अभी और बढ़ेगी बेरोजगारी, सरकार ने राहत नहीं बढ़ाई तो बड़ी संख्या में नौकरी जा सकती हैं
इस वक्त ग्रामीण इलाकों में शहरी इलाकों से बेरोजगारी इसलिए कम है क्योंकि कृषि सेक्टर का प्रदर्शन अच्छा है
अगर सरकार ने इकनॉमी के लिए और राहत पैकेजों का ऐलान नहीं किया तो वित्त वर्ष 2020-21 में बेरोजगारी दर आठ से लेकर साढ़े आठ फीसदी तक पहुंच सकती . देश के पूर्व चीफ स्टेस्टिसियन प्रणब सेन ने एक अंग्रेजी अखबार से बातचीत में यह अनुमान जताया है.
उन्होंने कहा कि शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी है. लेकिन रिवर्स माइग्रेशन की वजह से इसका ठीक-ठीक आकलन अभी मुश्किल है. इससे पहले राष्ट्रीय रोजगार और बेरोजगारी सर्वे में कहा गया था कि जुलाई 2018 से लेकर जून 2019 के बीच बेरोजगारी दर 5.8 फीसदी गिरी है. यह 207-18 की इस अवधि में 6.1 फीसदी थी, जो चार दशक की सबसे ज्यादा है.
सेन ने कहा है कि बेरोजगारी दर कम कम करना सरकार के फैसले पर निर्भर है. इसे कम करने के लिए उसे बड़े पैमाने राहत देने की जरूरत है. वरना बेरोजगारी दर पहुंच कर 8-8.5 फीसदी तक पहुंच सकती है.
प्रणब सेन इकनॉमिक स्टेस्टिक्स पर बनी स्थायी कमेटी के चीफ हैं. यह कमेटी इंडस्ट्री. सर्विसेज और रोजगार के बारे में सर्वे के तरीके विकसित करने लिए बनाई गई है.
शहरी इलाकों की तुलना में गांवों में बेरोजगारी कम
सेन ने कहा कि रोजगार के बारे में सर्वे के दौरान लोग ग्रामीण इलाकों की ओर चले जाएंगे तो यहां बेरोजगारी बढ़ी हुई दिखेगी. शहरी इलाकों में यह कम दिखेगी. इस समय ग्रामीण इलाके में बेरोजगारी 2.2 से 2.3 फीसदी के बीच है, जबकि शहरी इलाकों में यह 8 से 9 फीसदी के बीच है.
ग्रामीण इलाकों में शहरी इलाकों से बेरोजगारी इसलिए कम है क्योंकि कृषि सेक्टर का प्रदर्शन अच्छा है. अगर ग्रामीण इलाकों की ओर माइग्रेशन बढ़ेगा तो यहां बेरोजगारी बढ़ सकती है. पिछले दो महीने में शहरी इलाकों से ग्रामीण इलाकों में माइग्रेशन काफी बढ़ा है. इसे रिवर्स माइग्रेशन कहा जा रहा है.
इससे पहले सेंटर ऑफ मॉनिटरिंग फॉर इंडियन इकनॉमी यानी CMIE ने कहा था कि इस साल मई में बेरोजगारी दर सीधे 23.48 फीसदी पर पहुंच गई. जून 2019 में बेरोजगारी दर 7.87 फीसदी पर थी.
सरकार ने इकनॉमी को पटरी पर लाने के लिए 20 लाख करोड़ रुपये का पैकेज दिया है. इनमें 3 लाख करोड़ रुपये का पैकेज अकेले एमएसएमई सेक्टर क लिए है. इसमें 11 करोड़ लोग काम करते हैं. इसके अलवा रिजर्व बैंक ने भी रेपो रेट में कटौती करके लिक्विडिटी बढ़ाने की कोशिश की है. लेकिन सरकार की ओर से इकनॉमी को और राहत पैकेज देने की जरूरत है. अगर यह नहीं हुआ तो बेरोजगारी दर में और इजाफा हो सकता है.