म्यूचु्अल फंड में निवेश के मामले में एक्सपेंस रेश्यो भी काफी अहम माना जाता है. फंड का एक्सपेंस रेश्यो ही यह तय करता है कि कोई फंड आपको कितना सस्ता मिलेगा. एक्सपेंस रेश्यो के कम या ज्यादा होने का सीधा असर आपके रिटर्न पर पड़ता है. लिहाजा किसी भी फंड को चुनने से पहले उसका एक्सपेंस रेश्यो जरूर देख लेना चाहिए.
एक्सपेंस रेश्यो को समझें
दरअसल एसेट मैनेजमेंट कंपनी यानी AMC म्यूचुअल फंड के ट्रांसफर, रजिस्ट्रास से जुड़े खर्च, कस्टोडियन, लीगल और ऑडिटिंग का खर्च भी उठाती है. इसके अलावा वह फंड डिस्ट्रीब्यूशन और मार्केटिंग का भी खर्च उठाती है. ये सभी खर्च म्यूचुअल फंड की यूनिट खरीदने वाले निवेशकों से ही वसूले जाते हैं. ऐसी सभी खर्च को निकालने के बाद ही म्यूचुअल फंड स्कीम की नेट एसेट वैल्यू निकाली जाती है.
एक बार में नहीं वसूला जाता एक्सपेंस रेश्यो
एक्सपेंस रेश्यो एक बार में नहीं वसूला जाता है. फंड हाउस अपने हर दिन का खर्च की गणना करने के बाद इसे डेली बेसिस पर निकाला जाता है. सालाना एक्सपेंस रेश्यो को साल के ट्रेडिंग डेज में बांट दिया जाता है. इसे कुल एनएवी पर लगाया जाता है.
दरअसल एक्सपेंस रेश्यो से यह पता चलता है कि आपके इनवेस्टमेंट पोर्टफोलियो के आपका म्यूचुअल फंड मैनेजमेंट आपसे कितनी फीस ले रहा है. कम एक्सपेंस रेश्यो का मतलब है कि ज्यादा मुनाफा. ज्यादा एक्सपेंस रेश्यो आपका रिटर्न घटा देता है. हालांकि ज्यादा एक्सपेंस रेश्यो का मतलब यह नहीं कि हमेशा आपका मुनाफा कम ही होगा. ज्यादा एक्सपेंस रेश्यो वाले फंड काफी अच्छा रिटर्न भी दे सकते हैं.
सेबी ने तय की है एक्सपेंस रेश्यो लिमिट
सेबी ने एक्सपेंस रेश्यो की सीमा तय की है. 500 करोड़ रुपये के AUM वाली स्कीम का एक्सपेंस रेश्यो अधिकतम 2.25 फीसदी हो सकता है. इसी तरह 500-750 करोड़ रुपये AUM वाली स्कीम के लिए एक्सपेंस रेश्यो 2 फीसदी हो सकता है.
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