(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
नोटबंदी का 1 महीना और कैशलेस होता देशः अब तक ये हुआ असर
नई दिल्लीः केंद्र सरकार ने 8 नवंबर को 500 और 1000 रुपये के नोटों का चलन बंद कर देश के आम और खास व्यक्ति को एक धरातल पर लाकर खड़ा दिया. नोटबंदी को 1 महीना गुजर चुका है मगर उसके बाद से कोई खास सकारात्मक प्रभाव लोगों के सामने नहीं आया है. लेकिन यहां गौर करने वाली बात है कि नोटबंदी ने देश को कैशलेस लेनदेन की ओर एक और कदम बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस फैसले ने देश के हर वर्ग और क्षेत्र को चौंकाया. 1 महीने बाद अगर इसे फैसले के नकारात्मक पहलुओं पर गौर करें तो इसकी फेहरिस्त काफी लंबी है. नोटबंदी की घोषणा के बाद देश की 86 फीसदी की नगदी के रातों-रात यूं पानी-पानी हो जाने से पूंजीपति से लेकर आम इंसान भी प्रभावित हुआ. नोटबंदी को 1 महीना हो चुका है लेकिन इससे होने वाले फायदों की तस्वीर अभी भी धुंधली है, जिसका सरकार पहले दिन से दावा कर रही है. हालांकि हम खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि इस तरह की पहल से लोगों के रहन-सहन, खर्चो में बदलाव आएगा और वह नगदी पर कम आश्रित होंगे.
500 और 1000 रुपये की शक्ल में देश की मुद्रा के 86 फीसदी को हटाने के नकारात्मक प्रभाव आश्चर्य की बात नहीं है. सरकार कह रही है कि इसके बाद हमारा देश सोने की तरह चमकेगा. कई लोगों ने भी सरकार के सुर से सुर मिलाया है, मगर यह स्पष्ट नहीं हुआ कि इससे क्या फायदा होगा और वाकई लंबे समय के लिए होगा.
नोटबंदी के असर पर अर्थशास्त्रियों की राय
सरकार के इस कथन को लेकर हर कोई आशावादी नहीं हैं. इंडिया सेंट्रल प्रोग्राम ऑफ द इंटरनेशनल ग्रोथ सेंटर के निदेशक प्रणव सेन ने एक वेबसाइट आइडियास फॉर इंडिया में लिखा, "विमुद्रीकरण से समूचा असंगठित क्षेत्र स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त हुआ है. विशेष रूप से असंगठित वित्तीय क्षेत्र जो बैंक कर्ज देने या सकल घरेलू उत्पाद के 26 फीसदी के लिए जिम्मेदार है. यह क्षेत्र गांव के किसानों और कम आय वाले लोगों को बचत और ऋण सुविधाएं उपलब्ध कराते हैं."
देश की अर्थव्यवस्था में 50 फीसदी से अधिक का योगदान करने वाले असंगठित या अनौपचारिक क्षेत्र के लोगों का कुल कामगार आबादी में हिस्सा 80 फीसदी है, जो कई तर्को के हिसाब से बुरी तरह प्रभावित हुआ है. सरकार के 500 और 1,000 रुपये के नोट को अमान्य करने से व्यापार और अर्थव्यवस्था भी बुरी तरह प्रभावित हुई. खुद पश्चिम बंगाल के वित्तमंत्री अमित मित्रा ने 30 दिसंबर तक अर्थव्यवस्था को 1.28 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होने की बात कही.
नोटबंदी का रिटेल कारोबारियों पर असर
खैर, यह तो रही देश की बात, नोटबंदी का असर पूछना है कि छोटे व्यापारियों से पूछें, जिनके पास काला धन न होते हुए भी खामियाजा भुगतना पड़ा. राजधानी दिल्ली के करोल बाग पर सजावटी सामान और उपहार के विक्रेता रविंद्र जैन ने बताया, "नोटबंदी ने हमें इतना बेबस कर दिया गया है कि हम दुकान का किराया नहीं दे पा रहे हैं. इस सीजन में बहुत अधिक बिक्री होती थी, वहीं अब बाजार ठंडा पड़ा है. हम दुकान खाली करने को मजबूर हैं."
नोटबंदी का दैनिक व्यवस्था पर असर
नोटबंदी के बाद बैंकों और एटीएम पर उमड़ी भीड़ ने नोटबंदी की तैयारी पर सवालिया निशान उठाए हैं. इस फैसले के लिए समूची तैयारियों की जरूरत थी, जो नदारद रहीं. वहीं इस बीच जिन लोगों के पास 500 और 1000 के अधिक संख्या में जायज नोट भी हैं, वह भी बैंकों की भीड़ के डर से अपनी मेहनत की कमाई को जाया होते देख रहे हैं. सबसे दुखद तो ये है कि नोटबंदी के इस दौर में कई लोगों ने तो अपनी जानें भी गवाई हैं. आंकड़ो के मुताबिक, नोटबंदी के बाद से 65 से अधिक लोगों की मौत हुई. इसके अलावा कैश की कमी से वह क्षेत्र भी प्रभावित हुए, जिनसे सबसे अधिक लोगों का रोजगार जुड़ा हुआ था.
