Hindenburg Research: क्या है शॉर्ट सेलिंग, जिससे कमाई करती है हिंडनबर्ग रिसर्च? फर्म की कमाई का तरीका बाजार के लिए क्यों खतरा
Hindenburg Research: शेयर बाजार में कई निवेशक शेयरों की शॉर्ट सेलिंग कर मोटी कमाई करते हैं. पिछले दो दिनों से सुर्खियों में बनी हिंडनबर्ग रिसर्च भी इसी तरह कमाती है...

पहले अडानी समूह और अब सेबी प्रमुख के खिलाफ हिंडनबर्ग की विवादास्पद रिपोर्ट आने के बाद एक शब्द की चारों तरफ चर्चा हो रही है. वह शब्द है शॉर्ट सेलिंग. दरअसल अमेरिकी फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च किसी लिस्टेड कंपनी के खिलाफ विवादास्पद रिपोर्ट जारी करती है, क्योंकि इससे उसकी मोटी कमाई होती है. वह पहले टारगेट कंपनी के शेयरों को शॉर्ट करती है और उसके बाद टारगेट कंपनी के खिलाफ उसकी रिपोर्ट आती है.
आइए जानते हैं कि शेयरों की यह शॉर्ट सेलिंग है क्या चीज और उससे हिंडनबर्ग रिसर्च जैसे निवेशक किस तरह कमाई करते हैं? शॉर्ट सेलिंग से ऐसी क्या कमाई होती है, जिसके लिए हिंडनबर्ग रिसर्च जैसी कंपनियां किसी लिस्टेड कंपनी पर कीचड़ उछालने में भी नहीं हिचकती है? साथ ही यह भी जानते हैं कि शॉर्ट सेलिंग से कमाई करने के तरीके को क्यों बाजार के लिए ओवरऑल खतरनाक माना जाता है?
पिछले साल सुर्खियों में आया शॉर्ट सेलिंग का नाम
शॉर्ट सेलिंग कोई नई चीज नहीं है. भारत में भले बहुत सारे लोगों ने शॉर्ट सेलिंग का नाम पहली बार पिछले साल तब सुना, जब हिंडनबर्ग रिसर्च पहली बार अडानी समूह के खिलाफ विवादास्पद रिपोर्ट लेकर सामने आई. हिंडनबर्ग रिसर्च ने 24 जनवरी 2023 को जारी रिपोर्ट में अडानी समूह के ऊपर कई गंभीर आरोप लगाए. आरोपों में शेयरों के भाव को गलत तरीके से ऊपर चढ़ाना, शेल कंपनियों का जाल बनाकर और गुमनाम विदेशी फंड का नेटवर्क यूज कर पैसों की हेर-फेर करना आदि शामिल थे.
अडानी के शेयरों को हुआ था इतना नुकसान
हिंडनबर्ग की उस रिपोर्ट के बाद अडानी समूह के शेयर औंधे मुंह गिरने लगे. 24 जनवरी से गिरावट का शुरू हुआ सिलसिला अगले एक महीने तक चलता रहा और उस दौरान अडानी समूह के कई शेयर रोज-रोज लोअर सर्किट का शिकार होते रहे. समूह के ज्यादातर शेयरों के भाव देखते-देखते आधे रह गए और उनमें एक-डेढ़ महीने में ही 83 फीसदी तक की गिरावट आई. इस गिरावट से अडानी समूह की कंपनियों के मार्केट कैप में 150 बिलियन डॉलर से ज्यादा की गिरावट आई. इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि अडानी समूह के खिलाफ हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने से अडानी के शेयरों के निवेशकों के 150 बिलियन डॉलर से ज्यादा डूब गए थे.
हिंडनबर्ग की रिपोर्ट का शॉर्ट सेलिंग से कनेक्शन
एक तरफ बड़े पैमाने पर निवेशक कंगाल हुए, तो दूसरी तरफ कइयों ने मोटा माल भी बनाया. खास तौर पर अमेरिकी शॉर्ट सेलर फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च को करोड़ों डॉलर की कमाई हुई. ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट बताती है कि अडानी के शेयरों को शॉर्ट करने से पिछले साल हिंडनबर्ग को 4 मिलियन डॉलर से ज्यादा की कमाई हुई थी. अब हिंडनबर्ग ने जो नई रिपोर्ट जारी की है, उसका सीधा कनेक्शन पिछले साल शेयरों को शॉर्ट कर की गई मोटी कमाई से निकल रहा है. उसी कमाई को लेकर बाजार नियामक सेबी ने हिंडनबर्ग को शो कॉज नोटिस जारी किया था. हिंडनबर्ग ने उस नोटिस का आधिकारिक जवाब तो नहीं दिया, लेकिन उसने बदले में सेबी के ऊपर ही हमला बोल दिया. हिंडनबर्ग ने ताजी रिपोर्ट में सेबी प्रमुख माधबी पुरी बुच पर अडानी समूह के साथ फाइनेंशियल कनेक्शन का आरोप लगाया है, जिसका सेबी प्रमुख और अडानी समूह दोनों ने खंडन किया है.
