लॉकडाउन के शुरुआती तीन महीनों में देश के शहरी इलाकों में बेरोजगारी इसके पिछले साल ( 2019) की समान अवधि में दोगुना बढ़ गई थी. सरकारी आंकड़ों ने इसका खुलासा किया है. कोरोना महामारी की वजह से नौकरियां में आई कमी और बीमारी को रोकने लिए किए गए कड़े उपाय के बारे में सर्वे के दौरान इन आंकड़ों का खुलासा हुआ है.


सबसे ज्यादा असर युवा कामगारों की कमाई पर


सरकारी आंकड़ों के मुताबिक शहरी इलाकों में अप्रैल-जून ( वित्त वर्ष 2019-20) के दौरान बेरोजगारी दर 20.9 फीसदी बढ़ गई थी. जबकि जनवरी-मार्च ( वित्त वर्ष 2018-19) के दौरान यह सिर्फ 9.1 फीसदी थी. सर्वे के मुताबिक शहरों में ट्रांसजेंडर समेत पुरुषों के बीच बेरोजगारी दर 20.8 फीसदी रही जबकि महिलाओं में बेरोजगारी दर 21.2 फीसदी रही. सबसे ज्यादा असर युवा कामगारों पर पड़ा . शहरों में 15 से 29 साल के बीच के लोगों के बीच बेरोजगारी दर 34.7 फीसदी रही. लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन की दर 35.9 फीसदी घट गई. विश्लेषकों का कहना है कि हालांकि 20 फीसदी से ज्यादा बेरोजगारी दरों का आंकड़ा आगे बरकरार नहीं रहा.


मैन्यूफैक्चरिंग के साथ सर्विस सेक्टर को भी भारी चोट


लॉकडाउन के दौरान आर्थिक गतिविधियों के बंद हो जाने मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर को काफी झटका लगा. इसके साथ ही सर्विस सेक्टर की गतिविधियों पर भी बड़ा असर हुआ. होटल, ट्रैवल, टूरिज्म और अन्य हॉस्पेटिलिटी इंडस्ट्री पर इसका ज्यादा असर रही. देश की जीडीपी में सर्विस सेक्टर की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा है. इसलिए रोजगार पर इसका व्यापक असर दिखा. दूसरी ओर फैक्टरियों के बंद होने से मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर की गतिविधियां भी रुक गईं. प्रवासी मजदूरों के घर लौटने की वजह सी मैन्यूफैक्चरिंग गतिविधियों को भारी झटका लगा और उत्पादन लगभग ठप हो गया.


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