Mutual Fund Fees: म्यूचुअल फंड में निवेश करने वाले निवेशकों को बड़ी राहत मिलने के आसार हैं. 28 जून 2023 को शेयर बाजार के रेग्यूलेटर सेबी (Securities and Exchange Board of India) के बोर्ड की अहम बैठक होने वाली है जिसमें म्यूचुअल फंड्स के निवेशकों से वसूले जाने वाले फीस स्ट्रक्चर में बड़े बदलाव करने पर मुहर लगाई जा सकती है. साथ ही म्यूचुअल फंड के एसेट मैनेजर्स के लिए सख्त कोड ऑफ कंडक्ट के नियम को लागू किया जा सकता है.  


सेबी ने म्यूचुअल फंड्स द्वारा यूनिट होल्डर्स से वसूलने वाले एनुअल चार्जेज यानि टोटल एक्सपेंस रेशियो (TER) में बड़े बदलाव की सिफारिश की है. इस बदलाव से म्यूचुअल फंड्स में निवेश पर आने वाली लागत में कमी आ सकती है. हालांकि म्यूचुअल फंड कंपनियां सेबी के सुझाव का विरोध भी कर रही हैं. सेबी ने अपने 18 मई को जारी किए गए डिस्कशन पेपर में स्कीम के आधार पर नहीं बल्कि फंड हाउस के लेवल पर टोटल एक्सपेंस रेशियो को एक समान बनाने को कहा है. 


इसका मतलब ये हुआ म्यूचुअल फंड अपने इक्विटी या डेट स्कीम को मैनेज किए जाने वाले एसेट के आधार पर  टोटल एक्सपेंस रेशियो वसूलना होगा. फिलहाल हर स्कीम को एसेट साइज के हिसाब से  टोटल एक्सपेंस रेशियो वसूलने की अनुमति है. 


सेबी ने म्यूचुअल फंड द्वारा निवेश और एडवाइजरी फीस पर निवेशकों और ब्रोकरेज हाउस से वसूले जाने वाले  सिक्योरिटी ट्रांजेक्शन टैक्स (STT) और गुड्स सर्विसेज टैक्स (GST) के साथ फंड हाउस जो ट्रेड एग्जीक्यूट करने के लिए ट्रांजैक्शन चार्ज का भुगतान करती हैं उसे टोटल एक्सपेंस रेशियो स्लैब में ही शामिल किए जाने का सुझाव दिया है. साथ ही टॉप 30 शहरों में यूनिट्स बेचने के लिए जो इंसेटिव दी जाती है उसे भी टोटल एक्सपेंस रेशियो स्लैब में ही शामिल करना का प्रस्ताव दिया है. हालांकि फंड हाउस एसटीटी और जीएसटीक को टोटल एक्सपेंस रेशियो स्लैब में लाने के पक्ष में नहीं हैं. 


दरअसल सेबी म्यूचअल फंड्स में निवेश पर कॉस्ट ऑफ इवेंस्टिंग को नीचे लाने पर जोर दे रही है. सेबी के इस फैसले के लागू होने से साइज ऑफ एसेट के हिसाब से म्यूचुअल फंड में निवेश करने वाले यूनिट होल्डर के लिए लागत में कमी आ सकती है.  



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