Syria Civil War: भारत की रसोई पर पड़ेगा सीरिया सिविल वॉर का असर, ऊर्जा सहयोग भी हो सकता है प्रभावित
भारतीय रसोई में सब्जी और दाल का स्वाद जीरे के बिना बढ़िया नहीं बनता है और जीरे के लिए भारत सीरिया पर काफी हद तक निर्भर है. इसके अलावा दोनों देशों के ऊर्जा सहयोग पर भी इसका असर देखने को मिल सकता है.
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सीरिया में हुआ तख्तापलट भारतीयों का जायका बिगाड़ेगा. भारतीय रसोई में सब्जी और दाल का स्वाद जीरे के बिना बढ़िया नहीं बनता है और जीरे के लिए भारत सीरिया पर काफी हद तक निर्भर है. सीरिया भारत के बाद जीरा उत्पादन में दूसरे नंबर पर है. चूंकि, यहां जीरे की खपत ज्यादा नहीं है, इसलिए कुल उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा दूसरे देशों को बेचकर कमाई करता रहा है. सीरिया में खराब हालात से वहां जीरा का उत्पादन और निर्यात बुरी तरह प्रभावित होगा. इससे वैश्विक स्तर पर जीरे की मांग और आपूर्ति में अंतर बढ़ेगा और इसकी कीमतों में आग लग जाएगी.
जीरे का स्वाद हो जाएगा कड़वा
भारत में इस साल जीरे के उत्पादन का आंकड़ा 90 से 95 लाख बोरी रहा है. जबकि, पिछले साल यह 55 से 60 लाख बोरी था. देश में जीरे की खपत काफी ज्यादा रहती है, इसलिए निर्यात कम ही हो पाता है. लेकिन अब जब सीरिया संकट के चलते वैश्विक स्तर पर जीरे की कमी होगी तो भारत के जीरा विक्रेता निर्यात पर जोर देंगे, क्योंकि वहां से उन्हें ज्यादा कमाई होगी. इससे स्थानीय मार्केट में जीरे की कमी होगी और दाम बढ़ जाएंगे. ऐसे में देश में जीरा महंगा हो सकता है. इससे रसोई में जीरे की आवक कम हो जाएगी.
दोनों देशों के ऊर्जा सहयोग पर भी पड़ेगा असर
असद सरकार के पतन से भारत और सीरिया के ऊर्जा सहयोग पर भी असर पड़ेगा. भारत ने मई 2009 में सीरिया तिशरीन थर्मल पावर प्लांट एक्सटेंशन परियोजना के लिए 240 मिलियन डॉलर का लोन दिया था. इसी तरह भारतीय कंपनियों का 2004 से सीरियाई तेल क्षेत्र में लंबा जुड़ाव है, जिसमें 350 मिलियन डॉलर के दो महत्वपूर्ण निवेश शामिल हैं. ओएनजीसी विदेश लिमिटेड (ओवीएल) ने 2004 में एक्सप्लोरेशन ब्लॉक-24 में 60 प्रतिशत भागीदारी के साथ सीरिया में प्रवेश किया. इसके बाद, ओवीएल ने जनवरी 2016 में अल फुरात पेट्रोलियम कंपनी (एएफपीसी) में चाइना नेशनल पेट्रोलियम कॉरपोरेशन (सीएनपीसी) के साथ मिलकर 37 प्रतिशत की हिस्सेदारी हासिल की.
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