फंड ऑफ फंड्स (FOF) एक ऐसी म्यूचुअल फंड स्कीम है जो दूसरी म्यूचुअल फंड स्कीमों में निवेश करती है. फंड ऑफ फंड स्कीम के तहत फंड मैनेजर सीधे इक्विटी या बॉन्ड में निवेश करने के बजाय दूसरे फंडों का पोर्टफोलियो रखते हैं. फंड ऑफ फंड्स एक ही फंड के एक या दूसरी स्कीमों में या फिर दूसरे फंड में निवेश कर सकते हैं.

फंड ऑफ फंड्स से विदेशी म्यूचुअल फंड में भी निवेश संभव 

फंड ऑफ फंड्स घरेलू भी हो सकते हैं या विदेशी भी. विदेशी फंड ऑफ फंड के जरिये फंड मैनेजर इंटरनेशल म्यूचुअल फंड स्कीमों में निवेश कर सकते हैं. ऐसी कई स्कीमें हैं, जो डेट और इक्विटी फंडों की मिली-जुली स्कीमों में निवेश करती हैं. ऐसे कई फंड कई एसेट क्लास वाले फंड में भी निवेश करते हैं.फंड ऑफ फंड्स निवेशकों को लिक्विडिटी मुहैया कराने में भी मददगार होते हैं या फिर ये बगैर डी-मैट अकाउंट के भी निवेश की सुविधा देता है.

सीमित पूंजी वाले निवेशकों के लिए अच्छा विकल्प

फंड ऑफ फंड्स का फायदा यह है कि जब फंड मैनेजर डेट और इक्विटी फंडों में संतुलन के लिए री-एलोकेशन करता है, तो कैपटिल्स गेन्स पर टैक्स नहीं लगता है. फंड ऑफ फंड के जरिये निवेश आसान होता है क्योंकि इसमें एक ही एनएवी को फॉलो करना होता है. इससे कई फंडों में निवेश के बजाय एक ही फंड में निवेश करना होता है. चूंकि ये प्रोफेशनल मैनेजरों की ओर से मैनेज होते हैं इसलिए इनकी विश्वसनीयता ज्यादा होती है. फंड ऑफ फंड्स सीमित पूंजी वाले निवेशकों को अलग-अलग एसेट वाले फंड में निवेश करने में मदद करते हैं.

कैसे लगता है टैक्स

फंड ऑफ फंड्स को इक्विटी-ओरिएंटेड फंड की कैटेगरी में रखा जाता है. अगर यह भारतीय शेयरों वाले ईटीएफ में कम से कम 90 फीसदी निवेश करता है, जो फिर भारतीय में लिस्टेड कंपनियों के शेयरों में निवेश करता है तो इस पर इक्विटी शेयर में निवेश पर होने वाले कैपिटल गेन पर लागू टैक्स ही देय होता है. हालांकि इंटरनेशनल फंड्स में निवेश करने वाले फंड ऑफ फंड के रिटर्न पर किसी भी अन्य डेट फंड पर मिलने वाले रिटर्न की तरह ही टैक्स लगता है. अगर 36 महीने से पहले शेयर बेचे जाते हैं तो शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स लगता है. वहीं इससे ज्यादा महीनों के बाद शेयर बेचे जाते हैं तो इंडेक्सेशन बेनिफिट के साथ 20 फीसदी टैक्स लगता है.

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