बजट की तारीख हर गुजरते दिन के साथ करीब आ रही है. 31 जनवरी से संसद का बजट सत्र शुरू होने वाला है. सत्र की शुरुआत आर्थिक समीक्षा के साथ होगी और उसके अगले दिन यानी 1 फरवरी को वित्त मंत्री संसद में बजट पेश करेंगी. यह मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का अंतिम बजट होने वाला है. बजट के कुछ ही महीने बाद लोकसभा चुनाव होने वाले हैं. इसके चलते यह अंतरिम बजट भी रहेगा. आइए जानते हैं, इस चुनावी बजट में किन महत्वपूर्ण आंकड़ों पर लोगों की निगाहें रहने वाली हैं...


कितना बड़ा होगा अंतरिम बजट?


हर बजट का सबसे पहला और सबसे बड़ा आकर्षण उसका साइज होता है. यह एक तरह से देश की आर्थिक ताकत का भी अंदाजा देता है. जिस देश की अर्थव्यवस्था जितनी मजबूत होगी, उस देश की अर्थव्यवस्था का आकार उतना ही बड़ा होगा. मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में 2014 में आया पहला बजट करीब 18 लाख करोड़ रुपये का था. वहीं पिछले साल पेश बजट का आकार 45 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा था.


अर्थव्यवस्था की कैसी है सेहत?


बजट में देश की आर्थिक स्थिति का भी सही से अंदाजा लग जाता है. अर्थव्यवस्था की स्थिति के दो बड़े इंडिकेटर हैं- ग्रोथ रेट और राजकोषीय घाटा. अभी बजट से पहले इसी महीने एनएसओ ने पहला एडवांस एस्टिमेट दिया है, जिसमें चालू वित्त वर्ष के दौरान ग्रोथ रेट 7.3 फीसदी रहने का अनुमान व्यक्त किया गया है. उससे पहले दिसंबर में आरबीआई ने 7 पर्सेंट ग्रोथ रेट का अनुमान दिया था. राजकोषीय घाटे के मोर्चे पर देखें तो चालू वित्त वर्ष के लिए पिछले बजट में जीडीपी के 5.9 फीसदी के बराबर राजकोषीय घाटे का अनुमान व्यक्त किया गया था. ऐसी आशंका है कि एक्चुअल आंकड़ा बजट अनुमान को पार कर जाए.


सरकार की कमाई: टैक्स और विनिवेश?


कोई भी सरकार बजट में कमाई और खर्च का खाका पेश करती है. सरकार को होने वाली कमाई के दो मुख्य स्रोत हैं- टैक्स और विनिवेश. टैक्स से कमाई के मामले में सरकार को जहां लाभ होने वाला है, वहीं विनिवेश के मोर्चे पर झटका लग सकता है. टैक्स के मामले में चालू वित्त वर्ष के दौरान इनकम टैक्स फाइल करने वालों की संख्या का नया रिकॉर्ड बना है. वहीं इस दौरान जीएसटी कलेक्शन कई बार नए उच्च स्तर पर गया है. सरकार ने टैक्स से करीब 24 लाख करोड़ रुपये और विनिवेश से 51 हजार करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य तय किया था.


सरकार के ऊपर कितना कुल कर्ज?


सरकार हर बार बजट में टैक्स व विनिवेश समेत अन्य तमाम स्रोतों से होने वाली कुल कमाई से ज्यादा खर्च का खाका पेश करती है. ऐसे में अतिरिक्त खर्च की भरपाई करने के लिए सरकार बाजार से कर्ज उठाती है. अभी सरकार के द्वारा लिए जा रहे कर्ज पर आईएमएफ की एक रिपोर्ट से विवाद भी खड़ा हो गया था, जिसमें आशंका जताई गई थी कि भारत में भी कुल कर्ज जीडीपी के 100 फीसदी से ऊपर जा सकता है. बजट में इस पर स्थिति साफ होने की उम्मीद है.


किन जगहों पर और कितना खर्च?


यह बजट का सबसे अहम पहलू है. सरकार आने वाले समय में किस तरह से, कहां पर और कितना खर्च करने वाली है, इससे अर्थव्यवस्था की दशा-दिशा निर्धारित होती है. जैसे मोदी सरकार को देखें तो लगातार बुनियादी संरचनाओं पर खर्च तेज किया गया है. ऐसा माना जाता है कि कैपेक्स का इकोनॉमी पर मल्टीप्लायर इफेक्ट होता है. पिछले बजट में कैपेक्स करीब 10 लाख करोड़ रुपये था.


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