कोरोना काल में लोग ऑनलाइन शॉपिंग अधिक कर रहे हैं. लोग इस समय कहीं बाहर जाने से बच रहे हैं. जब आप ऑनलाइन शॉपिंग करते हैं तो आपको अक्सर No Cost EMI लिखा नजर आता है. ई-कॉमर्स कंपनियां ग्राहकों को नो कॉस्ट ईएमआई का ऑफर दे रही हैं. No Cost EMI लिखा देखकर ग्राहक अक्सर खरीदारी कर लेते  हैं.


क्या है No Cost EMI
जब ग्राहक EMI यानी किस्तों पर खरीदारी करते हैं. तो इसका मतलब ये होता है कि आपको एक तय अवधि तक समान अमाउंट एक तय समय पर चुकाना होता है. साथ ही ब्याज भी लगता है. वहीं ग्राहकों को नो कॉस्ट EMI में केवल खरीदे गए सामान के ही पैसे EMI के रूप में अदा करने होते हैं. इस पर कोई ब्याज भी नहीं चुकाना पड़ता.


कैसे करती है काम
नो कॉस्ट EMI मार्केटिंग स्ट्रेटेजी का एक हिस्सा है. रिटेलर्स No Cost EMI के जरिए अपना सामान अधिक से अधिक ग्राहकों को बेचनी की कोशिश करते हैं. इसलिए कभी भी नो कॉस्ट ईएमआई देखकर किसी भी सामान को खरीदने की जल्दबाजी न करें उसके बारे में अच्छे से पढ़ें. बैंक दिए गए डिस्काउंट को ब्याज के रूप में वापस ले लेता है. नो-कॉस्ट EMI को तीन भागों में बांटा गया है- रिटेलर, बैंक और ग्राहक. नो कॉस्ट EMI की स्थिति में रिटेलर ग्राहक को ब्याज जितनी राशि का डिस्काउंट दे देता है. यह दो तरीके से काम करती हैं. पहला तरीका यह कि नो कॉस्ट EMI पर आपको प्रोडक्ट पूरी कीमत पर खरीदना होता है. इसमें कंपनियां ग्राहकों को दिए जाने वाला डिस्काउंट को बैंक को ब्याज के तौर पर देती है. दूसरा तरीका यह कि कंपनी ब्याज की राशि को पहली ही उत्पाद की कीमत में शामिल कर देती है.


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