म्यूचुअल फंड में निवेश करने वाले निवेशकों को यह नहीं समझना चाहिए कि फंड में निवेश कर वो सारी जिम्मेदारियों से मुक्त हो गए हैं. अब फंड मैनेजर की जिम्मेदारी है कि आपके लिए अच्छा रिटर्न सुनिश्चित करे. लेकिन यह गलत रणनीति है. एक म्यूचुअल फंड निवेशक को भी अपने निवेश को लेकर सजग रहना चाहिए और म्यूचुअल फंड की बारीकियां समझनी चाहिए. शुरुआती निवेशकों के लिए यह जानना जरूरी है कि अलग-अलग म्यूचुअल फंड की क्या खासियतें हैं.
अक्सर आपने डेट फंड का जिक्र सुना होगा. इसके साथ ही आपने गिल्ट फंड का भी नाम सुना होगा. गिल्ट फंड डेट फंड्स की एक कैटेगरी होती है. गिल्ट फंड स्कीम सरकारी सिक्योरिटी में निवेश करती है. सेबी के नियमों के मुताबिक गिल्ट फंडों को अपने एसेट का कम से कम 80 फीसदी सरकारी सिक्योरिटीज में निवेश करना जरूरी है.
गिल्ट फंड की बारीकियां समझें
गिल्ट फंड दो तरह के होते हैं. एक जो अलग-अलग अवधि में मैच्योर होने वाले सरकारी बॉन्ड में निवेश करते हैं और दूसरे जो दस साल की मैच्योरिटी वाली सरकारी सिक्योरिटीज में निवेश करते हैं.
हालांकि सरकार सिक्योरिटीज में निवेश करने की वजह से इन स्कीमों के डिफॉल्ट की बिल्कुल आशंका नहीं रहती लेकिन ब्याज दरों के लेकर जोखिम बना रहता है. असल में सरकारी बॉन्ड और कॉरपोरेट बॉन्ड से ही बाजार में ब्याज दरें तय होती हैं.
दरअसल इन फंडों में निवेश के लिए बॉन्ड मार्केट की काफी अच्छी समझ होनी चाहिए. इसलिए ज्यादातर फाइनेंशियल एडवाइजर आम म्यूचुअल फंड निवेशकों को इसमें निवेश की सलाह नहीं देते. दरअसल ब्याज दरों में गिरावट के वक्त ये स्कीमें अच्छा प्रदर्शन करती हैं लेकिन ब्याज दरों के बढ़ते ही इनमें नुकसान होने लगता है. इसलिए इसमें एंट्री और एग्जिट का समय अहम होता है.
ब्याज दरों पर नजर रखना जरूरी
गिल्ट फंडों में तभी निवेश करें जब आप ब्याज दरों पर नजर रखने में सक्षम हों. आपको पता होना चाहिए कि स्कीम से कब एग्जिट करना है और कब इसमें एंट्री करना है. चूंकि ब्याज दरों में उतार-चढ़ाव का बॉन्ड पर बहुत फर्क पड़ता है.इसलिए गिल्ट फंड में निवेश के मामले में काफी सावधानी की जरूरत है.