Petrol Diesel Price: मई 2014 से लेकर अब तक कच्चे तेल के दाम जस का तस, लेकिन पेट्रोल डीजल 34 से 61 फीसदी हुआ महंगा!
Petrol Diesel Prices Since 2014: 2014 के मुकाबले पेट्रोल 34 फीसदी तो डीजल 61 फीसदी महंगे दाम पर मिल रहा. जबकि कच्चे तेल की कीमत करीब वही है जो मई 2014 में हुआ करता था.
Petrol Diesel Price During Modi Sarkar: 21 मई को मोदी सरकार ने बढ़ती महंगाई से परेशान आम लोगों को राहत देने के लिए पेट्रोल डीजल पर एक्साइज ड्यूटी घटाने का फैसला किया. पेट्रोल पर 8 रुपये तो डीजल पर 6 रुपये प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी घटा दिया गया. इससे कुछ हदतक लोगों को जरुर राहत मिलेगी. लेकिन ये भी सच है कि मोदी सरकार ने 8 साल के अपने कार्यकाल के दौरान कच्चे तेल के दामों में भारी कमी के बावजूद आम लोगों को सस्ते तेल के फायदा देने की बजाये अपना खजाना भरना जरुरी समझा.
सस्ते कच्चे तेल का आम लोगों को फायदा नहीं
मोदी सरकार को सत्ता में आए इस महीने 8 साल पूरे हो चुके हैं. यूपीए सरकार को बेदखल कर मोदी सरकार जब 2014 में सत्ता में आई तब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम 110 डॉलर प्रति पर था. पेट्रोल 71.41 रुपये और डीजल 55.49 रुपये प्रति लीटर में मिल रहा था. मोदी सरकार के सत्ता पर काबिज होने के बाद वैश्विक कारणों के चलते अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दामों में गिरावट का सिलसिला शुरू हो गया. मोदी सरकार ने जब सत्ता में एक साल पूरा किया तब कच्चे तेल के दामों में 41 फीसदी की कमी आ चुकी थी तो दूसरे सालगिरह मई 2016 के दौरान 56 फीसदी कच्चा तेल सस्ता हो चुका था. लेकिन पेट्रोल के दामों में केवल 11 फीसदी की कमी की गई तो डीजल 16 फीसदी केवल सस्ता हुआ. कोरोना माहामारी के दौरान जब पूरी दुनिया घर के भीतर बंद थी. भारत में लॉकडाउन लगा था. तब मांग नहीं होने के चलते कच्चे तेल के दाम औंधे मुंह गिर चुके थे. मई 2020 में कोरोना काल के दौरान जब मोदी सरकार को सत्ता में आए 6 साल पूरे हो रहे थे तब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल 33 डॉलर प्रति बैरल के करीब कारोबार कर रहा था. यानि 2014 के मुकाबले अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल 70 फीसदी के करीब सस्ता हो चुका था. लेकिन केंद्र की मोदी सरकार 2014 के मुकाबले पेट्रोल 2.54 फीसदी सस्ते दाम पर बेच रही थी तो डीजल 12 फीसदी ऊंचे दामों पर मिल रहा था.
बढ़ती महंगाई के चलते बैकफुट पर आई सरकार
24 फरवरी 2022 से रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष शुरू हुआ तो कच्चा तेल के दामों में आग गई गई. अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम 110 डॉलर प्रति बैरल के पार जा पहुंचा. केंद्र सरकार ने पांच राज्यों में चल रहे विधानसभा चुनावों के मद्देनजर पहले कीमतें नहीं बढ़ाई. लेकिन 22 मार्च 2022 से दाम बढ़ने का सिलसिला शुरू हुआ. सरकारी तेल कंपनियों ने 10 रुपये प्रति लीटर पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ा दिए. राजधानी दिल्ली में पेट्रोल 105.41 रुपये प्रति लीटर तो डीजल 96.67 रुपये प्रति लीटर के भाव पर मिल रहा था. 2014 और 2022 में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दामों लगभग एक समान है लेकिन बीते 8 सालों में पेट्रोल 48 फीसदी तो डीजल 74 फीसदी से ज्यादा महंगा हो चुका था. लेकिन खुदरा महंगाई दर के 8 सालों के उच्चतम स्तर और थोक महंगाई दर के 9 साल के हाई लेवल पर आने के बाद सरकार पर दवाब बना. आरबीआई ने भी टैक्स घटाने की नसीहत दी, जिसके बाद और 21 मई को सरकार ने पेट्रोल पर 8 रुपये तो डीजल पर 6 रुपये एक्साइज ड्यूटी घटाने का फैसला किया. इसके बावजूद 2014 के मुकाबले पेट्रोल 34 फीसदी तो डीजल 61 फीसदी महंगे दाम पर मिल रहा. जबकि कच्चा तेल की कीमत करीब वही है जो 2014 में हुआ करता था.
मोदी सरकार के दौर में क्यों महंगा हुआ पेट्रोल डीजल
मई 2014 से नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में पेट्रोल और डीजल पर लगाए जाने वाली एक्साइज ड्यूटी भी 530 फीसदी तक बढ़ाये गए. जबकि ब्रेंट क्रूड की कीमतें आज तकरीबन वहीं पर हैं, जहां मोदी सरकार के पहले कार्यकाल की शुरूआत में थी. 2014 में मोदी सरकार में सत्ता में आई थी तब पेट्रोल पर 9.48 रुपये/लीटरऔर डीजल पर 3.56 रुपये प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी लगता था. लेकिन 4 नवंबर 2021 से पहले मोदी सरकार पेट्रोल पर 32.98 रुपये और डीजल पर 31.83 रुपये प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी वसूल रही थी. लेकिन पहले दिवाली पर और अब मई 2022 में मोदी सरकार ने एक्साइज ड्यूटी घटाया है. बावजूद इसके मोदी सरकार पेट्रोल पर 19.90 रुपये और डीजल पर 15.80 रुपये प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी वसूल रही है.
2010 में पेट्रोल के दाम बाजार के हवाले
सवाल उठता है कि सस्ते तेल का फायदा आम लोगों को देने के अपने ही वादे से मोदी सरकार क्यों मुकर गई. जून 2010 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने पेट्रोल की कीमतों को डीरेग्युलेट ( Petrol Price Deregulate) करने यानी बाजार के हवाले करने का फैसला लिया था. इसके बाद से सरकारी तेल कंपनियां पेट्रोल की कीमतें तय किया करती थीं. लेकिन डीजल की कीमतों पर सरकार का नियंत्रण जारी था. डीजल को बाजार भाव से कम दाम पर बेचा जा रहा था. जिससे तेल कंपनियों को नुकसान हो रहा था.
डीरेग्युलेशन के बाद भी फायदा नहीं
लेकिन अक्टूबर 2014 में मोदी सरकार ने डीजल की कीमतों को भी डीरेग्युलेट करने का निर्णय ले लिया. डीजल की कीमतों को भी तय करने का अधिकार सरकारी तेल कंपनियों को सौंप दिया गया. तब इस फैसले की घोषणा करते हुये तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था पेट्रोल की तरह डीजल की कीमतें भी बाजार आधारित हो गई है. अंतर्राष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल के दाम बढ़ेंगे तो उपभोक्ता को ज्यादा कीमत देना होगा और दाम कम होने पर उपभोक्ता को सस्ते तेल का लाभ मिलेगा. लेकिन बड़ा सवाल उठता है कि क्या अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम जब भी कम हुए तो इसका लाभ उपभोक्ता को नहीं मिला.
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