Loan Write-Off: 4 वर्ष में 8.48 लाख करोड़ रुपये का कर्ज हुआ राइट ऑफ, 5 वर्ष में 2.03 लाख करोड़ रुपये बैंकों ने किया रिकवर
Banks Loan Write-Off: सरकार ने बताया कि लोन के एनपीए होने के बाद उसे राइट-ऑफ करने पर भी कर्ज वसूली की प्रक्रिया जारी रहती है.
Write-Off Loan Recovery: केंद्र सरकार ने संसद को बताया है कि पिछले पांच सालों में बैंकों ने 2 लाख करोड़ रुपये ऐसे कर्ज की रिकवरी की है जिसे बट्टे खाते में डाल दिया गया था यानि राइट ऑफ कर दिया गया था. सरकार ने संसद के बताया कि सारफेसी एक्ट और डेट रिकवरी ट्राईब्यूल के जरिए इस डूब चुके कर्ज की रिकवरी की गई है. सरकार ने ये भी बताया कि चार सालों में बैंकों ने 848,182 करोड़ रुपये के कर्ज को राइट ऑफ किया है.
202,890 करोड़ रुपये राइट ऑफ लोन की रिकवरी
राज्यसभा में वित्त मंत्री से ये सवाल पूछा गया था कि पिछले पांच वर्षों में बैंकों से लिये कर्ज डिफॉल्ट करने वालों के एसेट बेचकर कितने ऐसे रकम की रिकवरी की गई है जिसे बट्टे खाते में डाल दिया गया था. इस सवाल का लिखित में जवाब देते हुए वित्त राज्यमंत्री भागवत कराड ने बताया कि सारफेसी एक्ट (SARFAESI Act) और डेट रिकवरी ट्राईब्युनल के जरिए आरडीबी एक्ट के तहत बैंकों के द्वारा एसेट बेचकर कर्ज की रिकवरी की जाती है. उऩ्होंने बताया कि आरबीआई के डाटा के मुताबिक 2017-18 से लेकर 2021-22 तक बीते पांच सालों में सारफेसी एक्ट के जरिए 154603 करोड़ रुपये की रिकवरी की गई तो और डेट रिकवरी ट्राईब्युनल के जरिए 48287 करोड़ रुपये कर्ज की बैंकों ने रिकवरी की है जिसे राइट ऑफ कर दिया गया था. यानि 202,890 करोड़ रुपये की रिकवरी बैंकों के द्वारा की जा चुकी है.
बैलेंसशीट की सफाई के लिए राइट ऑफ
भागवत कराड ने अपने जवाब में बताया कि एनपीए के चार साल पूरा होने पर उसके एवज में प्रॉविजनिंग करने के बाद उसे बट्टे खाते में डाल दिया जाता है. उन्होंने कहा कि आरबीआई के गाइडलाइंस और पॉलिसी को बोर्ड से मंजूरी लेने के बाद बैंक एनपीए का राइट ऑफ बैलेंसशीट की सफाई करने और टैक्स का लाभ लेने के लिए करते रहते हैं.
4 सालों में 848,182 करोड़ रुपये राइट ऑफ
उन्होंने बताया कि आरबीआई से मिले जानकारी के मुताबिक शेड्युल कमर्शियल बैंकों ने 2018-19 में 2,36,265 करोड़ रुपये, 2019-20 में 2,34,170 करोड़ रुपये, 2020-21 में 2,02,781 करोड़ रुपये और 2021-22 में 1,74,966 करोड़ रुपये के कर्ज को राइट ऑफ किया है. उन्होंने बताया कि कर्ज के बट्टे खाते में डालने के बावजूद कर्ज लेने वालों पर कर्ज अदाएगी की जिम्मेदारी बनती है. और राइट ऑफ लोन अकाउंट से कर्ज वसूली की प्रक्रिया चलती रहती है. कर्ज के राइट ऑफ करने का कर्जदार को कोई फायदा नहीं होता है बल्कि कानून के तहत वसूली की प्रक्रिया जारी रहती है. वैसे इन आंकड़ों को जोड़ दें तो चार सालों में बैंकों ने 848,182 करोड़ रुपये के कर्ज को राइट ऑफ किया है.
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