कोरोना संक्रमण संकट के दौर में निवेशक म्यूचुअल फंड से निकलते जा रहे हैं. खास कर सिप के जरिये इक्विटी म्यूचुअल फंड में निवेश करने वाले अपना फोलियो बंद करा रहे हैं. हालांकि एक्सपर्ट्स का कहना है कि इन हालातों के बावजूद कोशिश करनी चाहिए कि वे इस निवेश में बने रहें. उनका मानना है कि इस वक्त इक्विटी म्यूचुअल फंड के बजाय बैलेंस्ड फंड की ओर रुख करना चाहिए.
बाजार के जोखिम कम करता है बैलेंड्स फंड
निवेशकों को ऐसे प्रोडक्ट में निवेश करना चाहिए जो इक्विटी, डेट और गवर्नमेंट सिक्योरिटीज का सही मिक्स हो. ऐसे निवेशकों के लिए बैलेंस्ड या हाइब्रिड म्यूचूअल फंड बेहतर विकल्प हैं. यह उन के लिए बेहतर विकल्प है, जो बाजार का जोखिम नहीं लेना चाहते .
बैलेंस्ड या हाइब्रिड म्यूचुअल फंड अलग-अलग एसेट क्लास में निवेश करते हैं. इनमें शेयर, डेट इंस्ट्रमेंट्स, गवर्नमेंट और मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स शामिल हैं. अगर निवेशक जोखिम न लेना चाहें और बाजार के उतार-चढ़ाव से खुद को सुरक्षित रखना चाहें तो वह इस विकल्प को आजमा सकते हैं. सेबी ने इन्हें अलग-अलग छह कैटेगरी में बांट दिया है, जिससे निवेश पहले से आसान हो गया है. म्यूचुअल फंड की यह कैटेगरी सुरक्षित और स्थिर रिटर्न दे सकती है. निवेश के लिहाज से जो कैटेगेरी बांटी गई है वे हैं- एग्रेसिव हाइब्रिड फंड, बैलेंस्ड हाइब्रिड फंड, डायनेमिक एलोकेशन फंड, मल्टी एसेट एलोकेशन फंड और आर्बिट्राज फंड. निवेशक इक्विटी और डेट में निवेश के अनुपात को देखकर अपने रिस्क लेने की क्षमता के आधार पर सही स्कीम का चुनाव कर सकते हैं.
टैक्स देनदारी
इक्विटी और डेट फंड पर अलग-अलग तरह से टैक्स कैलकुलेट होता है. इक्विटी फंडों को अपने कुल एसेट का 65 फीसदी से ज्यादा शेयरों में लगाना जरूरी होता है. जबकि बैलेंस्ड हाइब्रिड और एग्रेसिव हाइब्रिड में से लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन्स का लाभ सिर्फ एग्रेसिव हाइब्रिड म्यूचुअल फंड पर ही मिलता है. चूंकि इसमें शेयरों में निवेश का हिस्सा ज्यादा होता है इसलिए लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स का लाभ मिलता है.