एक्सप्लोरर

मोदी सरकार का कोर्स करेक्शन या खजाने पर बोझ, क्या है UPS?

Unified Pension Scheme: मोदी 3.0 सरकार यानी केंद्र की मोदी सरकार को लोकसभा चुनाव के ठीक बाद UPS के तौर पर एक नई पेंशन स्कीम क्यों लानी पड़ी, इसके पीछे के कारणों को यहां विस्तार से बता रहे हैं.

पिछले कुछ दिनों से मोदी सरकार की एक नई योजना की खूब चर्चा है. और वो योजना है यूपीएस यानी कि यूनिफाइड पेंशन स्कीम. अब दुनिया भर के आर्थिक मामलों के विशेषज्ञों ने तो इसके फायदे-नुकसान आपको बता दिए होंगे, बता दिया होगा कि किसको कितनी पेंशन मिलेगी और इस नई स्कीम की वजह से कैसे युवाओं और खास तौर से सरकारी नौकरी करने वालों का भविष्य सुधर जाएगा. लेकिन सवाल है कि जो मोदी सरकार ओल्ड पेंशन स्कीम को हमेशा से खारिज करती रही है,केंद्र सरकार के लिए एक बोझ बताती रही है और न्यू पेंशन स्कीम का गुणगान करती रही है, उसी मोदी सरकार को लोकसभा चुनाव के ठीक बाद एक नई पेंशन स्कीम क्यों लानी पड़ी. क्या लोकसभा चुनाव में 240 सीटों पर बीजेपी का सिमटना ही इसकी सबसे बड़ी वजह है और अब राज्यों के विधानसभा चुनाव को देखते हुए मोदी सरकार अपना कोर्स करेक्शन करना चाहती है या फिर वाकई इस पेंशन स्कीम में कुछ ऐसा है, जो आम जनता और खास तौर से सरकारी नौकरी करने वालों के भले के लिए है और इसका सरकारी खजाने पर बोझ से कोई लेना-देना नहीं है, आज बात करेंगे विस्तार से. मैं हूं अविनाश और आप एबीपी अनकट की ये खास प्रस्तुति पढ़ रहे हैं.

मोदी सरकार की नई पेंशन स्कीम यानी कि यूनिफाइड पेंशन स्कीम को एक लाइन में समझें तो इसकी वजह लोकसभा चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन और आने वाले विधानसभा के चुनाव हैं. पिछले 10 साल से केंद्र की राजनीति पर काबिज बीजेपी ने जब भी कोई चुनाव लड़ा है, चाहे वो लोकसभा का चुनाव हो या फिर उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, हरियाणा, हिमाचल और तमाम दूसरे राज्यों के विधानसभा चुनावों का, हर चुनाव में ओल्ड पेंशन स्कीम बनाम न्यू पेंशन स्कीम का मुद्दा रहता ही रहता है. गाहे-बगाहे विपक्ष भी इस मुद्दे को उठाता रहता है. और जहां-जहां मौका मिलता है बीजेपी के विरोधी मुख्यमंत्री अपने-अपने राज्यों में पुरानी पेंशन स्कीम बहाल भी करते आए हैं. हिमाचल में तो ओपीएस ने बाकायदा कांग्रेस को सत्ता में भी पहुंचा दिया. इससे बीजेपी को खासा नुकसान हुआ है. लोकसभा में भी और विधानसभा में भी. लिहाजा बीजेपी चाहती थी कि वो भी ओल्ड पेंशन स्कीम को ही लागू कर दे. लेकिन अगर केंद्र सरकार ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करती तो इसका श्रेय विपक्ष और खास तौर से राहुल गांधी और अखिलेश यादव को ही जाता, क्योंकि पुरानी पेंशन स्कीम के मुद्दे पर ये दो नेता सबसे ज्यादा मुखर रहे हैं.

ऐसे में बीजेपी को अपना कोर्स करेक्शन करना पड़ा है. ऐसी नीति जो पुरानी से मिलती जुलती भी हो, लेकिन हो नई ताकि विपक्ष का कोई नेता इसका श्रेय न ले सके. लिहाजा न ओल्ड पेंशन स्कीम और न ही न्यू पेंशन स्कीम. अब केंद्र सरकार की ओर से पेश है  यूनिफाइड पेंशन स्कीम , जिसमें कुछ हिस्सा पुरानी पेंशन स्कीम का है और कुछ हिस्सा नई पेंशन स्कीम का. कैसे चलिए उसको भी समझ लेते हैं.

