पिछले कुछ सालों से स्टार्टअप कल्चर में उछाल देखने को मिला है. साल 2025 तक इसके तहत कारोबार 974 मिलियन से अधिक बढ़ने का अनुमान है. आज हर छोटे बड़े शहर में स्टार्टअप्स ट्रेंड ज़ोर पकड़ रहा है. ऐसे में यह जानना बेहद ज़रूरी है कि क्या वाकई ये स्टार्टअप्स मुनाफे में हैं या बाज़ार का तैयार किया एक गुब्बारा है जो किसी भी समय फट सकता है.


क्या है स्टार्टअप चलन की वजह 


एक समय था जब भारत में ई-कॉमर्स स्टार्टअप्स को तमाम चुनौतियों का सामना करना पड़ता था. उनके उत्पादों/सेवाओं को आजमाने या उनका उपभोग करने में लोग हिचकते थे जिसकी एक बड़ी वजह जानकारी की कमी थी. जबकि, आज की स्थिति बदली हुई है. आज का ग्राहक एक सूचित उपभोक्ता है जिस तक विभिन्न चैनलों के माध्यम से पहुंचा जा सकता है. व्यापार के लिए उपभोक्ताओं में भरोसा पैदा करने का काम अब और आसान हो गया है. बढ़िया सेवाएं और सौदे लोगों को आकर्षित कर रहे हैं साथ ही ये घरेलू बाजारों में वृद्धि कर रहे हैं.


 आईटी बूम लाया टैलेंट पूल 


भारत में प्रतिभा की कमी नहीं है. भारतीय स्टार्टअप विशेष रूप से ई-कॉमर्स में जरूरी मानव संसाधन के बिना कल्पना भी नहीं की जा सकती. बड़े पैमाने पर युवा आईटी के क्षेत्र को चुन रहे हैं जिससे प्रशिक्षित मानव संसाधन बढ़ रहा है.


अच्छी फंडिंग की उपलब्धता


भारत में बढ़ते स्टार्टअप श्रेय बड़ी संख्या में सामने आए निवेशकों को जाता है जो रिस्क लेकर इनको बढ़ावा दे रहे और साथ ही आगे बढ़ने में इनकी सहायता भी कर रहे हैं. इसके साथ ही सरकार की समर्थक नीतियां  जैसे 'स्टार्टअप इंडिया', 'मेक इन इंडिया', 'डिजिटल इंडिया', 'आत्मनिर्भर भारत' आदि ई-कॉमर्स व्यवसाय से जुड़े लोगों को प्रोत्साहित कर रही हैं.


यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत में ई-कॉमर्स स्टार्टअप इकोसिस्टम न केवल बड़े पैमाने पर बढ़ रहा है बल्कि समय के साथ परिपक्व भी हो रहा है. जहां कुछ साल पहले तक उद्योग में बैंगलोर और एनसीआर जैसे शहरों का एकाधिकार था, वहीं अब पुणे और जयपुर जैसे छोटे शहरों ने भी भारत में हाल ही में सामने आए ई-कॉमर्स स्टार्टअप के साथ अपनी पहचान बनाई है.


भारत ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स में 57वें स्थान पर है. इस क्षेत्र में पहले ही उपक्रमों का वर्चस्व था लेकिन अब भारत में  स्टार्टअप्स की संख्या में वृद्धि हुई है. ऐसे में यह हैरत की बात नहीं है कि पिछले 4 वर्षों में लगभग 35 बिलियन अमरीकी डॉलर निवेश देश में आया है.



स्टार्टअप से जु़ड़ी 3 बड़ी उम्मीदें



  1. निवेशकों के बढ़ते विश्वास के परिणामस्वरूप भारत में स्टार्टअप्स के लिए इन्वेस्टमेंट बढ़ा है.

  2. तकनीकी प्रगति में सुधार.

  3. भारत में स्टार्टअप वेव को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार द्वारा चलाई जा रही  योजनाएं.


