मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का एक बयान सुर्खियों में है. उनका कहना है कि कर्नाटक के लोग जो टैक्स भर रहे हैं, उसका इस्तेमाल में कर्नाटक के काम में नहीं हो रहा है, बल्कि उत्तर भारतीय राज्यों में हो रहा है. इस तरह की टिप्पणी भारत में पहली बार नहीं हुई है. देश के विभिन्न राज्यों के बीच केंद्रीय राजस्व का बंटवारा लंबे समय से विवादित रहा है. अभी हालिया बजट के बाद एक बार फिर से बहस तेज हो गई है.
सबसे ज्यादा इन्हें मिला फंड
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 फरवरी को देश का नया बजट पेश किया. केंद्र सरकार हर बार बजट में राजस्व के बंटवारे का ब्यौरा जारी करती है. इस बार भी बजट में स्टेटमेंट जारी हुआ, जिसमें बताया गया कि केंद्रीय करों व शुल्कों की कुल प्राप्तियों में विभिन्न राज्यों को कितना-कितना हिस्सा मिलने वाला है. बजट एस्टिमेट 2024-25 के स्टेटमेंट के हिसाब से देखें तो सबसे ज्यादा 17.939 फीसदी हिस्सा उत्तर प्रदेश को मिलने वाला है. रकम में यह 2.19 लाख करोड़ रुपये हो जाता है. दूसरे नंबर पर 10.058 फीसदी यानी 1.23 लाख करोड़ रुपये के साथ बिहार है.
मध्य प्रदेश को 7.85 फीसदी राजस्व (95,752 करोड़ रुपये) और पश्चिम बंगाल को 7.52 फीसदी (91,764 करोड़ रुपये) मिलने वाला है. पांचवें स्थान पर 77,053 करोड़ रुपये यानी 6.31 फीसदी के साथ महाराष्ट्र का नंबर है, जबकि छठे स्थान पर राजस्थान है, जिसे 73,504 करोड़ रुपये यानी 6.02 फीसदी हिस्सा प्राप्त होने वाले हैं.
इन राज्यों को मिला कम हिस्सा
दक्षिणी राज्यों को देखें तो आंध्र प्रदेश के हिस्से में 4.05 फीसदी शेयर के साथ 49,364 करोड़ रुपये और कर्नाटक के हिस्से में 3.65 फीसदी शेयर के साथ 44,485 करोड़ रुपये आए हैं. तमिलनाडु को 4.08 फीसदी के साथ 49,755 करोड़ रुपये का हिस्सा मिला है, जबकि तेलंगाना और केरल का हिस्सा क्रमश: 2.10 फीसदी और 1.92 फीसदी है. हिमाचल प्रदेश, गोवा, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा इस मामले में सबसे पीछे हैं. इन छोटे राज्यों की केंद्रीय राजस्व में हिस्सेदारी 1-1 फीसदी से भी कम है.
टैक्स भरने में ये राज्य सबसे आगे
अब टैक्सेज की बात करते हैं. एसबीआई रिसर्च की एक रिपोर्ट बताती है कि इनकम टैक्स के मामले में देश के पांच राज्य लगभग आधी हिस्सेदारी रखते हैं. रिपोर्ट के अनुसार, टोटल आईटीआर में लगभग 50 फीसदी सिर्फ 5 राज्यों महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और पश्चिम बंगाल से फाइल किए जाते हैं. वहीं वित्त मंत्रालय के द्वारा लोकसभा में दी गई एक जानकारी के अनुसार, वित्त वर्ष 2022-23 में प्रत्यक्ष करों से आए कुल राजस्व में सिर्फ चार राज्यों महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजरात और तमिलनाडु ने मिलकर 70 फीसदी का योगदान दिया था. इनडाइरेक्ट टैक्स यानी जीएसटी भरने में महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश क्रमश: सबसे आगे हैं.
ज्यादा योगदान वालों का कम हिस्सा
इन आंकड़ों से ये बात तो साफ हो जाती है कि ज्यादा टैक्स देने वाले राज्यों को राजस्व में कम हिस्सा मिलने वाली बात फैक्चुअली गलत नहीं है. उदाहरण के लिए- बिहार सबसे ज्यादा टैक्स देने वाले राज्यों में दूर-दूर तक नजर नहीं आता है, लेकिन राजस्व में उसका हिस्सा सिर्फ उत्तर प्रदेश से कम है. वहीं राजस्व जमा करने में सबसे ज्यादा योगदान देने वाले कर्नाटक, तमिलनाडु, गुलरात जैसे राज्य राजस्व में हिस्सा पाने के मामले में टॉप-5 से भी बाहर हैं.
किस आधार पर बंटता है राजस्व?
यह सबसे जरूरी सवाल है कि आखिर केंद्रीय राजस्व को सभी राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों में किस आधार पर बांटा जाता है? तो इसका जवाब है वित्त आयोग के द्वारा तय किए फॉर्मूले के आधार पर. देश के सभी राज्यों को विकास की यात्रा में बराबर हिस्सा मिले और सब साथ-साथ आगे बढ़ें, यह सुनिश्चित करने के लिए वित्त आयोग विभिन्न राज्यों के बीच फंड के बंटवारे का फॉर्मूला तय करता है. मौजूदा 15वें वित्त आयोग के तहत राज्यों को केंद्र की कुल प्राप्तियों में 41 फीसदी हिस्सा दिया गया है, जिसके आधार पर बजट एस्टिमेट 2024-25 में सभी राज्यों को मिलाकर करीब 12.20 लाख रुपये के वितरण का प्रावधान किया गया है.
इन 4 पैमानों से तय होता है बंटवारा
वित्त आयोग राज्यों के बीच फंड के बंटवारे के लिए 4 पैमाने का इस्तेमाल करता है. सबसे ज्यादा 47.5 पर्सेंट वेटेज फिस्कल कैपेसिटी डिस्टेंस का है. दूसरा सबसे ज्यादा वेटेज जनसंख्या का है. इसे फंड के बंटवारे में 15वें वित्त आयोग ने 25 फीसदी वजन दिया है. तीसरे नंबर पर 17.5 फीसदी वेटेज के साथ फिस्कल डिसिप्लिन है, जबकि 10 फीसदी वेटेज क्षेत्रफल को दिया जाता है. चूंकि जनसंख्या एक बड़ा फैक्टर है, इस कारण केंद्र के फंड के बंटवारे में उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों का हिस्सा बड़ा हो जाता है.
ये भी पढ़ें: मालदीव के नुकसान से श्रीलंका को फायदा! अब इधर का टिकट कटा रहे भारतीय टूरिस्ट