अब जो ओल्ड पेंशन स्कीम रही है, वो गारंटीड पेंशन स्कीम थी. यानी कि पेंशन मिलनी ही मिलनी थी. तो इससे सरकार पर बोझ पड़ता था. और इसी वजह से सरकार इसको लागू नहीं कर रही थी. जबकि न्यू पेंशन स्कीम में पेंशन तय होती है बाजार से. यानी कि कर्मचारी का पैसा सरकार बाजार में लगाती है. जो रिटर्न मिलता है, उससे पेंशन तय होती है. तो इसमें नुकसान था, क्योंकि बाजार के रिटर्न की गारंटी नहीं है. तो कर्मचारी इसका विरोध करते रहे हैं. लेकिन अब जो यूनिफाइड पेंशन स्कीम है, वो दोनों को मिलाकर बनी है. पहली गारंटी कि 10 साल तक नौकरी की है तो कम से कम 10 हजार रुपये महीना तो मिलेगा ही मिलेगा. बाकी 25 साल नौकरी की है तो नौकरी के आखिरी एक साल की औसत बेसिक सैलरी का 50 फीसदी पेंशन मिलेगा ही मिलेगा. तो हो गई गारंटी कि पेंशन मिलेगी. यानी कि ओल्ड पेंशन स्कीम का हिस्सा.

और न्यू पेंशन स्कीम का हिस्सा क्या है. तो जो अभी यूनिफाइड पेंशन स्कीम आई है, इसमें सरकार अपनी तरफ से 18.5 फीसदी का योगदान देगी, जिसमें बेसिक वेतन और डीए शामिल है. बाकी 10 फीसदी का योगदान कर्मचारी का होगा. और इस पैसे को बाजार में लगाया जाएगा. उससे जो रिटर्न आएगा, उसे कर्मचारी को पेंशन दी जाएगी. अब जो न्यू पेंशन स्कीम है और जिसका विरोध होता रहा है, उसकी वजह यही है कि अगर बाजार से रिटर्न नहीं आया तो पेंशन नहीं मिलेगी. लेकिन यूनिफाइड पेंशन स्कीम में बाजार से रिटर्न आए न आए, पेंशन की गारंटी है, भले ही वो पैसे सरकार को अपने फंड से ही क्यों न देने पड़ें.

अब तो समझ गए कि थोड़ी सी ओल्ड पेंशन स्कीम प्लस थोड़ी सी न्यू पेंशन स्कीम इज इक्वल टू यूनिफाइड पेंशन स्कीम. अब रहा सवाल कि पुरानी पेंशन स्कीम में जिस गारंटी की वजह से सरकार के राजकोष पर बोझ बढ़ रहा था और जिसका हवाला देकर सरकारें पिछले 20 साल से ओल्ड पेंशन स्कीम को खारिज कर चुकी हैं, क्या यूनिफाइड पेंशन स्कीम से बोझ नहीं बढ़ेगा. इसका जवाब ना में है. इस यूनिफाइड पेंशन स्कीम से भी सरकारी खजाने पर तो बोझ बढ़ेगा ही बढ़ेगा. हां एक राहत मिल सकती है कि अगर बाजार सही रहा, रिटर्न सही रहा, तो बोझ कम बढ़ेगा. और अगर कहीं बाजार फिसला तो सरकार को पेंशन देने के लिए अपना खजाना तो खोलना ही पड़ेगा.

और अभी जब ये स्कीम लागू होगी यानी कि वित्तीय वर्ष 2025-26 में केंद्र सरकार को कम से कम 6250 करोड़ रुपये देने ही होंगे. आखिर मसला 23 लाख केंद्रीय कर्मचारियों का जो है और 27 लाख कर्मंचारी मतलब करीब-करीब एक करोड़ वोटर्स. अब इतने वोटर्स को लुभाने के लिए इतना खर्च तो बनता ही है. बाकी जो राज्य इस यूनिफाइड पेंशन स्कीम को लागू करेंगे, उन्हें भी पैसे का इंतजाम करना होगा. अगर सभी राज्यों के सरकारी कर्मचारियों को भी शामिल कर लिया जाए तो ये आंकड़ा करीब-करीब 90 लाख कर्मचारियों तक पहुंचता है. जिसका मतलब करीब साढ़े तीन करोड़ वोटर होते हैं, और रही बात ओल्ड पेंशन स्कीम और उस पर हो रही राजनीति की, तो यूनिफाइड पेंशन स्कीम के आने के बाद अब शायद ही कभी कोई ओल्ड पेंशन स्कीम का जिक्र कर पाएगा और उसे चुनाव में मुद्दा बना पाएगा. तो अब आपको मोदी सरकार की इस योजना का नफा-नुकसान समझ में आ गया होगा कि एक नई और एक पुरानी योजना को मिलाकर एक और नई आई योजना ने न सिर्फ पेंशन पर हो रही राजनीति को खत्म कर दिया है, बल्कि इसने विपक्षी नेताओं से चुनाव का एक महत्वपूर्ण मुद्दा भी छीन लिया है. अभी के लिए बस इतना ही. फिर मिलेंगे नई खबर के साथ, एबीपी अनकट.

