शेयर बाजार के बारे में बात करते हुए अक्सर हम इस का जिक्र करते हैं कि मार्केट सेंटिमेंट खराब है इसमें सुधार आ रहा है. निवेशकों के बीच यह आम चर्चा का विषय होता है कि कारोबारी धारणा बेहतर है या बाजार का सेंटिमेंट बिगड़ा हुआ है. दरअसल निवेश की दुनिया में कारोबारी सेंटिमेंट का काफी ज्यादा असर होता है. इसका असर डेट हो या इक्विटी मार्केट, दोनों पर पड़ता है. इस सेंटिमेंट के आधार पर निवेशक पैसा लगाते हैं. ई-ट्रेडर्स और विश्लेषक शेयरों बॉन्ड्स से पैसा कमाते हैं.


इकनॉमी या शेयरों के बारे में निवेशकों की राय से बनता है सेंटिमेंट 


इकनॉमी या किसी खास शेयर के बारे में लोगों की एक विशेष धारणा ही सेंटिमेंट को तय करने में अहम भूमिका निभाती है. इस धारणा को ही मार्केट सेंटिमेंट या बाजार की धारणा कहते हैं. बाजार की चाल मार्केट सेंटिमेंट से ही तय होती है.जब बाजार में उछाल दर्ज होती है तो मार्केट सेंटिमेंट मजबूत होता है. यानी लोग अपने निवेश पर ज्यादा जोखिम लेना पसंद करते हैं और लेकिन बाजार गिरने से सेंटिमेंट कमजोर होता है और निवेशक दूर हटते हैं. निवेशक सतर्क हो जाते हैं और जोखिम नहीं लेते हैं.


सिर्फ बाजार के फंडामेंटल से तय नहीं होते सेंटिमेंट 


बाजार की दिशा हमेशा फंडामेंटल ही तय नहीं करते. कई ऐसी चीजें होती हैं जो बाजार पर असर करती हैं. कई बार बाजार में भावनात्मक मुद्दे भी हावी रहते हैं और निवेशक बगैर ज्यादा सोचे-समझे निवेश करता है. शेयरों और सिक्योरिटी को लेकर निवेशकों की धारणा से उसकी कीमतों में उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है. डे-ट्रेडर्स और टेक्निकल एनालिस्ट इसका फायदा उठाते हैं. छोटी अवधि में कीमतों में जो उतार-चढ़ाव होते हैं, उससे निवेशकों की निवेश  भावनाएं प्रभावित होती हैं. मार्केट सेंटिमेंट के आकलन के लिए अलग-अलग तरह के इंडेकेटर्स हैं. इनमें वोलेटिलिटी इंडेक्स भी शामिल है. वोलेटिलिटी इंडेक्स बाजार की अनिश्चितता के बारे में बताता है. इससे पता चलता है कि मार्केट सेंटिमेंट क्या हैं.


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