क्या है फाइनेंशियल लिक्विडिटी ? निवेश करने से पहले इसका पता लगाना जरूरी
दरअसल किसी एसेट को कैश में बदलने में जितना कम वक्त लगता है वह उतना ही लिक्विड होता है. बैंक एफडी, लिस्टेड कंपनियों के शेयर और ओपन-एंडेड म्यूचुअल फंड जैसे एसेट ज्यादा लिक्विड होते हैं.
फाइनेंशियल लिक्विडिटी का सीधा सा मतलब यह है कि बाजार की कीमतों के मुताबिक आपका मौजूदा एसेट कितनी जल्दी कैश में बदल सकता है. जब भी आप कोई ऐसे एसेट में निवेश के लिए फाइनेंशियल प्लानर की सलाह लेने जाते हैं, तो आपको एसेट की लिक्विडिटी पर ध्यान देने को कहा जाता है. अलग-अलग एसेट के हिसाब से लिक्विडिटी भी अलग-अलग होती है. दरअसल एसेट को कैश में बदलने की जरूरत आपको तब पड़ती है जब आपको खर्च या निवेश करने के लिए तुरंत कैश की जरूरत हो.
बैंक एफडी, म्यूचुअल फंड, शेयरों की लिक्विडिटी अधिक
दरअसल किसी एसेट को कैश में बदलने में जितना कम वक्त लगता है वह उतना ही लिक्विड होता है. बैंक एफडी, लिस्टेड कंपनियों के शेयर और ओपन-एंडेड म्यूचुअल फंड जैसे एसेट ज्यादा लिक्विड होते हैं. किसी एसेट जितनी कम लागत में कैश में बदला जाए उसकी लिक्विडिटी और अच्छी मानी जाती है. कुछ एसेट ऐसे होते हैं, जिसे बेचने या उसमें से निकलने पर पेनल्टी या एग्जिट फीस लगती है. इस हिसाब से यह कमजोर लिक्विडिटी वाले एसेट माने जाएंगे.
कंपनियों की लिक्विडिटी भी है अहम
एफडी, म्यूचुअल फंड, शेयर और गोल्ड ऐसे एसेट हैं, जिनकी लिक्विडिटी अधिक है. वहीं मकान, बिल्डिंग, प्लांट, मशीनरी में लिक्विडिटी कम होती है. किसी कंपनी की फाइनेंशियल हेल्थ जानने के लिए कंपनी की लिक्विडिटी का पता किया जाता है. यह देखा जाता है कि कंपनी अपने शॉर्ट और लॉन्ग टर्म कर्जों को चुकाने में कितनी सक्षम है. कंपनी की लिक्विडिटी कैश, रेश्यो, करंट रेश्यो और कुछ अन्य तरीकों से भी पता की जा सकती है.
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