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अमेरिका-यूरोप से लेकर चीन तक बेहाल, नहीं थमेगी लेकिन भारत की चाल!

Indian Economy: पूरी दुनिया इन दिनों गंभीर आर्थिक हालातों का सामना कर रही है. कई देशों में आर्थिक मंदी आ चुकी है. दूसरी ओर भारत के आर्थिक आंकड़े मजबूती दिखा रहे हैं...

Global Economic Recession 2023: पिछले कुछ साल वैश्विक अर्थव्यवस्था (Global Economy) के लिए ठीक नहीं रहे हैं और 2023 में भी हाल नहीं बदला है. लगातार ब्याज बढ़ाने के बाद भी महंगाई (Inflation) कम होने का नाम नहीं ले रही है. पिछले साल से जिस आर्थिक मंदी (Economic Recession) के सिर्फ कयास लग रहे थे, अब वह सच साबित हो चुकी है. ट्रेंड को दशकों से मात देते आए चीन में नरमी के संकेत दिख रहे हैं. इस तरह की स्थिति में भारत की अर्थव्यवस्था (Indian Economy) बड़ी उम्मीदें जगा रही है. लगातार कई एजेंसियां भारतीय अर्थव्यवस्था से उम्मीद जाहिर करती आई हैं और अब आंकड़े तमाम उम्मीदों को आधार देने लग गए हैं.

यूरोप में तो आ गई मंदी

भारत की बात करने से पहले दुनिया के हालात को जान लेते हैं. जर्मनी करीब 4.30 लाख करोड़ रुपये की जीडीपी के साथ यूरोप की सबसे बड़ी और दुनिया की चौथे नंबर की अर्थव्यवस्था है. मार्च तिमाही के दौरान जर्मनी की जीडीपी में 0.3 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है. इससे पहले दिसंबर 2022 की तिमाही में जर्मनी की जीडीपी का साइज 0.50 फीसदी कम हुआ था. इस तरह यूरोप की सबसे बड़ी और दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था आधिकारिक तौर पर आर्थिक मंदी का शिकार बन चुकी है.

यूएस की हालत खराब

चोटी की अन्य अर्थव्यवस्थाओं को देखें तो कहीं से अच्छे संकेत नहीं दिख रहे हैं. अमेरिका इन दिनों कई आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहा है. एक दिन पहले तक दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के सामने इस बात का खतरा था कि वह इतिहास में पहली बार उधार चुकाने में चूक कर दे. जैसे-तैसे अमेरिकी संसद में बात बन पाई है और फिलहाल के लिए यह खतरा टला है. अप्रैल महीने के दौरान अमेरिका में खुदरा महंगाई 4.9 फीसदी रही है. इसके चलते अब जून महीने में फेडरल रिजर्व के द्वारा ब्याज दरों में एक बार फिर से 0.25 फीसदी की बढ़ोतरी करने का खतरा बढ़ गया है. अगर ऐसा होता है तो अमेरिका में ब्याज दरें 5 फीसदी के उच्च स्तर पर पहुंच जाएंगी, जो महज 2 साल पहले शून्य फीसदी के पास थी. ब्याज दरें बढ़ने का घातक असर अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर देखने को मिलेगा, जो पहले से ही मंदी की दहलीज पर है.

पस्त पड़ने लगा चीन

दुनिया की फैक्ट्री के संबोधन से मशहूर चीन कई दशकों से ग्लोबल ग्रोथ के इंजन का काम करता आया है. अभी यह अमेरिका के बाद दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी है और ग्लोबल सप्लाई चेन में इसकी भूमिका निर्णायक है. हालांकि कुछ ताजा आंकड़े निराशा बढ़ाने वाले संकेत दे रहे हैं. मई महीने के दौरान चीन में मैन्यूफैक्चरिंग पीएमआई गिरकर पांच महीने के निचले स्तर 48.8 पर आ गया. इसका मतलब हुआ कि चीन में कारखानों की गतिविधियां मई के दौरान पांच महीने में सबसे कम रहीं. सर्विस सेक्टर में सुस्ती देखने को मिली. इसे अच्छा संकेत नहीं माना जा रहा है.

