SEBI Rule: सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) यानी सेबी ने हाई रिस्क वाले विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) की ओर से अतिरिक्त खुलासे यानी ज्यादा जानकारी देने को अनिवार्य करने का प्रस्ताव किया है. सेबी ने इसे लेकर एक कंसलटेशन पेपर जारी कर दिया है. इसके तहत 25 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की इक्विटी होल्डिंग वाले फॉरेन इंवेस्टर्स को ज्यादा जानकारी देनी ही होगी. इस कंसलटेशन पेपर पर सेबी ने 20 जून 2023 तक प्रतिक्रियाएं मांगी हैं और इनके आधार पर नियमों में कुछ और बदलाव संभव है.
मिनिमम पब्लिक शेयरहोल्डिंग में किसी तरह की कोताही से बचने के लिए सेबी लाया कंसलटेशन पेपर
अपने कंसलटेशन पेपर में सेबी ने हाई रिस्क वाले ऐसे एफपीआई से बारीकी से जानकारी प्राप्त करने का प्रस्ताव किया है जिनका निवेश एकल कंपनियों या कारोबारी समूहों में केंद्रित हैं. इससे मिनिमम पब्लिक शेयरहोल्डिंग (एमपीएस) की जरूरत को लेकर किसी तरह की कोताही से बचा जा सकेगा. शेयर बाजार रेगुलेटर सेबी के संज्ञान में आया है कि कुछ एफपीआई ने अपने इक्विटी पोर्टफोलियो का एक बड़ा हिस्सा एक कंपनी में केंद्रित किया हुआ है. कुछ मामलों में तो यह हिस्सेदारी लंबे समय से कायम और बरकरार बनी हुई है.
एफपीआई रूट के गलत इस्तेमाल से बचने के लिए उठाया कदम
लिहाजा सेबी ने कहा, "इस तरह के केंद्रित निवेश से यह चिंता और संभावना बढ़ती है कि ऐसे कॉरपोरेट समूहों के प्रमोटर या अन्य इंवेस्टर मिनिमम पब्लिक शेयरहोल्डिंग जैसी रेगुलेटरी जरूरतों को दरकिनार करने के लिए एफपीआई रूट का इस्तेमाल कर रहे हैं." दिक्कत ये है कि लिस्टेड कंपनियों में जो फंड्स का फ्री फ्लोट देखा जाता है वो एक्चुअल है या नहीं इसका पता लगाना कठिन हो जाता है और ऐसे शेयरों में स्टॉक मैनिपुलेशन का डर बढ़ जाता है.
क्या है सेबी के कंसलटेशन पेपर में खास
कंसलटेशन पेपर मे प्रावधान रखा गया है कि अगर एफपीआई 6 महीने के अंदर किसी लिस्टेड ग्रुप में 50 फीसदी से ज्यादा होल्डिंग रखते हैं तो उन्हें इसके लिए अतिरिक्त खुलासे करने होंगे.
इन्हें रखा गया है हाई रिस्क वाली कैटेगरी में
प्रस्ताव के तहत ऐसे विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों को स्वामित्व, आर्थिक हित और ऐसे कोषों के नियंत्रण के बारे में अतिरिक्त खुलासा करने की जरूरत होगी. इसके साथ ही बाजार रेगुलेटर सेबी ने रिस्क के आधार पर एफपीआई का क्लासीफिकेशन करने का सुझाव दिया है. इसके तहत सरकार और संबंधित इकाइयों मसलन केंद्रीय बैंक और सॉवरेन वैल्थ फंड्स को लो रिस्क वाली कैटेगरी में रखा गया है, वहीं पेंशन फंड्स और पब्लिक रिटेल फंड्स को मीडियम रिस्क के रूप में क्लासीफाई किया गया है. इनके अलावा अन्य सभी एफपीआई को हाई रिस्क वाली कैटेगरी में रखा गया है.
ये भी पढ़ें
Elon Musk को 'महंगी' पड़ी ट्विटर की डील, घटकर सिर्फ एक तिहाई रह गई वैल्यू-रिपोर्ट