Digital Currency: यूपीआई की बादशाहत के बीच डिजिटल रुपये का क्या होगा, RBI के पूर्व डिप्टी गवर्नर को सफलता पर संदेह
UPI: एसएस मुंद्रा ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि डिजिटल करेंसी कोई विशेष उद्देश्य पूरा नहीं कर पा रही है. उन्होंने बैंकों को भी फिनटेक कंपनियों से हाथ मिलाने की सलाह दी है.
UPI: रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने डिजिटल करेंसी को लॉन्च कर दिया है. इससे रुपये को इलेक्ट्रॉनिक रूप मिल गया है. हालांकि, आरबीआई के पूर्व डिप्टी गवर्नर एसएस मुंद्रा (SS Mundra) को डिजिटल रुपये की सफलता पर संदेह है. उनका मानना है कि देश में यूपीआई सिस्टम तेजी से बढ़ता जा रहा है. लोगों ने इसे खुले दिन से स्वीकार लिया है. ऐसे में डिजिटल रुपये से कोई विशेष उद्देश्य पूरा होता नजर नहीं आता है.
यूपीआई ट्रांजेक्शन पार कर रहा 20 लाख करोड़ रुपये का आंकड़ा
देश में यूपीआई के आंकड़े हर दिन और मजबूत होते जा रहे हैं. जुलाई में यूपीआई ट्रांजेक्शन ने 20.64 लाख करोड़ का आंकड़ा पार कर लिया है. सालाना आधार पर इसमें 35 फीसदी का उछाल आया है. लगातार तीसरे महीने यूपीआई ट्रांजेक्शन 20 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा के हुए हैं. एसएस मुंद्रा ने बंधन बैंक (Bandhan Bank) के एक कार्यक्रम में कहा कि सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) या इलेक्ट्रॉनिक रुपया तमाम कोशिशों के बावजूद लोकप्रिय नहीं हो पा रहा है. यूपीआई सफल हो चुका है. ऐसे में लोगों को इलेक्ट्रॉनिक रुपये का कोई विशेष लाभ समझ नहीं आ रहा है.
हमें सीबीडीसी की जरूरत, इसे सफल बनाने की कोशिश है जारी
हालांकि, उन्होंने माना कि एक सीबीडीसी हमारे पास होनी चाहिए. फिलहाल आरबीआई इलेक्ट्रॉनिक रुपये को सफल बनाने की कोशिश में जुटा हुआ है. इसे रिटेल सेगमेंट में लोकप्रिय बनाने के लिए नॉन बैंक पेमेंट सिस्टम ऑपरेटर्स द्वारा सीबीडीसी वॉलेट शुरू करने के प्रयास भी किए जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि अभी रुपये को इंटरनेशनल करेंसी बनाने का सही समय नहीं आया है. इसके लिए हमें इंतजार करना होगा.
बैंकों को फिनटेक कंपनियों से हाथ मिलाकर करना चाहिए बिजनेस
उन्होंने बताया कि केंद्रीय बैंक रुपये को लगातार मजबूत करने के पक्ष में है. हम इसे बदलाव के योग्य बनाना चाहते हैं ताकि भारतीय मार्केट से किसी समय ग्लोबल इनवेस्टमेंट के बाहर जाने पर स्थिति को संभाला जा सके. एसएस मुंद्रा ने कहा कि अब बैंकों को अपनी आगे की रणनीति के बारे में दोबारा से सोचने का सही समय आ गया है. मार्केट में टेक्नोलॉजी से लैस फिनटेक कंपनियों की भरमार है. ये बैंकों के बिजनेस मॉडल को चोट पहुंचा रही हैं. ऐसे में बैंकों और फिनटेक कंपनियों के हाथ मिलाने से स्थिति में काफी बदलाव आ सकता है.
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