नई दिल्ली: वित्त मंत्रालय का कहना है कि सैनेटरी नैपकिन पर पहले जितना टैक्स लगता था, जीएसटी या तो उसके बराबर है या कम है. मंत्रालय के ये बयान ऐसे समय में आया है जब विभिन्न कॉलम राइटर सैनेटरी नैपकिन पर जीएसटी दर ऊंची रखे जाने की बात कर रहे हैं.


जीएसटी लागू होने यानी पहली जुलाई से पहले इस पर 6 फीसदी की दर से सेट्रल एक्साइज ड्यूटी और पांच फीसदी की दर से वैट लगता था. तमाम तरह के सेस और सरचार्च को शामिल कर लिया जाए तो टैक्स की औसत दर थी 13.68 फीसदी. अब इस पर 12 फीसदी की दर से जीएसटी लगाया जा रहा है.


सैनेटरी नैपकिन बनाने में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल की बात करे तो उनमें से कुछ जैसे सुपर एबसॉरबेंट प़ॉलिमर, पॉली एथिलीन फिल्म, ग्लू, पैकिंग कवर वगैरह पर 18 फीसदी और कुछ जैसे थर्मो बांडेड, रिलीज पेपर और वुड पल्प पर 12 फीसदी की दर से जीएसटी लगाया जा रहा है. मतलब कच्चा माल पर ज्यादा और तैयार माल पर जीएसटी की दर कम है.


तकनीकी भाषा में इसे इनवर्टेंड ड्यूटी स्ट्रक्चर कहते हैं. अब यदि वैल्यू एडिशन किया जाता है तो प्रभावी तौर पर इनपुट टैक्स कम हो जाएगा और घरेलू निर्माता को रिफंड के लिए इंतजार नहीं करना पड़ेगा, यानी उसका पैसा फंसेगा नहीं. वित्त मंत्रालय के अधिकारियो ने माना कि अभी कच्चे माल पर 18 फीसदी और 12 फीसदी और तैयार माल पर 12 फीसदी की जीएसटी दर होने से घरेलू निर्माताओं की लागत, आयातकों की तुलना में थोड़ा ज्यादा हो सकती है. अब यदि तैयार माल पर जीएसटी की दर और कम हो जाए तो घरेलू निर्माताओं की लागत और परेशानी, दोनों बढ़ेगी.


आप इसे यूं समझ सकते हैं. यदि कच्चे माल पर टैक्स की दर और तैयार माल पर कम है तो घरेलू निर्माता को रिफंड के लिए आवेदन करना होगा. इसमें कुछ समय लगता है. अब जब तक रिफंड आता है, तब तक निर्माता का पैसा फंसा रहेगा. आम तौर पर ये पैसा बैंक से वर्किंग कैपिटल लोन के तौर पर लिया जाता है, यानी उसपर ब्याज चुकाना होगा. रिफंड की प्रक्रिया पर भी कुछ खर्च होता है. ऐसे में घरेलू निर्माताओं की लागत बढ़ जाएगी.


अब यदि सैनेटरी नैपकिन पर जीएसटी की दर 12 फीसदी से घटाकर 5 फीसदी कर दी जाए तो घरेलू निर्माताओं की लागत और बढ़ेगी. कच्चे माल पर टैक्स की ऊंची दर होने की वजह से ज्यादा पैसे का उन्हे इंतजाम करना होगा और टैक्स रिफंड मिलने तक ये पैसा फंसा रहेगा जिस पर उन्हे ब्याज चुकाना होगा. अब यदि सैनेटरी नैपकिन पर जीएसटी की दर शून्य कर दी जाए तो एक ओर जहां उन्हे किसी तरह का इनपुट टैक्स क्रेडिट नहीं मिलेगा, वहीं आयात पर किसी तरह का आईजीएसटी नहीं चुकाना होगा. यानी घरेलू निर्माता हर तरफ से मारे जाएंगे.