भारत में ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस स्टार्टअप इकोसिस्टम को विकसित करने में चार दशकों की कोशिश है. भारत में दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ते ई-कॉमर्स स्टार्टअप का बाजार है. जिसके पीछे निवेशक और आईटी सेक्टर से जुड़ा युवा टैलेंट है. 



क्या स्टार्टअप्स मुनाफा कमा रहे हैं? 


ये भी एक सच्चाई है कि भारत जहां स्टार्टअप का बाजार है तो ये कई नई कोशिशों के लिए कब्रगाह भी साबित हो रहा है. कई स्टार्टअप घाटे का भी सौदा बन रहे हैं.   स्टार्टअप ओमनीचैनल आईवियर रिटेलर लेन्सकार्ट पिछले दो सालों से कहीं ज़्यादा चर्चा में है. लेंसकार्ट को साल 2022   में 102.3 करोड़ रुपये का घाटा हुआ.  जबकि वित्त वर्ष 2021 में उसे लगभग 29 करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ हुआ था. हालांकि इस घाटे को कोविड-19 महामारी से भी जोड़ा जा सकता है जिसमें कई सेक्टरों को घाटा हुआ है.


कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय से जुड़ी एक रिपोर्ट के मुताबिक लेंस्कार्ट लिमिटेड ने अपनई कमाई में  66 फीसदी दर से साल-दर-साल की वृद्धि दर्ज की है. लेकिन साल 2022  में कंपनी का कुल खर्च 72.8% बढ़कर लगभग 1,726 करोड़ रुपये हो गया जो पहले 999 करोड़ रुपये था.


कंपनी ने विज्ञापन और प्रचार यानी अपनी मार्केटिंग पर लगभग 234.6 करोड़ रुपए खर्च किया था. इसके साथ ही कर्मचारियों पर होने वाला खर्च भी मार्च 2022 में लगभग 53% बढ़कर 245 करोड़ रुपये हो गया.


वहीं भारत में शुगर कॉस्मेटिक्स का वित्तीय वर्ष 2021 में कुल नुकसान 210 मिलियन था. वित्तीय वर्ष 2019 के बाद से  इस स्टार्टअप का घाटा  बढ़ता चला गया. तेजी से शुरू होने वाली ये कम्पनियां धीरे-धीर घाटे की ओर बढ़ रही हैं.


आईपीओ लाने की जुगत के पीछे का सच 


जब एक निजी कंपनी जनता को शेयर बेचती है. इससे कंपनी का व्यापार और स्वामित्व जनता के पास पहुंच जाता है. बेचे जा रहे शेयरों या कर्ज हो सकते हैं. स्टॉक एक्सचेंज में दर्ज होने की वजह से कंपनी को एक बड़े इन्वेस्टमेंट पूल तक पहुंचने में मदद मिलती है, जिससे शेयरधारकों को पैसे निकालना आसान हो जाता है. लाभ कमाने के दौरान कंपनियां आईपीओ लाना चुन सकती हैं और कई लोग इसके शेयर खरीदना चाहते हैं, ऐसे में कम्पनियां कहीं ज़्यादा मुनाफ़ा कमाने में सफल हो जाती हैं.



आम तौर पर, एक उद्यमी व्यवसाय शुरू करने के लिए एंजेल निवेशकों से मिले निवेश और अपनी बचत के  धन इस्तेमाल करता है. जैसे-जैसे व्यवसाय बढ़ता है, वह पैसा कमाना शुरू करता है, बिज़नेस को पूंजीपति और निजी इक्विटी फर्म खरीदने की कोशिश करती हैं. लेकिन अगर स्टार्टअप का मालिक रिस्क लेकर  व्यवसाय को बढ़ाने और अधिक पैसा कमाना चाहता है, तो (आईपीओ) के माध्यम से यह संभव हो सकता है. यह प्रक्रिया कंपनी के शेयर बेचने की इजाजत के साथ व्यापार और स्वामित्व की अनुमति देती है. यही इन प्राइवेट फर्म्स का उद्देश्य भी है क्योंकि ऐसे वे लागत से कहीं ज़्यादा मुनाफ़ा कमा पाते हैं.