Universal Social Security Scheme: 2024 के लोकसभा चुनाव होने में अब एक साल से भी कम समय बचा है. जाहिर है सत्ताधारी दल और विपक्ष अपने अपने घोषणाओं के जरिए वोटरों को लुभाने की कोशिश करेंगे. उन घोषणाओं में यूनिवर्सल सोशल सिक्योरिटी स्कीम भी हो सकती है जिसके जरिए वोटरों को रिझाने की कोशिश की जाएगी. इस बीच देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने कहा है कि भारत के लिए यूनिवर्सल सोशल सिक्योरिटी स्कीम एजेंडा पर कतई नहीं होनी चाहिए. 


भारत के लिए ये विचार ठीक नहीं! 


लखनऊ में बिजनेस चैंबर सीआईआई के कार्यक्रम में मुख्य आर्थिक सलाहकार से सवाल पूछा गया था कि,  देश में बढ़ती बेरोजगारी, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के रोजगार पर बढ़ते खतरे को देखते हुए क्या भारत में यूनिवर्सल सोशल सिक्योरिटी उपलब्ध कराने का सही समय आ गया है? इस  प्रश्न के जवाब में मुख्य आर्थिक सलाहकार ने कहा कि अगले कुछ समय तक भारत के एजेंडे में यूनिवर्सल सोशल सिक्योरिटी कतई नहीं होना चाहिए. उन्होंने कहा कि भारत जैसे उभरती अर्थव्यवस्था के लिए यूनिवर्सल सोशल सिक्योरिटी स्कीम जैसा कॉंसेप्ट ठीक नहीं होगा. बल्कि आर्थिक विकास के जरिए रोजगार सृजण और लोगों की आय को बढ़ाने का प्रयास किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि उन लोगों को सपोर्ट करना चाहिए जो देश में आर्थिक गतिविधि में हिस्सा ले पाने में असमर्थ हैं और ऐसे लोगों के जीवनस्तर को उठाने पर जोर देना चाहिए जिससे वे आर्थिक गतिविधि में हिस्सा ले सकें.  


भारत में यूनिवर्सल सोशल सिक्योरिटी की जरुरत नहीं!


वी अनंत नागेश्वरन ने कहा कि भारत उस अवस्था में नहीं पहुंचा है कि मानवीय तौर पर या फिर ऐसी आर्थिक आवश्यकता आन पड़ी हो कि लोगों को यूनिवर्सल सोशल सिक्योरिटी उपलब्ध कराई जाए.  उन्होंने कहा कि विकसित देश जिसके पास रोजगार के अवसर बढ़ाने के सीमित साधन होते हैं वहां की सरकारों को अपने लोगों की यूनिवर्सल सोशल सिक्योरिटी स्कीम के जरिए मदद करनी पड़ती है. लेकिन हमारा देश जो आर्थिक विकास के जरिए लोगों के आकांक्षाओं को पूरा करने की क्षमता रखता है. यूनिवर्सल सोशल सिक्योरिटी स्कीम के जरिए हम लोगों को कुछ नहीं करने के लिए प्रेरित करेंगे. उन्होंने कहा कि मेरा मानना है कि भारत के लिए यूनिवर्सल सोशल सिक्योरिटी स्कीम एजेंडा पर कतई नहीं होना चाहिए. 


यूनिवर्सल सोशल सिक्योरिटी का मुद्दा पकड़ेगा जोर!


आपको याद दिला दें कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने न्याय योजना के जरिए वोटरों को लुभाने की कोशिश कर चुकी है जिसमें देश की 20 फीसदी गरीब परिवार को सालाना 72000 रुपये देने का वादा किया गया था. हालांकि तब वोटरों को ये रास नहीं आया. हाल ही में कर्नाटक में विधानसभा चुनाव हुए तो कांग्रेस ने स्नातक डिग्री वाले बेरोजगार युवाओं को 3,000 रुपये और डिप्लोमा किए हुए बेरोजगार युवाओं को 1500 रुपये हर महीने सहायता देने का वादा किया. और माना जा रहा है इस वादे के दम पर पार्टी सूबे में सत्ता में आई है. जाहिर है इन चुनावों वादों का असर राज्य के खजाने पर असर पड़ेगा. लेकिन 2024 में होने वाले महाचुनाव से पहले एक बार यूनिवर्सल सोशल सिक्योरिटी स्कीम का मुद्दा गरमाने वाला है.    


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