Wipro: थियरी डेलपोर्ट के इस्तीफे की वजहें आई सामने, विप्रो में चल रहे कई संकट
Wipro Leadership Crisis: थियरी डेलपोर्ट ने मात्र 3 साल में ही इस्तीफा दे दिया है. उनसे पहले विप्रो के सीईओ रहे बिदाली नीमचवाला ने भी कार्यकाल पूरा होने से पहले ही इस्तीफा दे दिया था.
Wipro Leadership Crisis: विप्रो की लीडरशिप में एक और बड़ा बदलाव हो गया है. साल 2020 में पद संभालने वाले थियरी डेलपोर्ट (Thierry Delaporte) ने मात्र 3 साल में ही इस्तीफा दे दिया है. अब उनकी जगह श्रीनि पलिया (Srini Pallia) लेने वाले हैं. साल 2023 से कंपनी के शीर्ष नेतृत्व में बड़े बदलाव आ चुके थे. ऐसे में थियरी डेलपोर्ट का जाना तय माना जा रहा था. मगर, यह फैसला इतना जल्दी हो जाएगा, इसकी किसी को उम्मीद नहीं थी. उनके इस्तीफे से विप्रो में चल रही समस्याएं एक बार फिर सबके सामने आ गई हैं.
10 बड़े अधिकारियों ने पिछले साल छोड़ी विप्रो
विप्रो के 7वें सीईओ थियरी डेलपोर्ट अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा किए बगैर ही पद छोड़कर जा रहे हैं. उनसे पहले कंपनी के सीईओ रहे अबिदाली नीमचवाला (Abidali Neemuchwala) ने भी साल 2020 में अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही इस्तीफा दे दिया था. विप्रो के लिए साल 2023 बहुत अच्छा नहीं रहा था. डेलपोर्ट ने कैपजेमिनी छोड़कर विप्रो को ज्वॉइन किया था. इसके बाद से ही कंपनी को रीस्ट्रक्चर करने की कोशिशें जारी थीं. 2023 में कंपनी के सीएफओ जतिन दलाल समेत चीफ ग्रोथ ऑफिसर स्टेफनी ट्रौटमैन समेत 10 बड़े अधिकारियों ने विप्रो का साथ छोड़ दिया था. कंपनी के कई बड़े अधिकारी कॉग्निजेंट चले गए थे. इसके चलते दोनों कंपनियों में विवाद भी छिड़ गया था.
पुराने साथियों का भरोसा नहीं जीत पाए
विशेषज्ञों के अनुसार, थियरी डेलपोर्ट जब विप्रो आए तो वह बाहर से बड़ी टीम भी लेकर आए. इससे पुराने कर्मचारियों को धक्का लगा. इसके चलते कई भरोसेमंद कर्मचारी विप्रो छोड़कर गए. थियरी डेलपोर्ट द्वारा लाई गई टीम विप्रो के पुराने साथियों का भरोसा जीतने में नाकामयाब रही. स्टेफनी ट्रौटमैन के जाने के पीछे भी यही वजह बताई जाती है. डेलपोर्ट के आने पर कंपनी के स्टॉक बेहतर परफॉर्म करने आगे थे. मगर, कंपनी का वित्तीय प्रदर्शन सुधारने में वह नाकामयाब रहे. निवेशकों को भी डेलपोर्ट के कई फैसले पसंद नहीं आ रहे थे.
विदेश में बैठकर चला रहे थे कंपनी
इसके अलावा पेरिस के रहने वाले डेलपोर्ट और उनके वरिष्ठ साथी ज्यादातर समय भारत के बाहर ही रहा करते थे. अगर आपको भारत में कोई बिजनेस चलाना है तो वह विदेश में बैठकर नहीं चलाया जा सकता. यह भी कंपनी के कर्मचारियों और निवेशकों में असंतोष की एक बड़ी वजह बन रही थी. दिसंबर तिमाही में विप्रो का रेवेन्यू सालाना आधार पर 4.4 फीसदी घटकर 22,205 करोड़ रुपये रह गया था. विप्रो देश की तीसरी सबसे बड़ी आईटी कंपनी होने का स्थान गंवाकर चौथे नंबर पर भी आ गई थी.
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