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2018-19 का आम बजट 1 फरवरी को ही संभव

कुछ दिन पहले ही सरकारी सूत्रों ने संकेत दिए कि कारोबारी साल की व्यवस्था में फिलहाल बदलाव नहीं होगा और अब ये भी काफी हद तक साफ होता दिख रहा है कि बजट की तारीख में बदलाव शायद नहीं हो.

नई दिल्लीः कारोबारी साल 2018-19 के लिए आम बजट पहली फरवरी 2018 को पेश किया जा सकता है. बजट के लिए वित्त मंत्रालय की ओर से जारी सर्कुलर से तो यही संकेत मिल रहे हैं. ये वित्त मंत्री अरुण जेटली का पांचवा आम बजट होगा. साथ ही 2019 के आम चुनाव के पहले का आखिरी पूर्ण बजट होगा.

अगर संकेत सही साबित हुए तो ये दूसरा साल होगा जब आम बजट पहली फरवरी को पेश होगा. साथ ही ये दूसरा मौका है जब रेल बजट को आम बजट के साथ ही पेश किया जाएगा. पहले ये चर्चा थी कि कारोबारी साल की तारीख बदल सकती है. मतलब ये कि दो सालों में फैले कारोबारी साल की मौजूदा व्यवस्था को एक साल में समेटने की तैयारी थी यानी पहली जनवरी से शुरु होकर 31 दिसम्बर को खत्म. ऐसी सूरत में बजट आम बजट नवंबर में पेश करने की जरुरत होती. लेकिन कुछ दिन पहले ही सरकारी सूत्रों ने संकेत दिए कि कारोबारी साल की व्यवस्था में फिलहाल बदलाव नहीं होगा और अब ये भी काफी हद तक साफ होता दिख रहा है कि बजट की तारीख में बदलाव शायद नहीं हो.

जीएसटी का असर पूरे देश को एक बाजार बनाने वाली कर व्यवस्था, वस्तु व सेवा कर यानी जीएसटी लागू होने के बाद का ये पहला आम बजट होगा. इसकी वजह से बजट के स्वरूप में कई तरह के बदलाव दिखेगे. सबसे पहले तो बजट में सीमा शुल्क यानी कस्टम ड्यूटी को छोड़ बाकी अप्रत्यक्ष कर को लेकर कोई प्रस्ताव नहीं होगा. क्योंकि जीएसटी लागू होने के बाद सामान और सेवाओं पर दरें तय करने की जिम्मेदारी जीएसटी काउंसिल को सौंप दी गयी है. पहले आम बजट में सबको इंतजार इस बात का होता था कि सामान या सेवाएं सस्ते होंगे या महंगे, क्योंकि बजट में केंद्रीय उत्पाद शुल्क यानी एक्साइज ड्यूटी और सेवा कर यानी सर्विस टैक्स में बदलाव का जिक्र होता था.

बैठकों का दौर सर्कुलर के मुताबिक, बजट पूर्व तैयारियों को लेकर विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के साथ बैठक 9 अक्टूबर से शुरु होगी. इसके बाद विभिन्न क्षेत्रों जैसे उद्योग संगठनों, किसान संगठनों, अर्थशास्त्रियों और ट्रेड यूनियन के साथ वित्त मंत्री बैठक करेंगे. इन सब के बाद वित्त मत्री आम बजट को अंतिम रुप देना शुरु करेगे. बजट पेश करना सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी है. साथ ही बजट पेश होने के 75 दिनों के भीतर-भीतर वित्त विधेयक पारित कराना जरुरी होता है.

क्यों बदली बजट की तारीख चुनावी सालों को छोड़, बाकी सालों में आम तौर पर बजट फरवरी के आखिरी कार्यदिवस को पेश किया जाता था. इसके बाद बजट दो हिस्सों में पारित होता था. पहला हिस्सा यानी आम बजट और नए कारोबारी साल के पहले दो महीनों के लिए खर्च से जुड़े प्रस्ताव को मार्च में पारित कराया जाता था. इसके बाद एक महीने का सत्रावकास होता धा जिस दौरान संसद की विभिन्न स्थायी समितियां टैक्स और विभिन्न मत्रालयों से जुड़े खर्च के प्रावधानों पर विचार कर अपनी रिपोर्ट देती थी. सत्रावकास के बाद बजट के दूसरे हिस्सों को संसद में पारित कराया जाता था. इस तरह बजट पारित होते-होते मई तक का वक्त लग जाता था. ऐसे में परेशानी ये होती कि कारोबारी साल के पहले तीन महीनों के दौरान कुछ खर्चा नहीं होता. सरकार की राय में इससे विकास कार्यों पर असर पड़ता है.

फिलहाल, सरकार की कोशिश बजटीय प्रक्रिया को 31 मार्च तक पूरा कर लेने का है. इसके लिए बजट के पहले हिस्से को जहां फरवरी के मध्य तक पारित करा लिया जाता है तो वही संसदीय समिति के अध्ययन के बाद मार्च के दूसरे या तीसरे हफ्ते में वित्त विधेयक और खर्चों के प्रस्तावों पर संसद चर्चा कर पारित करने की कोशिश करती है. अब 31 मार्च के पहले बजट पारित हो जाता है तो नए कारोबारी साल के लिए खर्चों के प्रावधान पर पहली अप्रैल से ही अमल होने लगता है. इससे 12 महीनों का खर्च 12 महीनों में होता है जिसका फायदा अर्थव्यवस्था को मिलता है. ध्यान रहे कि इस साल बजटीय प्रक्रिया 31 मार्च के पहले ही पूरी हो गयी थी.

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