाटा हुआ है. बैंक का कहना है कि पिछली तिमाही में उसके फंसे कर्ज व प्रोविजनिंग में बढ़ोतरी से उसके कारोबार पर असर पड़ा है. साल दर साल आधार पर उल्लेखनीय है कि ​अक्तूबर-दिसंबर 2016-17 में बैंक ने 2152.14 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया था.


देश के सबसे बड़े बैंक ने बीएसई को सूचना दी है कि अक्तूबर-दिसंबर तिमाही में उसका शुद्ध एनपीए बढ़कर अग्रिम का 5.61 फीसदी हो गया जो कि पूर्व वित्त वर्ष की इसी अवधि में 4.24 फीसदी था. इस दौरान बैंक के एनपीए लगभग दोगुना होकर 102,370.12 करोड़ रुपये हो गईं जो कि पिछले साल 61,430.45 करोड़ रुपये थीं. इस दौरान बैंक की गैर- ब्याज आय 29.75 फीसदी घटकर 8,084 करोड़ रुपये रही.


एसबीआई ने दिसंबर में समाप्त तिमाही के दौरान निराशाजनक परिणाम दिखाये हैं. बैंक की दबाव वाली परिसंपत्तियों के बारे में पूरी जानकारी सामने नहीं आने और ट्रेजरी कारोबार में नुकसान के चलते बैंक को यह नुकसान हुआ.

बैंक ने हालांकि, उम्मीद जताई है कि वित्तीय वर्ष 2018-19 उसके लिये बेहतर रहेगा लेकिन चालू वित्त वर्ष की चौथी तिमाही को लेकर भी बैंक ने ज्यादा उम्मीद नहीं दिखाई है. फंसे कर्ज के समाधान में कमजोरी और संपत्तियों के दाम घटने की समस्या भी बैंक के सामने है. स्टेट बैंक के एकल परिणाम की यदि बात की जाये तो आलोच्य तिमाही में बैंक का घाटा और भी ज्यादा 2416 करोड़ रुपये रहा है.

बैंक के चेयरमैन रजनीश कुमार ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘तीसरी तिमाही के परिणाम निश्चित रूप से निराशाजनक रहे हैं, लेकिन आने वाले समय की यदि बात की जाये तो इसको लेकर काफी उम्मीद हैं. पहली अप्रैल से हम सकारात्मक शुरुआत करेंगे. मैं चौथी तिमाही को लेकर भी न तो बहुत ज्यादा उम्मीद में हूं और न ही निराशा में हूं.’’ तीसरी तिमाही के दौरान बैंक का 25,000 करोड़ रुपये का कर्ज एनपीए में तब्दील हो गया. ऐसा मुख्य तौर पर एनपीए के बारे में पूरी जानकारी नहीं देने या 23,330 करोड़ रुपये की पिछले वित्त वर्ष की राशि को लेकर भिन्नता होना है. यही वजह है कि बैंक का सकल एनपीए यानी कर्ज में फंसी परिसंपत्तियां पिछले साल के 7.23 फीसदी से बढ़कर 10.35 फीसदी हो गई. यह नोट करने वाली बात है कि सार्वजनिक क्षेत्र के इस बैंक में पहली बार इस तरह की भिन्नता सामने आई है. निजी क्षेत्र के बैंकों में यह एक सामान्य बात है.

उन्होंने कहा कि फंसे कर्ज के एवज में कुल प्रोविजनिंग एक साल पहले जहां 7244 करोड़ रुपये थी वहीं इस साल यह बढ़कर 17,759 करोड़ रुपये हो गई है. इसमें 6000 करोड़ रुपये का प्रावधान असहमति वाले हिस्से के लिये हुआ है. इसे मिलाकर प्रावधान का कवरेज औसत बढ़कर 65.92 फीसदी हो गई.