नॉन-कन्वर्टिबल डिबेंचर यानी एनसीडी में निवेश फायदेमंद हो सकता है अगर आप इनमें सूझबूझ और प्लान के साथ निवेश करते हैं. कंपनियां पब्लिक इश्यू लाकर नॉन कन्वर्टिबल डिबेंचर जारी करती हैं. यह कंपनियों के लिए पैसा जुटाने का तरीका है लेकिन यह बढ़िया रिटर्न चाहने वाले निवेशकों के लिए मौका होता है. यह एक फिक्स्ड इनकम इंस्ट्रूमेंट की तरह होता है, जिसमें मूल रकम के साथ ब्याज मिलता है.चूंकि कुछ डिबेंचर एक तय वक्त के बाद शेयर में बदल जाते हैं लेकिन एनसीडी में ऐसा नहीं होता है. इसीलिए इसका नाम नॉन कन्वर्टिबल  डिबेंचर्स  है.


एनसीडी में जोखिम भी जुड़ा, सावधानी से करें चुनाव 


एनसीडी दो तरह के होते हैं- सिक्योर्ड और अनसिक्योर्ड. सिक्योर्ड एनसीडी वे डिबेंचर हैं जिनमें डिफॉल्ट का खतरा नहीं होता. इसमें कंपनी की सिक्योरिटी होती है. अगर कंपनी आपको पेमेंट करने में नाकाम रहती है तो निवेशक उसके एसेट को बेच कर अपना पैसा निकाल सकते हैं. अनसिक्योर्ड एनसीडी में कंपनी सिक्योरिटी नहीं देती. इसमें जोखिम ज्यादा होता है.


एनसीडी एक तय समय के लिए जारी किया जाता है. लेकिन कंपनी ब्याज का भुगतान मासिक, तिमाही और सालाना आधार पर भी कर सकती है. अगर आप ब्याज नहीं लेते हैं तो मैच्योरिटी पर मूल और ब्याज के साथ आपका पैसा मिलता है. एनसीडी को डीमैट अकाउंट के जरिये खरीदा जा सकता है. फिजिकल फॉर्म के जरिये भी ये खरीदे जा सकते हैं. आप दो,तीन, पांच, दस या बीस साल तक के लिए इन्हें खरीद सकते हैं.इनकी मैच्योरिटी पर कंपनी निवेशकों को निवेश की मूल रकम के साथ ब्याज की वापसी करती है.


तीन महीने से 20 साल तक का मैच्योरिटी पीरियड


एनसीडी की मैच्योरिटी अवधि 90 दिनों से 20  साल के बीच होती है. इसका रिटर्न फिक्स्ड डिपोजिट से ज्यादा होता है. आप अपने हिसाब से इनका चुनाव कर सकते हैं.आप इन्हें बेच भी सकते हैं. आप शेयर बाजार के जरिये इन्हें बेच सकते हैं. आप डायरेक्ट ट्रांसफर के जरिये भी इसे बेच सकते हैं. शेयर मार्केट में बेचने के लिए आपको अपने डिबेंचर को डीमैट में बदलने की जरूरत होती है. फिर अपने शेयर ब्रोकर को इसकी जानकारी देनी होती है कि आप इन्हें बेचना चाहते हैं. वह आपके लिए खरीदार तलाश सकता है. डायरेक्ट ट्रांसफर के लिए आपको खुद खरीदार ढूंढना पड़ता है. HATएनसीडी का चुनाव करते समय क्रेडिट रेटिंग, ऑफर किए गए कूपन रेट और प्रमोटर की विश्वसनीयता का ध्यान रखना पड़ता है.