आपने इलेक्ट्रिक वाहनों (E-Vehicles) के बारे में तो जरूर सुना होगा और खूब संभव है कि आपने सवारी भी की हो. भारत में पिछले एक-दो सालों में इलेक्ट्रिक वाहन खूब लोकप्रिय हुए हैं. इलेक्ट्रिक कारों (Electric Cars) से लेकर इलेक्ट्रिक स्कूटरों (Electric Scooters) तक की तेज बिक्री इसका सबूत देती हैं. केंद्र सरकार समेत तमाम राज्य सरकारें लोगों को इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने के लिए सब्सिडी (EV Subsidy) व अन्य छूट दे रही हैं. अब इसी कड़ी में एक नई चीज चर्चा पकड़ रही है... और वह है इलेक्ट्रिक रोड (Electric Road). यह शब्द सुनते ही आपके दिमाग में कई तरह के सवाल उठ सकते हैं... मसलन कि ये इलेक्ट्रिक सड़क आखिर चीज क्या है और यह काम कैसे करती है? आज हम आपको यही समझाने वाले हैं.
क्यों जोर पकड़ रही इलेक्ट्रिक रोड की चर्चा?
आगे बढ़ने से पहले दो बातें जान लेते हैं. सबसे पहले कि ‘इलेक्ट्रिक रोड’ की चर्चा जोर कैसे पकड़ रही है? केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी (Nitin Gadkari) नए-नए प्रयोगों पर अमल करने के लिए जाने जाते हैं. भारत में इलेक्ट्रिक रोड की चर्चा में उनका बड़ा योगदान है. वह कई बार इलेक्ट्रिक रोड की बात कर चुके हैं. इसी सप्ताह उन्होंने फिर से इसे दोहराया है और साथ ही यह बताया है कि वे इसके लिए टाटा समेत कुछ कंपनियों के साथ बातचीत भी कर रहे हैं. गडकरी की तरह बहुत लोगों को लगता है कि इलेक्ट्रिक सड़कें आवागमन के लिए बेहतर विकल्प दे सकती हैं.
पारंपरिक वाहनों से क्या हैं दिक्कतें?
अब दूसरी और सबसे जरूरी बात कि इलेक्ट्रिक वाहनों को लोकप्रियता क्यों मिल रही है और तमाम देश इसे अपनाने पर इतना जोर क्यों दे रहे हैं? पारंपरिक ईंधन यानी डीजल और पेट्रोल पर चलने वाली गाड़ियों के साथ सबसे बड़ी दिक्कत आती है कि प्रदूषण फैलता है. पूरी दुनिया ग्लोबल वॉर्मिंग जैसी समस्याओं को देखते हुए कार्बन उत्सर्जन कम करने पर जोर दे रही है. वायु प्रदूषण में इन गाड़ियों का योगदान बहुत ज्यादा है. इसी कारण सरकारें इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा दे रही हैं, जिससे बिलकुल भी धुआं नहीं होता है.
क्यों इलेक्ट्रिक विकल्प तलाश रही दुनिया?
इसके अलावा लागत भी एक बड़ा कारण है. भारत के संदर्भ में देखें तो अभी सरकार को सबसे ज्यादा पैसे कच्चे तेल पर खर्च करने पड़ते हैं. डीजल और पेट्रोल आदि की जो खपत देश में होती है, उसके 80 फीसदी से ज्यादा हिस्से को आयात किए गए कच्चे तेल से पूरा किया जाता है. अगर यह खर्च कम होता है तो अन्य देशों पर भारत की निर्भरता कम होगी और बहुमूल्य विदेशी मुद्रा भंडार (Forex Reserve) बचेगा. आम लोगों के लिए भी लागत का फैक्टर अहम है. अगर आप डीजल या पेट्रोल गाड़ी लेते हैं, तो बराबर तेल भराते रहने का खर्च है. इसके अलावा सर्विसिंग के भी खर्चे आते हैं. इलेक्ट्रिक वाहन बैटरी से चलते हैं और बैटरियों को चार्ज करने की लागत डीजल-पेट्रोल की तुलना में मामूली है. इसके अलावा इलेक्ट्रिक वाहनों की सर्विसिंग कॉस्ट भी बहुत कम है.