नोटबंद के साथ ही नोटों को बदलने व निकालने की सीमा, बैंकों में उमड़ी भीड़ और एटीएम की अधूरी व्यवस्थाओं ने लोगों को खीजने पर मजबूर कर दिया. वहीं, बैंकों से जैसे-तैसे पैसा निकाल कर लाए लोग उस समय खुद को ठगा सा महसूस करने लगे जब बाजार में दुकानदारों ने 2000 हजार का छुट्टा देने से मना कर दिया. सरकार द्वारा बड़े नोटों को हटाकर उससे भी बड़ा 2000 का नोट बाजार में उतारना किसी को हजम नहीं हुआ. यहां तक आंध्र प्रदेश में एक मजदूर ने 2000 रुपये के नोट का छुट्टा न मिल पाने के कारण आत्महत्या की कोशिश तक कर डाली.
नोटबंदी का राज्यों पर असर
नोटबंदी से देश के तमाम राज्यों जैसे यूपी, उत्तराखंड, बिहार झारखंड में रबी की फसलों की बुवाई धीमी हो गई. गेंहू, तरबूज, सरसों, पालक समेत बीजों की बिक्री छोटे नोट की कमी से वजह से 70 फीसदी प्रभावित हुई. सरकार के इस फैसले का लोगों में हालांकि बढ़-चढ़ कर समर्थन भी देखने को मिला. कई लोगों इस बात से खुश दिखे कि जिसके पास बड़ी संख्या में काला धन है उनके नोट पूरी तरह से रद्दी हो जाएंगे. इस डर से काले धन रखने वालों द्वारा नोटों की बोरियां जलाने, गंगा में बहाने और दान करने जैसी खूब खबरों ने खूब सुखियां बटोरीं.
तीन सप्ताहों के अनुसार अगर गणना की जाए तो विभिन्न क्षेत्रों में पड़ने वाला नोटबंदी का नकारात्मक असर विकास दर को काफी नीचे ले जा सकता है. अनुमान लगाए जा रहे हैं कि विकास दर 3.5 से 6.5 फीसदी तक नीचे रहेगी, हालांकि यह बहुत हद कर निवेश के रुख पर भी निर्भर करता है. नोटबंदी भ्रष्टाचार को खत्म करने की छोटी सी रणनीति हो सकती है लेकिन इससे आम आदमी को बहुत अधिक परेशानी उठानी पड़ी है.
नोटबंदी का अर्थव्यवस्था पर असर
मुंबई स्थित इक्विटी अनुसंधान फर्म एंबिट कैपिटल के आकंड़ों के अनुसार, नोटबंदी के कारण वित्त वर्ष 2016-17 की दूसरी छमाही में जीडीपी विकास दर 0.5 फीसदी गिरने का अनुमान है. इसका मतलब यह है सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर अक्टूबर 2016 से मार्च 2017 तक 0.5 फीसदी नीचे जा सकती है. आज आरबीआई ने भी नोटबंदी के असर से वित्त वर्ष 2016 के लिए देश की जीडीपी दर के अनुमान को 7.6 फीसदी से घटाकर 7.1 फीसदी कर दिया है जो बड़ी चिंता की बात लग रही है. यानी अर्थव्यवस्था की विकास दर में पूरे आधे फीसदी की गिरावट की बात की जा रही है.
नोटबंदी का काले धन पर असर
बात अगर काले धन की जाए तो क्या वाकई नोटबंदी कालेधन पर चोट करेगी. काले धन को खत्म करने के लिए बेनामी संपित्त और विदेशी बैंकों में जमा धन भी निशाने पर हैं. यहां पर नोटबंदी का निशाना केवल वह काला धन है जिसे लोगों ने नगदी के रूप में सहेज के रखा है.
नोटबंदी के लंबी अवधि के फायदे को बाद में आएंगे लेकिन नोटबंदी के ठीक बाद हमारे सामने सबसे बड़ा उदाहरण कैशलैस लेनदेन रहा. नोटबंदी के ठीक बाद देश के उन पढ़े-लिखे लोगों के बीच क्रेडिट-डेबिट और पेटीएम जैसे माध्यमों का इस्तेमाल बढ़ गया, जो इनका कम ही इस्तेमाल करते थे या फिर बिल्कुल नहीं करते थे. बावजूद इसके कि वो कैशलेस लेनदेन के लिए पूरी तरह सक्षम हैं और उनको इसके बड़े फायदे भी मालूम हैं.
नोटबंदी का कैशलेस इकोनॉमी के कदमों पर पड़ा असर
भारत में ई-कॉमर्स का विस्तार सालाना 51 फीसदी की दर से हो रहा है. वहीं, नोटबंदी के बाद छोटे-बड़े सभी लोगों के बीच दूध, सब्जी, अंडे और मोबाइल रिचार्ज जैसे कामों के लिए कैशलैस भुगतान का इस्तेमाल बढ़ा. अगर इस पर गौर किया जाए तो वाकई इससे हमारे देश ने कैशलैस क्रांति की ओर एक और कदम बढ़ाया है, जिसमें केवल बड़े शहरों का पढ़ा-लिखा वर्ग ही नहीं बल्कि छोटे शहरों का मध्यम वर्ग भी शामिल रहा.