भारत की रफ्तार दमदार

अब भारत की बात करते हैं. एक दिन पहले यानी 31 मई बुधवार को अर्थव्यवस्था से जुड़े कई बड़े आंकड़े जारी किए गए. सबसे पहले आर्थिक वृद्धि के आंकड़े को देख लेते हैं. भारतीय अर्थव्यवस्था ने मार्च तिमाही के दौरान तमाम उम्मीदों से बेहतर प्रदर्शन किया और 6.1 फीसदी की दर से वृद्धि की. वहीं पूरे वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान भारत की आर्थिक वृद्धि दर 7 फीसदी के पार निकल गई और 7.2 फीसदी रही. यह किसी भी प्रमुख वैश्विक अर्थव्यवस्था की तुलना में सबसे शानदार आर्थिक वृद्धि दर है. आधिकारिक आंकड़े जारी करते हुए एनएसओ ने चालू तिमाही यानी अप्रैल-जून 2023 के दौरान ग्रोथ रेट 13.1 फीसदी रहने का अनुमान दिया है. इसका मतलब है कि आने वाले समय में भी रफ्तार बढ़िया रहने वाली है.

बढ़ी सरकार की कमाई

इससे पहले राजकोषीय घाटे के आंकड़े जारी किए गए और ये उम्मीदों के अनुरूप रहे. सीजीए के आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2022-23 में भारत का राजकोषीय घाटा जीडीपी के 6.4 फीसदी के बराबर रहा. वित्त मंत्रालय के संशोधित अनुमान में भी राजकोषीय घाटा इतना ही रहने का लक्ष्य रखा गया था. यह बताता है कि सरकार को बढ़े खर्च के हिसाब से कमाई में भी बढ़ोतरी का फायदा हो रहा है.

भारत का कद मजबूत

इनके बाद गुरुवार को भारतीय विनिर्माण क्षेत्र का पीएमआई डेटा सामने आया. एसएंडपी ग्लोबल के अनुसार, मई महीने के दौरान भारत के विनिर्माण क्षेत्र का पीएमआई बढ़कर 58.7 पर पहुंच गया. यह अक्टूबर 2020 के बाद का सबसे बेहतर आंकड़ा है. इसका मतलब हुआ कि मई महीने के दौरान भारत के कारखानों ने पिछले ढाई साल का सबसे बेहतर प्रदर्शन किया. अच्छी बात यह है कि घरेलू विनिर्माण क्षेत्र को स्थानीय और बाहरी दोनों कारकों से मदद मिल रही है. एसएंडपी ग्लोबल की इकोनॉमिस्ट पॉलिएना डी लीमा (Pollyanna De Lima) कहती हैं कि घरेलू ऑर्डरों में तेजी के ट्रेंड ने भारतीय अर्थव्यवस्था के आधार को मजबूत किया है. वहीं बाहरी व्यापार में सुधार से अंतरराष्ट्रीय भागीदारी बढ़ रही है और वैश्विक बाजार में भारत की स्थिति मजबूत हो रही है.

क्या कहते हैं अर्थशास्त्री

बिहार इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी (Bihar Institute of Public Finance and Policy) के इकोनॉमिस्ट डॉ सुधांशु कुमार (Dr Sudhanshu Kumar) का मानना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था अभी कुछ वैसी परिघटनाओं से गुजर रही है, जिसे चीन पहले ही देख चुका है. डब्ल्यूईएफ ने स्नोबॉल इफेक्ट की बात की है. इसका मतलब हुआ कि भारतीय अर्थव्यवस्था बर्फ के बड़े गोले की तरह आगे बढ़ रही है और यह जितनी बार गोल घूम रही है, साइज पहले से बहुत बढ़ जा रहा है. ऐसी स्थिति में इकोनॉमी में कुछ ही सालों में कई गुणा की वृद्धि देखने को मिलती है. सरकार ने देश में विनिर्माण को बढ़ाने पर खूब जोर दिया है. पीएलआई स्कीम से विनिर्माण बढ़ रहा है और इससे निर्यात बढ़ाने में मदद मिल रही है. भारत खुद एक बहुत बड़ा बाजार है. घरेलू स्तर पर मांग मजबूत बनी रहने से बाहरी चीजों का असर कम हो जाता है. यही कारण है कि भारत 2008 के समय में भी वैश्विक आर्थिक मंदी की चपेट में नहीं आया था.

ये भी पढ़ें: 1000 अरब डॉलर की वैल्यू, 5 सालों में इन 8 कंपनियों ने हासिल किया मुकाम

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