ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध से भारतीय बाजार पर असर, रुपया कमजोर, बढ़ सकती है महंगाई
भारतीय रुपए के अच्छे दिन लगातार दूर जाते नजर आ रहे हैं. भारतीय अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ रहा है. अब रुपया डॉलर के मुकाबले 15 महीने के सबसे निचले स्थान पर पहुंच गया है.
नई दिल्ली: ईरान पर प्रतिबंध की खबर का अंतरराष्ट्रीय बाज़ार पर असर अभी से दिखने लगा. अब पूरे बाज़ार में उथल पुथल मच जायेगी. पूरी दुनिया में तेल की कीमत पर असर पड़ेगा. भारत में तेल आपुर्ति पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा किसी और देश से ले लेंगे. लेकिन तेल की कीमत पर असर पड़ेगा. अगले 4-5 महीने दुनिया भर तेल की कीमत में उथल पुथल बना रहेगा. अमेरिका चाहेगा की तेल की कीमत ज्यादा ना बढ़े लेकिन वो चाह कर भी कंट्रोल नहीं कर पायेगा.
भारत के जितने भी समझौते ईरान से होने वाले थे चाहे वो गैस के हो या तेल के सब पर नकारात्मक असर पड़ेगा. क्योंकि अमेरिका ने साफ कह दिया है की ईरान के साथ किसी तरह का संबंध ना रखा जाये. और अमेरिका के खिलाफ जाना किसी भी देश के लिए बहुत मुश्किल है.
डॉलर के मुकाबले रुपए का गिरना भारत के लिए मुश्किल बढ़ाएगा भारतीय रुपए के अच्छे दिन लगातार दूर जाते नजर आ रहे हैं. भारतीय अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ रहा है. अब रुपया डॉलर के मुकाबले 15 महीने के सबसे निचले स्थान पर पहुंच गया है. 67.13 रुपए का एक डॉलर. रुपये ने अपना सबसे निचला स्तर भी मोदी सरकार के कार्यकाल में ही देखा है. नवंबर 2016 में रुपये ने डॉलर के मुकाबले 68.80 का निचला स्तर छुआ था. जब मोदी सरकार मई 2014 में दिल्ली में सत्तारूढ़ हुई थी तब डॉलर के मुक़ाबले रुपया 60 के स्तर के आसपास था.
कैसे तय होती है रुपए की कीमत रुपये की कीमत पूरी तरह इसकी डिमांड और सप्लाई पर निर्भर करती है. इंपोर्ट और एक्सपोर्ट का भी इस पर असर पड़ता है. हर देश के पास उस विदेशी मुद्रा का भंडार होता है, जिसमें वो लेन-देन करता है. विदेशी मुद्रा भंडार के घटने और बढ़ने से ही उस देश की मुद्रा की चाल तय होती है.
क्यों गिर रहा है रुपया पहली वजह है तेल के बढ़ते दाम-रुपये के लगातार कमजोर होने का सबसे बड़ा कारण कच्चे तेल के बढ़ते दाम हैं. भारत कच्चे तेल के बड़े इंपोर्टर्स में एक है. कच्चे तेल के दाम साढ़े तीन साल के उचे स्तर पर हैं और 75 डॉलर प्रति बैरल के आसपास पहुंच गए हैं. भारत ज्यादा तेल इंपोर्ट करता है और इसका बिल भी उसे डॉलर में चुकाना पड़ता है.
ट्रंप ने 'एकतरफा' ईरान परमाणु समझौते से अमेरिका के हटने की घोषणा की
विदेशी संस्थागत निवेशकों की बिकवाली- विदेशी संस्थागत निवेशकों ने भारतीय शेयर बाज़ारों में अप्रैल में ही रिकॉर्ड 15 हज़ार करोड़ रुपये के शेयर बेचे हैं और मुनाफ़ा डॉलर में बटोरकर अपने देश ले गए. अमरीका में बॉन्ड्स से होने वाली कमाई बढ़ी है. अब अमरीकी निवेशक भारत से अपना निवेश निकालकर अपने देश ले जा रहे हैं और वहाँ बॉन्ड्स में निवेश कर रहे हैं.
रुपया गिरने से जनता पर असर सबसे बड़ा असर तो ये होगा कि महंगाई बढ़ सकती है. कच्चे तेल का इंपोर्ट होगा महंगा तो महंगाई भी बढ़ेगी. ढुलाई महंगी होगी तो सब्जियां और खाने-पीने की चीज़ें महंगी होंगी. डॉलर में होने वाला भुगतान भी भारी पड़ेगा. इसके अलावा विदेश घूमना महंगा होगा और विदेशों में बच्चों की पढ़ाई भी महंगी होगी.
किसको फायदा कमजोर रुपया निर्यात के लिए बेहतर है सभी एक्सपोर्ट से जुड़ी हुई इंडस्ट्री बेहतर होंगी यानी फार्मा कंपनियां, आईटी कंपनियां जिनका रेवेन्यू दूसरे देशों से आता है उन्हें मुनाफा होगा.