Growth of Indian Brands: आर्थिक उदारीकरण के बाद भारत आई ग्लोबल कंपनियों की पैसों की ताकत के सामने देसी कंपनियां टिक नहीं पाईं. धीरे-धीरे भारतीय बाजार से छोटे-छोटे इंडियन ब्रांड गायब हो गए. मगर, अब देसी ब्रांडों ने पिछले कुछ समय में जबरदस्त वापसी की है. देसी कंपनियों ने अब ग्लोबल एफएमसीजी (FMCG) ब्रांड्स की नाक में दम कर दिया है. बिस्किट, साबुन और डिटर्जेंट पाउडर जैसे कई सेगमेंट में बाजार हिस्सेदारी तेजी से बढ़ाई है. बड़ी कंपनियों की नजर भी इस ट्रेंड पर गई है. वह पता लगाने में जुट गए हैं कि इस सफलता के पीछे असली कारण कौन-कौन से हैं और उनसे कैसा निपटा जाए.
कीमत और वजन से मात दे रहे देसी ब्रांड
पूरी दुनिया में काम कर रहे इन ग्लोबल एफएमसीजी ब्रांड को छोटे इंडियन ब्रांड कम कीमत और ज्यादा वजन देकर मात दे रहे हैं. महंगाई के चलते परेशान कंज्यूमर को देसी ब्रांड के ऐसे ऑफर लुभा रहे हैं. स्थानीय कंपनियां ज्यादा डिस्काउंट देकर भी काफी लाभ कमा ले रही हैं. पिछले दो तिमाही में थोक महंगाई नियंत्रण में रहने से देसी ब्रांड्स के लिए स्थानीय स्तर पर सस्ता माल जुटाना संभव हो गया है. वह लाभ भी कमा ले रही हैं. कोविड-19 के बाद लगे लॉकडाउन ने भी बाजार को बदला है. उससे स्थानीय कंपनियों को लोगों के बीच में पहचान बनाने में काफी आसानी हुई.
ग्लोबल कंपनियों के लिए आसान नहीं रहा भारत
पिछले कुछ सालों में साबुन, डिटर्जेंट, बालों का तेल, चाय, बिस्किट, रस्क जैसे सेगमेंट में बड़ी कंपनियों की पकड़ ढीली हुई है. उदाहरण के तौर पर देश में लगभग 2500 छोटी कंपनियां रस्क बनाती हैं. साथ ही स्नैक्स सेगमेंट में लगभग 3000 देसी कंपनियां काम कर रही हैं. इन सेगमेंट में चाहकर भी बड़ी एफएमसीजी कंपनियां कुछ नहीं कर पा रही हैं.
सेल में 31 फीसद तक की बढ़ोतरी
इन लोकल ब्रांड्स की सेल सितंबर में समाप्त हुई तिमाही में लगभग 31 फीसद बढ़ी है. कपड़े धोने वाले साबुन के सेगमेंट में 4 फीसद और वाशिंग पाउडर की सेल में 13 फीसद की वृद्धि दर्ज की है जबकि बड़े ब्रांड सिर्फ 0 से 3 फीसद की दर से ही बढ़े हैं. साबुन के सेगमेंट में 31 फीसद और बिस्किट में 22 फीसद की दर से देसी ब्रांडों ने तरक्की की. उधर, बड़ी एफएमसीजी कंपनियां 2 से 10 फीसद की ग्रोथ ही इन सेगमेंट में हासिल कर पाईं.
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