Karvy Scam: बाजार नियामक सेबी ने कार्वी डीमैट घोटाले से जुड़े मामले में सख्त एक्शन लेते हुए फैसला सुनाया. सेबी ने कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग लिमिटेड (KSBL) और उसके प्रमोटरों कोमांदुर पार्थसारथी पर 7 साल का बैन लगाया है. इसके साथ ही ग्राहकों को गुमराह करने के लिए उनके ऊपर 21 करोड़ रुपये का तगड़ा जुर्माना भी लगाया गया है. इसमें से 13 करोड़ रुपये का जुर्माना कर्वी ब्रोकिंग और 8 करोड़ रुपये का जुर्माना प्रमोटर पार्थसारथी को देना होगा.
पैसे लौटाने का दिया आदेश
इसके साथ ही मार्केट रेगुलेटर ने KSBL के दोनों सब्सिडियरी कार्वी रियल्टी इंडिया लिमिटेड और कर्वी कैपिटल लिमिटेड को 1,442.95 करोड़ रुपये का रकम वापस लौटाने का भी आदेश दिया है. ध्यान देने वाली बात ये हैं कि डीमैट खाते के स्कैम के जरिए इन्हीं कंपनियों को लाभ मिला था. अगर यह दोनों कंपनियां रकम लौटाने में नाकाम रहती है तो सेबी इन दोनों की प्रॉपर्टी को NSE से जब्त करके निलाम कर देगा और अपने पैसों की रिकवरी कर लेगा. गौरतलब है कि कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग घोटाला वित्त वर्ष 2017 से 2020 के बीच हुआ था.
अधिकारियों पर भी लगा तगड़ा जुर्माना
सेबी ने नियमों की अनदेखी करने के आरोप में कर्वी स्टॉक ब्रोकिंग पर जहां 13 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है, वहीं इस कंपनी के एमडी और प्रमोटर पार्थसारथी पर कुल 8 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया है. इसके साथ ही ब्रोकिंग कंपनी और पार्थसारथी को शेयर बाजार से 7 साल के लिए बैन भी कर दिया है. इसके साथ ही बाजार नियामक ने कंपनी के स्वतंत्र डायरेक्टरों भगवान दास नारंग और ज्योति प्रसाद पर 5-5 लाख रुपये का जुर्माने भी लगाया है. इसके साथ ही यह भी आदेश दिया है कि यह दोनों व्यक्ति अगले दो साल तक किसी भी मार्केट में लिस्टेड कंपनी पर अहम पद नहीं ले सकते हैं. सेबी ने कंपनी के सीईओ राजीव रंजन सिंद पर लापरवाही करने पर कड़ी फटकार लगाते हुए अगले दो साल तक किसी भी लिस्टेड कंपनी पर पद लेने से रोक लगा दी है. उन्हें शेयर मार्केट से भी दो साल दूरी बनाने को कहा गया है.
क्या था कार्वी घोटाला?
गौरतलब है कि कर्वी डीमैट घोटाला वित्त वर्ष 2017 से 2020 में किया गया था जब ब्रोकरेज फर्म ने अपने ग्राहकों के पैसे को गिरवी रखकर बैंकों और NBFC से कर्ज ले लिए थे. जिन बैंकों ने लोन लिया गया था इसमें एचडीएफसी बैंक, इंडसइंड बैंक, एक्सिस बैंक, आदित्य बिड़ला और बजाज फाइनेंस जैसे बैंक और NBFC शामिल थे. सेबी ने इस मामले में पाया कि कार्वी ने सितंबर 2009 तक कुल 2,700 करोड़ रुपये की संपत्ति के बदले बैंकों से 2,032.67 करोड़ रुपये का लोन लिया. कार्वी ने अपने कुल शेयरों का कम से कम 75 फीसदी हिस्सा लोन के लिए गिरवी रख दिया था. इस घोटाले के सामने आने के बाद सेबी की कई सवाल उठे थे.
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