इलेक्ट्रिक वाहनों के साथ ये दिक्कतें
लगातार उन्नत होती तकनीक के बावजूद इलेक्ट्रिक वाहनों की अपनी खामियां हैं. बैटरी की सीमित रेंज और चार्ज करने में लगने वाला घंटों का समय इसकी सबसे बड़ी खामी है. अभी अच्छे इलेक्ट्रिक वाहन 500-700 किलोमीटर का रेंज दे रहे हैं. अगर आपको लंबी दूरी की यात्रा करनी है तो बीच में आपको कई घंटे रुककर बैटरी को चार्ज करना होगा. व्यावसायिक वाहनों खासकर ट्रकों के मामले में यह स्थिति ज्यादा गंभीर हो जाती है, जो अक्सर लंबी दूरी के लिए ही चलते हैं. दूसरी दिक्कत बैटरी में इस्तेमाल होने वाले लिथियम (Lithium) की है. हम कच्चे तेल की तरह लिथियम के मामले में भी आयात पर निर्भर हैं. मतलब... इसने कार्बन उत्सर्जन वाली समस्या तो कम की, लेकिन आयात पर निर्भरता बनी हुई है. साथ ही रेंज वाली समस्या भी आ जाती है.
यहां इलेक्ट्रिक सड़कों पर चल रहा है काम
लोगों का एक वर्ग है, जो मानता है कि इलेक्ट्रिक सड़कें उन खामियों को भी दूर कर सकती हैं, जिन्हें इलेक्ट्रिक वाहनों से दूर करना संभव नहीं हो पा रहा है. दुनिया भर में कई कंपनियां इलेक्ट्रिक सड़कों पर काम कर रही हैं, जिनमें जर्मनी की कार कंपनी फॉक्सवैगन (Volkswagen) भी शामिल है. वॉल्वो (Volvo) ने भी इसका एक डिजाइन तैयार किया है. स्वीडन के स्टॉकहोम में कुछ ही साल पहले इलेक्ट्रिक रोड का निर्माण हुआ है. पहले इसे प्रायोगिक तौर पर कुछ किलोमीटर के लिए सड़क के बाहरी इलाके में तैयार किया गया. अब स्वीडन करीब 3000 किलोमीटर लंबा ऐसा हाइवे बनाने की तैयारी में है. अमेरिका के डिट्रॉयट शहर में इसी साल एक इलेक्ट्रिक सड़क बनाने का काम शुरू हुआ है.
पुराना है ओवरहेड वायर का कांसेप्ट
ऐसा नहीं है कि इलेक्ट्रिक सड़कें एकदम से नई चीज है. इलेक्ट्रिक कारों की तरह इलेक्ट्रिक सड़कों का कांसेप्ट भी पिछली सदी में ही दुनिया देख चुकी है. इसके लिए अभी दो तरह के कांसेप्ट पर काम चल रहा है. पहला कांसेप्ट ओवरहेड इलेक्ट्रिक वायर पर बेस्ड है. इसे उदाहरण से समझने के लिए आप ट्रेन या मेट्रो को देख सकते हैं. फॉक्सवैगन का कांसेप्ट इसी पर बेस्ड है.
कंपनी इसके लिए एक तरह से हाइब्रिड वाहनों को चलाना चाह रही है. जिन सड़कों पर ओवरहेड वायर होंगे, वहीं गाड़ियां बिजली से चलेंगी और जहां ओवरहेड वायर नहीं होंगे, उसके लिए या तो बैटरी से चलाने की व्यवस्था रहेगी या पेट्रोल-डीजल से.
इस मॉडल में सड़क से मिलेगी बिजली
एक दूसरा कांसेप्ट यह भी है कि गाड़ियों के इंजन तक बिजली को टायरों के माध्यम से पहुंचाया जाए. बहुत सारे लोगों को ओवरहेड वायर वाला कांसेप्ट ठीक नहीं लगता है. उसके कारण भी हैं. जहां भी ओवरहेड वायर होंगे, वे सड़कें भी एक तरह से ट्रेन की पटरियों की तरह हो जाएंगी. खासकर शहरों में तो ऐसी सड़कें जानलेवा साबित हो सकती हैं. तो इसका निदान है वॉल्वो के मॉडल में.
इस मॉडल में सड़क पर पटरी की तरह बिजली सप्लाई की व्यवस्था होगी. यह इंडक्शन चूल्हे की तरह काम करेगी. मतलब कि इसमें जब कार का रिसीवर कनेक्ट होगा, तभी बिजली आएगी. मतलब यह पैदल चलने वालों के लिए किसी तरह का जोखिम नहीं पैदा करेगा.
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