जुलाई 31 को आयकर रिटर्न (ITR) दाखिल करने की आखिरी तारीख होते हुए भी जब भारत के बाकी हिस्से इस प्रक्रिया में व्यस्त थे, सिक्किम राज्य इस आपाधापी से पूरी तरह मुक्त रहा. इसकी वजह है भारतीय आयकर अधिनियम की धारा 10 (26AAA) के तहत दी गई विशेष छूट, जो सिक्किम को 1975 में भारत में विलय के बाद से आयकर से मुक्त रखती है.


सिक्किम को आयकर से छूट क्यों?


सिक्किम के भारत में शामिल होने से पहले वहां की अलग कर प्रणाली थी और निवासियों पर भारतीय आयकर कानून लागू नहीं होता था. सरकार ने इस व्यवस्था को बनाए रखने के लिए सिक्किम को आयकर से छूट दी. 2008 में केंद्रीय बजट के तहत "सिक्किम टैक्स एक्ट" को खत्म कर दिया गया और आयकर अधिनियम की धारा 10(26AAA) के जरिए यह छूट लागू की गई. यह विशेष छूट संविधान के अनुच्छेद 371(f) के तहत सिक्किम के विशेष दर्जे को बरकरार रखने के लिए दी गई.


कानूनी चुनौती और विवाद


2013 में, "एसोसिएशन ऑफ ओल्ड सेटलर्स ऑफ सिक्किम" ने सुप्रीम कोर्ट में धारा 10 (26AAA) की संवैधानिकता को चुनौती दी. उन्होंने तर्क दिया कि "सिक्किमी" की परिभाषा में दो समूहों को गलत तरीके से बाहर रखा गया है. पहले, वे भारतीय जो 26 अप्रैल 1975 से पहले सिक्किम में बस गए थे लेकिन "सिक्किम सब्जेक्ट्स रजिस्टर" में उनका नाम नहीं है. दूसरे, वे सिक्किमी महिलाएं जिन्होंने 1 अप्रैल 2008 के बाद गैर-सिक्किमी पुरुषों से शादी की.


धारा 10 (26AAA) के तहत "सिक्किमी" की परिभाषा में वे लोग शामिल थे जो 26 अप्रैल 1975 से पहले "सिक्किम सब्जेक्ट्स रजिस्टर" में दर्ज थे या जिनके करीबी रिश्तेदार इस रजिस्टर में दर्ज थे. हालांकि, यह परिभाषा सिक्किम में बसे लगभग 1% लोगों को छूट के दायरे से बाहर रखती थी.


सुप्रीम कोर्ट का निर्णय


सुप्रीम कोर्ट ने 1 अप्रैल 2008 के बाद गैर-सिक्किमी पुरुषों से शादी करने वाली सिक्किमी महिलाओं को आयकर छूट से बाहर रखने के नियम को भेदभावपूर्ण पाया. अदालत ने इसे समानता के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन बताया. अदालत ने कहा कि यह नियम न केवल असमान है, बल्कि सिक्किमी महिलाओं के अधिकारों को भी कमजोर करता है. यह ऐतिहासिक निर्णय सिक्किम के निवासियों के अधिकारों और समानता के सिद्धांत को और मजबूत करता है.


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