आपने भी कई बार खबरों में ग्रे मार्केट के बारे में पढ़ा-सुना होगा. खासकर जब कोई चर्चित आईपीओ बाजार में आने लगता है तो ग्रे मार्केट, ग्रे मार्केट प्रीमियम, जीएमपी जैसे शब्दों से हमारा बार-बार आमना-सामना होता है. निश्चित ही आपके मन में ऐसे मौकों पर कई बार सवाल उठा होगा कि आखिर ये ग्रे मार्केट है क्या और इसमें काम कैसे होता है? आज हम ग्रे मार्केट से जुड़े आपके सभी सवालों का जवाब देने वाले हैं...


क्या होता है शेयर बाजार?


ग्रे मार्केट को समझने से पहले शेयर बाजार के बारे में जान लेते हैं. शेयर बाजार या स्टॉक एक्सचेंज एक तरह के प्लेटफॉर्म हैं, जहां कंपनियों के शेयरों की खरीद-बिक्री होती है. यह प्लेटफॉर्म शेयर के खरीदार और विक्रेता के बीच पुल की तरह काम करता है. शेयर बाजार पर शेयरों की खरीद-बिक्री के कुछ तय नियम होते हैं. इन्हीं नियमों को रेगुलेशंस कह सकते हैं और इसी कारण शेयर बाजार मतलब रेगुलेटेड मार्केट हो जाता है.


बाजार और ग्रे मार्केट में मूल अंतर?


ग्रे मार्केट का काम भी कमोबेश यही है, बस वहां रेगुलेशंस लागू नहीं होते हैं, मतलब ग्रे मार्केट यानी अनरेगुलेटेड मार्केट. बोलचाल की भाषा में ऐसे समझ सकते हैं कि एक चोर बाजार है, जहां शेयरों की अवैध तरीके से खरीद-बिक्री होती है, उसको ही ग्रे मार्केट कहते हैं. एकदम संक्षेप में- शेयरों के चोर बाजार को ग्रे मार्केट कहते हैं.


ग्रे मार्केट में कैसे होता है ट्रेड?


मानक भाषा में ग्रे मार्केट को पैरलल मार्केट कह सकते हैं, क्योंकि यह शेयर बाजार के समानांतर काम करता है. इसे अनऑफिशियल स्टॉक मार्केट भी कह दिया जाता है. शेयर बाजार में किसी शेयर के आधिकारिक रूप से शुरुआत करने के पहले ही इस बाजार में उनका ट्रेड शुरू हो जाता है. शेयर बाजार में ट्रेडिंग में खरीदार और विक्रेता का आमने-सामने होना या किसी तरह से डायरेटक्ली कनेक्टेड होना जरूरी नहीं होता है. वहीं ग्रे मार्केट में लेन-देन आमने-सामने होता है और अमूमन कैश में ही होता है.


कितना पुराना है ग्रे मार्केट का इतिहास?


भारत में ग्रे मार्केट का इतिहास काफी पुराना है. भारत में बीएसई को सबसे पुराना प्रमुख शेयर बाजार कह सकते हैं, जिसकी शुरुआत 1875 में हुई. जबकि ग्रे मार्केट उससे भी काफी पहले से सट्टा बाजार के रूप में अस्तित्व में रहा है. आज भी कुछ पारंपरिक सट्टा बाजार बड़े मशहूर हैं. उदाहरण के लिए राजस्थान के फालौदी का सट्टा बाजार, जहां चुनाव से लेकर स्पोर्ट्स तक, हर तरह के सट्टा लगाए जाते हैं.


क्या ग्रे मार्केट में ट्रेड करना सेफ है?


शेयर बाजार जैसे बीएसई या एनएसई पर ट्रेड करना सुरक्षित होता है, क्योंकि तमाम लेन-देन सबसे पहले तो स्टॉक एक्सचेंज से समर्थित होते हैं. उनके ऊपर बाजार नियामक सेबी भी उन्हें बैक करता है. ग्रे मार्केट में लेन-देन करने पर यह सुरक्षा नहीं मिलती है.


कैसे काम करते हैं ग्रे मार्केट?


ग्रे मार्केट भी डिमांड-सप्लाई के बेसिक इकोनॉमिक्स पर काम करते हैं. उदाहरण के लिए- अभी टाटा टेक का आईपीओ आया. लोगों ने टाटा टेक के शेयरों में काफी दिलचस्पी दिखाई. स्वाभाविक है कि ग्रे मार्केट में टाटा टेक का प्रीमियम यानी जीएमपी काफी ऊंचा रहा.


क्यों प्रासंगिक है ग्रे मार्केट?


ग्रे मार्केट आधिकारिक शेयर बाजार में कारोबार शुरू होने से पहले वैल्यू का ठीक-ठाक अंदाजा दे देता है. लगातार कई आईपीओ की लिस्टिंग में ग्रे मार्केट का अंदाजा सटीक साबित हुआ है.


ग्रे मार्केट से कंपनियों को क्या फायदा है?


कई बार कंपनियां खुद भी अपने शेयरों को ग्रे मार्केट में उतारती है. कंपनियां शेयर बाजार में उतरने से पहले अपने शेयरों की वैल्यू को डिस्कवर करने के लिए इस तरह से ग्रे मार्केट का सहारा लेती हैं.


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