Interest Rate Hike: दुनिया भर के सेंट्रल बैंक्स (Central Banks) कई दशकों की सबसे ज्यादा महंगाई (Record High Inflation) को नियंत्रित करने के लिए लगातार ब्याज दरों को बढ़ा (Interest Rate Hike) रहे हैं. पिछले एक साल के दौरान लगभग सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं ब्याज दरों में तेज बढ़ोतरी के दौर से गुजरी हैं. इसके बाद ऐसा लग रहा था कि नए साल में ब्याज दरों के बढ़ने की रफ्तार कुछ कम हो सकती है. हालांकि अब यह उम्मीद कमजोर पड़ रही है.


महंगाई के इस ट्रेंड का असर


अमेरिकी सेंट्रल बैंक फेडरल रिजर्व ने तो इस बारे में साफ इशारा किया है. फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने मंगलवार को कहा कि ब्याज दरें केंद्रीय बैंक के नीति निर्धारकों के अनुमान की तुलना में ज्यादा तेज बढ़ सकती हैं. उन्होंने अर्थव्यवस्था को लेकर भी बातें की. पॉवेल ने ब्याज दरें बढ़ाने की इस मजबूरी के लिए महंगाई के बदले ट्रेंड को जिम्मेदार बताया.


महंगी दरों का होगा ये असर


फेड रिजर्व चेयरमैन ने कहा कि पिछले साल यानी 2022 के अंत में महंगाई ने नरम पड़ने के जो संकेत दिए थे, वह इस साल यानी 2023 में पलट रहा है. इसके लिए उन्होंने 2023 के महंगाई के शुरुआती आंकड़ों का हवाला दिया. उन्होंने कहा कि महंगाई फिर से बढ़ने लगी है, जो कुछ महीने पहले कम होने लग गई थी. ऐसे में इसे काबू करना जरूरी है और इसके लिए ब्याज दरों को बढ़ाना होगा. अगर ब्याज दरें बढ़ाई जाती हैं, तो इसका सीधा असर अर्थव्यवस्था के बढ़ने की रफ्तार पर होगा. महंगी ब्याज दरें आर्थिक वृद्धि दर के मोर्चे पर चुनौतियों को बढ़ा सकती हैं.


पॉवेल की ये है मजबूरी


पॉवेल इस सप्ताह अमेरिकी संसद के सामने पेश होने वाले हैं. इससे पहले उन्होंने कहा, ताजा आर्थिक आंकड़े अनुमान से अलग आए हैं, जो अंतत: इशारा करते हैं कि ब्याज दरों में वृद्धि पहले के अनुमानों से ज्यादा हो सकती है. अगर ये आंकड़े कहते हैं कि ब्याज दरों को तेज बढ़ाना जरूरी है, तो ऐसे में हमें इसकी रफ्तार बढ़ाने के लिए तैयार होना पड़ेगा.


रिजर्व बैंक पर भी होगा असर


आपको बता दें कि अमेरिकी सेंट्रल बैंक यानी फेडरल रिजर्व के फैसलों का असर दुनिया भर के तमाम सेंट्रल बैंकों पर पड़ता है और रिजर्व बैंक भी इससे अछूता नहीं है. फेडरल रिजर्व के अप्रत्याशित कदमों के कारण ही पिछले साल मई में रिजर्व बैंक ने अचानक एमपीसी की बैठक बुलाकर ब्याज दरों को बढ़ाने की शुरुआत की थी. उसके बाद से अब तक कई चरणों में रेपो रेट को बढ़ाया जा चुका है. ऐसा माना जा रहा था कि अब रिजर्व बैंक ब्याज दरों को बढ़ाने के ट्रेंड पर ब्रेक लगा सकता है. हालांकि पॉवेल के इशारे ने इस अनुमान को कमजोर किया है. असका मतलब हुआ कि रिजर्व बैंक भी ब्याज दरों को अभी और बढ़ाने के लिए मजबूर हो सकता है. अगर ऐसा होता है तो लोगों को अभी और महंगे ब्याज की समस्या का सामना करना होगा.