ये भी पढ़ें

सेंसेक्स-निफ्टी मामूली तेजी के साथ बंद, पर मंगलवार का सेशन रहा स्मॉल-कैप और मिड-कैप स्टॉक्स के नाम

और देखें
Advertisement
Advertisement
25°C
New Delhi
Rain: 100mm
Humidity: 97%
Wind: WNW 47km/h
Advertisement

टॉप हेडलाइंस

थरूर होंगे विदेश संबंधी संसदीय समिति के अध्यक्ष, दिग्विजय को मिली इस समिति की कमान
थरूर होंगे विदेश संबंधी संसदीय समिति के अध्यक्ष, दिग्विजय को मिली इस समिति की कमान
'फिलिस्तीन के स्वतंत्र राज्य बनाने के बाद ही...', सऊदी क्राउन प्रिंस ने दिया इजराइल को अल्टीमेटम
'फिलिस्तीन के स्वतंत्र राज्य बनाने के बाद ही...', सऊदी क्राउन प्रिंस ने दिया इजराइल को अल्टीमेटम
रानी मुखर्जा से पहले रवीना टंडन को करण जौहर ने ऑफर की थी 'कुछ कुछ होता है', इस वजह से एक्ट्रेस ने नहीं किया काम
रानी मुखर्जा से पहले रवीना टंडन को करण जौहर ने ऑफर की थी 'कुछ कुछ होता है'
UP Politics: अखिलेश यादव पर बुरी तरह भड़के सीएम योगी, संस्कार का जिक्र कर ये क्या कहा दिया?
अखिलेश यादव पर बुरी तरह भड़के सीएम योगी, संस्कार का जिक्र कर ये क्या कहा दिया?
Advertisement
ABP Premium

वीडियोज

UP Floods: यूपी के लखीमपुर खीरी में शारदा नदी में उफान! देखते ही देखते पानी में समा गया मंदिरJammu Kashmir Election: चुनाव के बीच पाकिस्तान के विवादस्पद बयान से बढ़ी कांग्रेस की मुश्किलें! |Kangana Ranaut की फिल्म 'Emergency' पर बॉम्बे हाईकोर्ट का बड़ा आदेश | ABP News |Haryana Elections: हरियाणा चुनाव के लिए BJP ने लॉन्च किया '20 संकल्पों वाला' पत्र | ABP News

फोटो गैलरी

पर्सनल कार्नर

टॉप आर्टिकल्स
टॉप रील्स
थरूर होंगे विदेश संबंधी संसदीय समिति के अध्यक्ष, दिग्विजय को मिली इस समिति की कमान
थरूर होंगे विदेश संबंधी संसदीय समिति के अध्यक्ष, दिग्विजय को मिली इस समिति की कमान
'फिलिस्तीन के स्वतंत्र राज्य बनाने के बाद ही...', सऊदी क्राउन प्रिंस ने दिया इजराइल को अल्टीमेटम
'फिलिस्तीन के स्वतंत्र राज्य बनाने के बाद ही...', सऊदी क्राउन प्रिंस ने दिया इजराइल को अल्टीमेटम
रानी मुखर्जा से पहले रवीना टंडन को करण जौहर ने ऑफर की थी 'कुछ कुछ होता है', इस वजह से एक्ट्रेस ने नहीं किया काम
रानी मुखर्जा से पहले रवीना टंडन को करण जौहर ने ऑफर की थी 'कुछ कुछ होता है'
UP Politics: अखिलेश यादव पर बुरी तरह भड़के सीएम योगी, संस्कार का जिक्र कर ये क्या कहा दिया?
अखिलेश यादव पर बुरी तरह भड़के सीएम योगी, संस्कार का जिक्र कर ये क्या कहा दिया?
IND vs BAN: बांग्लादेश ने ढेर किया टीम इंडिया का टॉप ऑर्डर, रोहित-विराट और गिल फ्लॉप 
बांग्लादेश ने ढेर किया टीम इंडिया का टॉप ऑर्डर, रोहित-विराट और गिल फ्लॉप 
भारत में कहां इस्तेमाल होते हैं सबसे ज्यादा कंडोम, स्टेट का नाम सुनकर हैरान रह जाएंगे आप
भारत में कहां इस्तेमाल होते हैं सबसे ज्यादा कंडोम, स्टेट का नाम सुनकर हैरान रह जाएंगे आप
NEET UG Counselling: MBBS में दाखिले के लिए आज जारी होगी दूसरे राउंड की लिस्ट, ये डॉक्यूमेंट्स कर लें तैयार
MBBS में दाखिले के लिए आज जारी होगी दूसरे राउंड की लिस्ट, ये डॉक्यूमेंट्स कर लें तैयार
Alzheimer's: भूलने की ये बीमारी ले सकती है आपकी जान, बुढ़ापे में करती है सबसे ज्यादा परेशान
भूलने की ये बीमारी ले सकती है आपकी जान, बुढ़ापे में करती है सबसे ज्यादा परेशान
Embed widget