इन 5 घरानों के कारण गरीबों पर महंगाई की मार! आरबीआई के पूर्व डिप्टी-गवर्नर ने कहा- तोड़ना समाधान
रिजर्व बैंक के पूर्व डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य को लगता है कि भारत में महंगाई की उच्च दरों के लिए पांच सबसे बड़े कारोबारी घराने जिम्मेदार हैं. उन्होंने हाल ही में इसका एक समाधान भी बताया है.
भारत के पांच सबसे बड़े कारोबारी घरानों (Top 5 Conglomerates) के पास बेहिसाब ताकत है. उनके पास न सिर्फ बेशुमार दौलत है, बल्कि सुई से लेकर जहाज तक के बिजनेस पर उनका वर्चस्व भी है. यही कारण है कि दुनिया भर में बड़े कॉरपोरेट घरानों को तोड़ने की वकालत समय-समय पर की जाती रहती है. भारत में इस बहस की शुरुआत की है रिजर्व बैंक के पूर्व डिप्टी-गवर्नर विरल आचार्य (Former RBI Deputy Governor Viral Acharya) ने.
टॉप-5 घरानों में ये नाम
ईटी की एक खबर के अनुसार, आचार्य को लगता है कि भारत के पांच सबसे बड़े कॉरपोरेट घरानों के पास खुदरा से लेकर दूरसंचार क्षेत्र तक कीमतों को नियंत्रित करने की ताकत है. आचार्य को यह भी लगता है कि देश में उच्च महंगाई के लिए यही 05 कॉरपोरेट घराने जिम्मेदार हैं. विरल आचार्य ने इन्हें बिग5 नाम दिया है, जिसमें रिलायंस समूह (Reliance Group), टाटा समूह (Tata Group), आदित्य बिड़ला समूह (Aditya Birla Group), अडानी समूह (Adani Group) और भारती समूह (Bharti Group) शामिल हैं. वह कहते हैं कि टॉप5 कॉरपोरेट घरानों की तरक्की छोटी व स्थानीय कंपनियों की कीमत पर हुई है. वह यहीं पर नहीं रुकते, बल्कि समाधान के तौर पर बताते हैं कि इन 05 सबसे बड़े भारतीय कॉरपोरेट घरानों को छोटी इकाइयों में तोड़ने की जरूरत है.
सरकार ने कम की प्रतिस्पर्धा
आचार्य साल 2017 से 2019 के दौरान रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर रहे हैं. उन्होंने कहा कि सरकार ने भारी-भरकम टैरिफ लगाकर इन बड़े भारतीय कारोबारी घरानों को विदेशी कंपनियों की प्रतिस्पर्धा से बचाया है. आचार्य अभी न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी स्टर्न स्कूल में इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर हैं. ईटी की खबर के अनुसार, आचार्य ने ये बातें एक पेपर में लिखी हैं, जिसे उभरते बाजारों पर ब्रूकिंग्स इंस्टीट्यूट पैनल में पेश किया जाना है.
आचार्य ने बताया - ये है उपाय
पूर्व सेंट्रल बैंकर कहते हैं कि ऐसे बड़े कॉरपोरेट घरानों को छोटी-छोटी इकाइयों में बांट देना चाहिए, ताकि प्रतिस्पर्धा बढ़ सके और कीमतों को नियंत्रित करने की ताकत कम हो सके. वह कहते हैं कि अगर यह उपाय काम नहीं करे तो कॉरपोरेट जगत के रास्ते में ऐसी रुकावटें डाली जानी चाहिए कि कॉन्ग्लोमेरेट यानी विभिन्न क्षेत्रों में कारेाबार करने वाला समूह बनना आकर्षक न रह जाए, बशर्ते कि उत्पादकता के फायदे भी बड़े न हों.
इस कारण कम नहीं हुई महंगाई
आचार्य तर्क देते हैं कि भारतीय उपभोक्ताओं को इनपुट प्राइस में कमी आने का पूरी तरह से लाभ नहीं मिल पाया है, क्योंकि बिग5 कंपनियां धातु, कोक, रिफाइंड पेट्रोलियम उत्पाद आदि के विनिर्माण के साथ-साथ खुदरा व्यापार और दूरसंचार तक को नियंत्रित करती हैं. वह कहते हैं कि भारत में सामानों की महंगाई उच्च बनी हुई है, जबकि आपूर्ति संबंधी दिक्कतों के आसान होने से पिछले साल पूरी दुनिया में कीमतें आसान हुई हैं.
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