म्यूचुअल फंड के निवेशकों के लिए सेबी ने उठाया कदम, जानिए कैसे कम होगा रिस्क
म्यूचुअल फंड में जोखिम को बताने वाले रिस्क-ओ-मीटर में सेबी ने अब एक नई कैटेगरी जोड़ी है. यह नई कैटेगरी 'वेरी हाई रिस्क' के तौर पर जानी जाएगी.
सेबी ने म्यूचुअल फंड निवेशकों को रिस्क से बचाने के लिए लेबलिंग का तरीका बदला है. म्यूचुअल फंड में जोखिम को बताने वाले रिस्क-ओ-मीटर में इसने अब एक नई कैटेगरी जोड़ी है. यह नई कैटेगरी 'वेरी हाई रिस्क' के तौर पर जानी जाएगी. अब तक इसमें चार कैटेगरी थी - लो, लो टू मॉडरेट, मॉडरेट , मॉडेरटली हाई और हाई लेकिन अब एक और रिस्क कैटेगरी होगी.
क्या है रिस्क-ओ-मीटर ?
रिस्क-ओ-मीटर एक तरह का चार्ट होता है जो म्यूचुअल फंड प्रोडक्ट से जुड़े जोखिम को दिखाता है. वैसे म्यूचुअल फंड के रिस्क को हम कई पैमाने से जान सकते हैं. इनमें मार्केट कैपिटलाइजेशन, वोलेटिलिटी और लिक्विडिटी जैसे पैमाने शामिल हैं. इसके अलावा डेट स्कीमों के लिए जोखिम क्रेडिट, इंटरेस्ट रेट और लिक्विडिटी हैं. सेबी ने रिस्क दिखाने के लिए शुरू हुए पैमाने को 1 जनवरी, 2021 से लागू करने को कहा है , लेकिन म्यूचुअल फंड्स स्कीम चाहें तो अपनी मर्जी से, इससे पहले से ही इसे लागू कर सकते हैं.
रिस्क लेबल में बदलाव की जानकारी देनी होगी
सेबी ने अपने नए सर्कुलर में कहा है कि म्यूचुअल फंड स्कीम की स्पेशिलिटी के मुताबिक उसे रिस्क लेवल देंगे. म्यूचअल फंड को यह काम स्कीम या न्यू फंड ऑफर लॉन्च करते वक्त करना होगा. सेबी ने कहा है कि अगर रिस्क-ओ-मीटर में कोई बदलाव आता है तो उसके बारे में म्यूचुअल फंड को निवेशकों को ई-मेल या एसएमएस के जरिये बताना होगा. रिस्क-ओ-मीटर का मूल्यांकन हर महीने होगा. म्यूचु्अल फंड कंपनियों को अपनी सभी स्कीमों के साथ रिस्क-ओ-मीटर की जानकारी अपनी और AMFI की वेबसाइट पर देनी होगी. हर महीने के 20 या 21 तारीख को इसकी जानकारी देनी होगी.
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