इस तरह शेयरों को किया जाता है शॉर्ट
शेयर बाजार में बड़े निवेशक भाव चढ़ने और गिरने दोनों स्थितियों में कमाई कर लेते हैं. शॉर्ट सेलिंग की बात करें तो यह शेयर बाजार में भाव गिराकर कमाई करने का तरीका है. इसे उदाहरण से समझते हैं. शॉर्ट सेलर टारगेट शेयर को पहले शॉर्ट करते हैं. मान लीजिए कोई शेयर अभी 500 रुपये का है, लेकिन शॉर्ट सेलर को लग रहा है कि वह शेयर एक सप्ताह में 400 रुपये तक गिर सकता है. अब शॉर्ट सेलर ब्रोकर से उस कंपनी के 100 शेयर को उधार पर लेकर उसे बेच देता है. एक सप्ताह बाद शेयर 400 रुपये पर गिर जाता है. अब वह ओपन मार्केट से 100 शेयर खरीदता है और ब्रोकर से उधार लिए गए शेयरों को वापस लौटा देता है.
शॉर्ट सेलिंग से इस तरह कमाते हैं इन्वेस्टर
इस मामले में शॉर्ट सेलर ने टारगेट कंपनी के हर शेयर पर 100 रुपये की कमाई की. उसने जिन शेयरों को 500 रुपये के भाव पर उधार लिया था, वे शेयर लौटाने के लिए उसे सिर्फ 400 रुपये में मिल गए. यानी हर शेयर पर 100 रुपये का मुनाफा. इस तरह उसने एक सप्ताह में सिर्फ 100 शेयरों को शॉर्ट कर 10,000 रुपये का मुनाफा बना लिया. हिंडनबर्ग ने अडानी समूह के मामले में पहले शेयरों पर शॉर्ट पोजिशन लिया और उसके बाद भाव गिराने के लिए उसने विवादास्पद रिपोर्ट जारी की. इसे दूसरे शब्दों में ऐसे भी कहा जा सकता है कि उसने अपनी कमाई के लिए जान-बूझकर अडानी के शेयरों के भाव को गिराया.
मामूली फायदे के चक्कर में भारी-भरकम नुकसान
शेयरों को शॉर्ट कर की जाने वाली कमाई को ब्रॉडर प्रेस्पेक्ट में मार्केट के लिए ठीक नहीं माना जाता है. इसका कारण है कि शॉर्ट सेलर को जितना मुनाफा होता है, उससे कई गुना ज्यादा दूसरे निवेशकों का नुकसान हो जाता है. अडानी के मामले में इस आंकड़े को आप साफ-साफ देख सकते हैं. हिंडनबर्ग को कमाई हुई लगभग 4 मिलियन डॉलर, जबकि अडानी के बाकी निवेशकों को 150 बिलियन डॉलर से ज्यादा नुकसान हो गया. यानी हिंडनबर्ग को हुए मुनाफे की तुलना में बाजार को मोटा-मोटी 37 हजार गुने से ज्यादा का नुकसान हो गया.
बाजार की सेहत के लिए क्यों खराब है शॉर्ट सेलिंग?
इस तरह की स्ट्रेटजी में जब बड़े पैमाने पर निवेशकों के पैसे डूबते हैं तो बाजार से उनका मोह भंग होता है. एक बार भारी नुकसान हो जाने के बाद कई इन्वेस्टर दोबारा बाजार की तरफ रुख नहीं कर पाते हैं. यह किसी भी बाजार की ग्रोथ के लिए सबसे बड़ा रिस्क है कि उसमें पैसे लगाने से लोग डरने लग जाएं. अडानी के मामले में भले ही समूह के शेयरों ने हिंडनबर्ग की रिपोर्ट से हुए नुकसान की लगभग भरपाई कर ली, लेकिन उसमें साल भर का समय लग गया. कई मामलों में शॉर्ट किए गए शेयर कभी भी पुराने स्तर को अचीव नहीं कर पाते हैं.
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