आज के समय में लगभग हर किसी का बैंक में अकाउंट है. पहले भारत में बैंकिंग की पहुंच कम थी यानी बहुतायत में ऐसे लोग थे, जिनका किसी बैंक में अकाउंट नहीं था, लेकिन प्रधानमंत्री जन-धन योजना ने इसकी पूरी तस्वीर बदल दी. अब यह आंकड़ा तेजी से बढ़ा है. अगर आप यह आर्टिकल पढ़ रहे हैं तो आपके पास बैंक अकाउंट नहीं होने के चांसेज लगभग न के बराबर हैं, और चूंकि आपके पास बैंक अकाउंट है, आपने कई बार ऐसा नोटिस किया होगा कि आपके अकाउंट से अलग-अलग सर्विस के नाम पर बैंक पैसे काट लेते हैं.
अब इतनी आबादी के पास अकाउंट
आज हम बात करेंगे कि बैंक हमसे और आपसे क्या-क्या चार्जेज वसूल करते हैं और साथ ही हम ये भी जानेंगे कि क्या उनसे बचने का कोई उपाय है... लेकिन बढ़ने से पहले कुछ बुनियादी बातें जान लेते हैं. साल 2011 में भारत में 15 साल से ज्यादा उम्र वाले 44 फीसदी लोगों के पास ही बैंक अकाउंट थे. प्रधानमंत्री जन-धन योजना से इस आंकड़े में जबरदस्त बदलाव आया. साल 2021 में बैंक अकाउंट रखने वाली आबादी का हिस्सा 15 साल से ऊपर वाले वर्ग में बढ़कर करीब 78 फीसदी पर पहुंच गया.
अकाउंट के टाइप के हिसाब से चार्ज
बैंक में खुलने वाले अकाउंट मूलत: दो तरह के होते हैं- सेविंग अकाउंट और करंट अकाउंट. आम लोग सेविंग अकाउंट यानी बचत बैंक खाता ही खुलवाते हैं. करंट अकाउंट वैसे लोगों के लिए बेहतर विकल्प है, जो मोटा लेन-देन करते हैं. स्वाभाविक है कि करंट अकाउंट ज्यादातर बिजनेस करने वाले लोगों के पास होता है. अब सेविंग अकाउंट के मामले में देखें तो यहां भी मुख्य तौर पर दो प्रकार हैं- एक जीरो बैलेंस सेविंग अकाउंट यानी ऐसा बचत खाता, जिसमें कम से कम कोई रकम रखने की सीमा नहीं हो, दूसरा मिनिमम बैलेंस सेविंग अकाउंट यानी ऐसे बचत खाते, जिनमें एक तय राशि से कम पैसे नहीं रख सकते हैं.
आइए जानें बैंकों के मुख्य शुल्क
आपका अकाउंट चाहे जिस कैटेगरी में आए, आपको चार्जेज तो देने ही पड़ते हैं. हां, चार्जेज की संख्या और उनके अमाउंट कैटेगरी के हिसाब से अलग-अलग हो सकते हैं. आइए जानते हैं कि बैंक अकाउंट पर वसूले जाने वाले कुछ मुख्य शुल्कों के बारे में और ये भी कि उनसे कैसे बचा जा सकता है...
1: मेंटनेंस/सर्विस फी: सभी बैंक अपका अकाउंट मेंटेन करने के बदले यह चार्ज वसूल करते हैं. यह हर तरह के अकाउंट पर लगता है. इसकी दरें बैंकों के हिसाब से अलग हो सकती हैं.
कैसे बचें: कई बैंक एक लिमिट से ज्यादा ट्रांजेक्शन होने पर इसे माफ कर देते हैं. यह आप अपने बैंक के नियम व शर्तों को पढ़कर जान सकते हैं.
2: डेबिट कार्ड फी: बैंक आम तौर पर अकाउंट खुलते ही साथ में डेबिट कार्ड दे देते हैं. यह फ्री नहीं होता है. इसके लिए सभी बैंक सालाना आधार पर चार्ज वसूल करते हैं.
कैसे बचें: अगर आपको डेबिट कार्ड की जरूरत नहीं है तो बैंक से न लें. एक से ज्यादा अकाउंट होने पर किसी एक के लिए ही कार्ड लें.
3: अदर एटीएम चार्ज: अगर आप दूसरे बैंक के एटीएम का इस्तेमाल करते हैं तो उसके लिए आपको चार्ज देना होगा. अब तो अपने बैंक के एटीएम से भी महीने में 4 बार ही फ्री में पैसे निकाल सकते हैं.
कैसे बचें: प्रयास करें कि महीने के खर्च के ज्यादा से ज्यादा पैसे एक-दो बार में ही निकाल लें. दूसरे बैंक के एटीएम का इस्तेमाल करने से बचें.
4: इनसफिसिएंट फंड: जिन अकाउंट में मिनिमम बैलेंस की जरूरत होती है, उनमें लिमिट से पैसे कम होने पर बैंक चार्ज वसूल करते हैं.
कैसे बचें: अपने अकाउंट की मिनिमम लिमिट को मेंटेन रखें.
5: ओवरड्राफ्ट फी: यह हर किसी के लिए लागू नहीं है. यह सुविधा सभी बैंक नहीं देते हैं. इसके तहत आप बैलेंस नहीं होने पर भी एक लिमिट तक पैसे निकाल सकते हैं.
कैसे बचें: प्रयास करें कि कभी इसकी जरूरत न पड़े. इसके लिए आपको नियमित बचत की आदत डालकर एक फंड तैयार रखना चाहिए.
6: ट्रांसफर फी: आप किसी दूसरे अकाउंट में यूपीआई, आईएमपीएस, आरटीजीएस, एनईएफटी जैसे माध्यमों से पैसे भेज सकते हैं. इनमें से सभी फ्री नहीं हैं. आईएमपीएस ट्रांसफर पर कई बैंक पैसे चार्ज करते हैं.
कैसे बचें: पेमेंट के लिए यूपीआई, आरटीजीएस, एनईफटी आदि का इस्तेमाल करें.
7: अकाउंट क्लोजिंग चार्ज: अगर आप बैंक अकाउंट क्लोज कराते हैं तो बैंक इसके लिए आपसे चार्ज ले सकते हैं. तो कभी भी आंखें मूंदकर अकाउंट न खुलवाएं.
कैसे बचें: अकाउंट ओपन होने के कुछ समय बाद उसे क्लोज कराने पर बैंक चार्ज वसूल नहीं करते हैं, तो अकाउंट क्लोज कराने से पहले इस शर्त को देख लें.
8: डॉरमेंसी फी: अगर आप लंबे समय तक अकाउंट से कोई ट्रांजेक्शन नहीं करते हैं तो बैंक उसे डॉरमेंट कर देते हैं. अमूमन इसकी लिमिट एक साल है.
कैसे बचें: लंबे समय तक अकाउंट को बिना ट्रांजेक्शन के न छोड़ें. ऐसे अकाउंट में कुछ पैसे डालकर उसे वापस निकाल सकते हैं. इससे अकाउंट एक्टिव बना रहेगा.
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