सरकार जल्द ही ई-कॉमर्स नीति का दूसरा मसौदा जारी करेगी. इसमें विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियों पर नकेल कसने की तैयारी है. सरकार इन कंपनियों की ओर से दी जाने वाली छूट और डेटा लोकलाइजेशन के मामले में ज्यादा सख्त रुख अपनाएगी. इस नीति में घरेलू कंपनियों के हितों का ध्यान रखा जाएगा.


सरकार इस मसौदे पर बैठक के दौरान ई-कॉमर्स कंपनियों की ओर से बहुत ज्यादा छूट पर घरेलू कंपनियों की शिकायतों पर चर्चा करेगी. सरकार की ओर से ई-मार्केट प्लेस पर दी जाने वाली छूट की वार्षिक समीक्षा भी होगी. अधिकारियों का कहना है कि नई नीति में निश्चित रूप से ई-कॉमर्स कंपनियों की प्राइसिंग और इस पर मिलने वाली छूट को एक सीमा में रखने पर बात होगी.


नई नीति से बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियों को हो सकती है दिक्कत


नई नीति से कई ई-कॉमर्स कंपनियों को दिक्कतें आ सकती हैं और ये उनकी मौजूदा बिजनेस मॉडल को बिगाड़ सकती हैं. घरेलू कंपनियों का कहना है कि इस तरह की प्राइसिंग से उनका बाजार खराब  हो रहा है.


दूसरा मामला डेटा का है. ई-कॉमर्स पर कंज्यूमरों का डेटा लोकल सर्वर में ही रखने का दबाव बढ़ सकता है.  सरकार चाहती है उपभोक्ताओं के डेटा देश से बाहर  न  जाएं. इससे पहले लाए गए ई-कॉमर्स पॉलिसी के मसौदे की काफी आलोचना हुई थी. पिछले साल फरवरी में इस मसौदे को सार्वजनिक किया गया था. इसकी घरेलू कंपनियों और उपभोक्ताओं के हितों की अनदेखी का आरोप लगाया गया था.


घरेलू कंपनियों का कहना था इसमें उनके हितों का संरक्षण नहीं किया गया है. वहीं उपभोक्ताओं का कहना था कि यह ओला, मेक माई ट्रिप और पेटीएम जैसे विदेशी फंड्स से चल रहे समूहों के पक्ष में झुका हुआ है. इसका सबसे विवादास्पद पहलू इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसफर पर कस्टम ड्यूटी लगाने से जुड़ा प्रावधान था. कस्टम ड्यूटी डब्ल्यूटीओ के दबाव में लागू होता है. लेकिन फिलहाल सरकार ने इसे रोक रखा है. उम्मीद है कि आगे भी सरकार इसे लागू नहीं होने देगी.