Vedanta Deal: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात में अनिल अग्रवाल (Anil Agarwal) का वेदांता समूह (Vedanta Group) सेमीकंडक्टर प्रोजेक्ट (Semiconductor Project) लगाने जा रहा है. वेदांता का ये महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट करीब 19 अरब डॉलर का होगा और इसके ऐलान के साथ ही इस पर गर्मागर्म चर्चा भी चल रही है. हम यहां राजनीतिक पहलू पर बात नहीं करेंगे कि वेदांता का प्रोजेक्ट महाराष्ट्र के खाते में ना जाकर गुजरात को कैसे मिला? बल्कि यहां हम इसके एक ऐसे तकनीकी पहलू को बताएंगे कि कैसे अमेरिका के विस्कोंसिन राज्य के प्रोजेक्ट की तरह बेहद महत्वाकांक्षी तो है पर ठीक उसी की तरह इसके पूरे होने में कई अड़चनें भी हैं जिनका ध्यान रखा जाना चाहिए. 


वेदांता के प्रोजेक्ट की पॉजिटिव बातें
वेदांता और फॉक्सकॉन  के इस Semiconductor Project को लगाने की रेस में महाराष्ट्र, तेलंगाना और कर्नाटक राज्य भी शामिल थे लेकिन महाराष्ट्र को पीछे छोड़ गुजरात ने ये बाजी मार ली है. प्रोजेक्ट के बारे में खास बात ये है कि ये बेहद विशाल परियोजना है और देश में सेमीकंडक्टर की कमी को पूरा करने में ये बहुत सहायक होगा. प्रोजेक्ट पूरा होने के दौरान 1 लाख नौकरियों के मौके बनेंगे और 19 अरब डॉलर का ये प्रोजेक्ट राज्य के विकास को नई ऊंचाई पर ले जाने में सक्षम होगा.  


वेदांता के प्रोजेक्ट की निगेटिव बातें
वेदांता के प्रोजेक्ट को करीब से देखें तो ये अमेरिका के विस्कोंसिन प्रोजेक्ट की तरह नजर आता है जो साल 2017 में ऐलान हुआ था. उस समय इसमें 10 अरब डॉलर लगाने और 13,000 कर्मचारियों को नौकरी देने की उम्मीद जताई गई थी. तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति और विस्कोंसिन के गवर्नर स्कॉट वॉकर के समय में फॉक्सकॉन टेक्नोलॉजी और  ताइवानी होन हई प्रसीजिन इंडस्ट्री की फ्लैगशिप कंपनी ने मिलकर विस्कोंसिन में ये प्रोजेक्ट लगाने का करार किया था. 


विस्कोंसिन प्रोजेक्ट ने कभी अपना टार्गेट पूरा नहीं किया और यही बात गुजरात के इस प्रोजेक्ट को पूरा कर पाने की उम्मीद को थोड़ा धूमिल कर देती है. 


दरअसल फॉक्सकॉन के फाउंडर और चेयरमैन Terry Gou ने विस्कोंसिन में प्रोजेक्ट लगाने के समय ही कहा था, हमारा 10 अरब डॉलर के खर्च से यूएस में हाई-टेक मैन्यूफैक्चरिंग प्लांट लगाने की योजना है. लेकिन ये एक वादा नहीं है, ये एक इच्छा है. लिहाजा अब जब वेदांता लिमिटेड इसी कंपनी फॉक्सकॉन के साथ मिलकर गुजरात में प्लांट  लगाना चाहती है तो सवाल उठने लाजिमी हैं और कहा भी जा रहा है कि ये प्रोजेक्ट पूरा नहीं हो पाएगा. ऐसा इसलिए कि ताइवानी कंपनी इस प्रोजेक्ट की ड्राइविंग फोर्स ना होकर मुख्य रूप से कंसल्टिंग पार्टनर है. वहीं प्रोजेक्ट के लिए नंबर, लोकेशन से लेकर संभावनाएं तक वेदांता ही तय कर रही है और अधिकांश वित्तीय खर्च भी ये ही उठा रही है.


फॉक्सकॉन का खराब प्रदर्शन
फॉक्सकॉन ने विस्कोंसिन में बहुत से वादे किए पर कई प्रमुख वादे पूरे नहीं किए. यूएस में स्टेट ऑफ द आर्ट 10G लिक्विड-क्रिस्टल-डिस्पले पैनल फैक्ट्री का नाम इसमें सबसे ऊपर है. कम से कम इसने आईफोन असेंम्बलिंग का वादा भी कभी नहीं किया जिसके लिए फॉक्सकॉन सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है.


भारत में क्या दिक्कतें हैं
भारत में वेदांता के सामने सबसे बड़ी दिक्कत है कि वो इस प्रोजेक्ट के लिए जो कारोबारी छूट चाहती है, वो उसे मिलेंगी या नहीं, इस पर संशय है. सरकारें चुनाव जीतने के लिए लोकलुभावन घोषणाएं करती हैं और गुजरात में भी इसी साल चुनाव हैं. इसी से ये भी राजनीतिक आरोप लग रहे हैं कि ये विशाल प्रोजेक्ट इसी कारण गुजरात को मिला है. हालांकि गुजरात के लोगों को अभी से इस पर खुश होने से पहले इसके तकनीकी पहलुओं को जान लेना चाहिए क्योंकि विस्कोंसिन के गवर्नर ने तो अपनी गद्दी गवां दी पर उनका घर बना रहा. लेकिन विस्कोंसिन के सैकड़ों लोग जिन्हें अपना घर-बार इस ड्रीम प्रोजेक्ट के लिए छोड़ना पड़ा, वो यहां वापस नहीं लौट सके और ना ही वो प्रोजेक्ट पूरा हुआ. 


नोटः इस खबर के लिए इनपुट ब्लूमबर्ग से लिए गए हैं. 


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