(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
क्या होता है रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट किसे कहते हैं, आप कैसे होते हैं इनसे प्रभावित
आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति की बैठक में रेपो रेट को चार फीसदी पर बरकरार रखने का फैसला लिया गया है. अधिकांश लोग यह नहीं जानते हैं कि रेपो रेट होता क्या है. इसी तरह रिवर्स रेपो रेट, सीआरआर, एमएसएफ, एसएलआर
भारतीय रिजर्व बैंक ने प्रमुख नीतिगत दरों में कोई बदलाव नहीं किया है. आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति की बैठक में रेपो रेट को चार फीसदी पर बरकरार रखने का फैसला लिया गया है.
आरबीआई की नीतिगत दरों के संदर्भ में रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट और सीआरआर जैसे शब्द जरूर सुनने में आते हैं. लेकिन क्या आप इनके मतलब जानते हैं. आज हम आपको यही बताने जा रहे हैं.
आरबीआई जिस रेट पर कमर्शियल बैंकों और दूसरे बैंकों को लोन देता है उसे रेपो रेट कहा जाता है. रेपो रेट कम होने का मतलब है कि बैंक से मिलने वाले सभी तरह के लोन सस्ते हो जाएंगे. इससे आपकी जमा पर ब्याज दर में भी बढ़ोतरी हो जाती है.
रिवर्स रेपो रेट बैंकों को उनकी ओर से आरबीआई में जमा धन पर जिस रेट पर ब्याज मिलता है, उसे रिवर्स रेपो रेट (Reverse repo rate) कहते हैं. बैंकों के पास जो अतिरिक्त कैश होता है उसे रिजर्व बैंक के पास जमा करा दिया जाता है. इस पर बैंकों को ब्याज भी मिलता है.
बाजारों में कैश को कंट्रोल करने के लिए रिवर्स रेपो रेट काम आता है. कैश के बहुत ज्यादा पर आरबीआई रिवर्स रेपो रेट बढ़ा देती है. यह इसलिए किया जाता है कि बैंक उस नकदी को रिजर्व बैंक के पास जमा करा दे. ऐसे ही अगर रिजर्व बैंक चाहता है कि बाजार में नकदी का प्रवाह बढ़े तो रिवर्स रेपो रेट घटा दिया जाता है.
सीआरआर कैश रिजर्व रेशियो (सीआरआर) भी बाजार में नकदी के प्रवाह पर नियंत्रण रखने के काम आता है. सीआरआर को मेंटेन करना सभी कॉमर्शियल बैंकों का वैधानिक दायित्व होता है. सभी बैंकों को अपनी कुल जमा राशि का एक निश्चित हिस्सा आरबीआई के पास जमा रखना पड़ता है. यह राशि बैंक की स्थायित्व और जरूरतों को पूरा करने के लिए जरूरी है.
एमएसएफ मार्जिनल स्टैंडिंग फेसिलिटी (एमएसएफ) उपयोग आरबीआई इसलिए करता है ताकि बाजार में पर्याप्त लिक्विडिटी बनी रहे. एमएसएफ के तहत कोई कामर्शियल बैंक एक रात के लिए अपने कुल जमा का 1 फीसदी राशि तक का लोन ले सकते हैं.
एसएलआर स्टेचुटरी लिक्विडिटी रेशियो (एसएलआर) या एक सरकारी टर्म है. सभी वाणिज्यिक बैंकों को इसे पूरा करना होता है. रिजर्व बैंक एसएलआर के जरिए यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी बैंक आम जनता या कारपोरेट जगत को क्रेडिट देने से पहले कैश, गोल्ड रिजर्व, पीएसयू बांड्स और रिजर्व बैंक से अप्रूव्ड सिक्योरिटी में कितनी राशि रखेंगे. इससे बाजार में मुद्रा के प्रवाह पर नियंत्रण रखा जाता है.
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